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नवपाषाणम

नवपाषाणम

नवपाषाणम : सिद्ध परंपरा का एक अद्भुत औषधीय पदार्थ

5000 वर्ष से भी प्राचीनकाल में "सिद्ध प्रणाली" के "संत बोगर" द्वारा बनाया गया नवपाषाणम या नवपाषाण एक अत्यंत अद्भुत एवं दुर्लभ पदार्थ है। यह अष्ट संस्कारित पारद और प्रकृति में पाए जाने वाले नौ विशेष तत्वों के एक अत्यंत विशेष गोपनीय संयोजन के द्वारा बनाया जाता है।

इतिहास

प्राचीन काल से ही नवपाषाण सिद्ध प्रणाली में वर्णित दिव्य औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। नवपाषाण का लाभ सहज ही जनमानस को मिले इसलिए "संत बोगर" ने भगवान मुरूगन की एक मूर्ति बनाई और उसका मंदिर तमिलनाडु के पलानी क्षेत्र में स्थापित कर दिया।

प्राचीन काल से ही उस मूर्ति का जलाभिषेक करके उस जल को जनमानस में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता था। जब लोग इसका सेवन करते थे , तो नवपाषाण के संपर्क में आने के कारण उस जल में जो औषधीय गुण उत्पन्न होते थे उसके कारण लोगों की विभिन्न प्रकार की बीमारियां ठीक हुआ करती थी। शरीर के वात पित्त कफ में संतुलन उत्पन्न होने के कारण लोगों की जीवनशक्ति अत्यंत शक्तिशाली हो जाती थी।

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों को इसका पता लगा। तब उन्होंने इसे आजमाया और इसे चोरी से अपने देश में ले जाने की कोशिश की गई। किंतु सिद्ध प्रणाली के अलावा इसका अत्यंत धार्मिक महत्व होने के कारण स्थानीय जन समुदाय के विरोध के कारण वे इसे नहीं ले जा पाए।

नवपाषाण का निर्माण करने की विधि अत्यंत गोपनीय रही है और मात्र गुरु शिष्य प्रणाली के द्वारा ही सिद्ध परंपरा से जुड़े लोगों में इसके वास्तविक विधि ज्ञात है।

नवपाषाण के उपयोग

नवपाषाण के लाभ प्राप्त करने हेतु इसको मनका या गुटिका, माला, अंगूठी आदि के रूप में शरीर पर धारण किया जाता है. इसके अतिरिक्त नवपाषाण से निर्मित शिवलिंग या भगवन की मूर्ति का जलाभिषेक करके उसके जल को प्रसाद के रूप में पिया जाता है. नवपाषाण के बने बर्तन में जल को रखकर उसको पिया जाता है.

१. नवपाषाण गुटिका को यदि जल में रखा जाए और कुछ समय बाद उस जल को पिया जाए तो गुटिका के प्रभाव से उस जल में ऐसे औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं जिससे व्यक्ति के शरीर में वात पित्त कफ का संतुलन ठीक होता है हो जाता है।

२. व्यक्ति चाहे कितने भी समय से पाचन संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सबसे पहले उसकी पाचन शक्ति प्रणाली सुधर जाती है इस प्रभाव को मात्र एक से 2 हफ्ते में ही कोई भी देख सकता है।

३. इस जल के लगातार सेवन से धीरे-धीरे शरीर के सभी विषैले तत्व बाहर निकल कर शरीर में एंटी एजिंग प्रक्रिया शुरू हो जाती है और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।

४. विभिन्न प्रकार के विषैले तत्वों के कारण ही शरीर में अल्सर कैंसर एलर्जी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। नवपाषाण के प्रयोग से इन सभी समस्याओं में व्यक्ति को राहत मिलने लगती है।

नवपाषाण को गुटिका, ब्रेसलेट, लॉकेट के रूप में धारण किया जा सकता है अथवा इस से निर्मित शिवलिंग या भगवान की मूर्ति का पूजन करके अभिषेक के जल को ग्रहण किया जा सकता है।

इन्हें भी देखें

नवपाषाण मंदिर

नवपाषाण एक औषधि