नरोत्तमदास
जीवन
इका जन्म सन् [1550] विक्रम (तदनुसार १४९३ ईसवी) के लगभग वर्तमान उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ और मृत्यु सन् 1650 (तदनुसार १५४२ ईसवी) में हुई। इनकी भाषा ब्रज है। हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। शिव सिंह सरोज में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त इनके सम्बंध में अन्य प्रमाणिक अभिलेखों में जार्ज ग्रियर्सन का अध्ययन है, जिसमें उन्होंने महाकवि का जन्मकाल सम्वत् 1610 माना है।
व
कृतियाँ
गणेश बिहारी मिश्र की मिश्रबंधु विनोद के अनुसार 1900 की खोज में इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के संबंध में भी जानकारियाँ मिलते हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है। नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम-संकीर्तन’ की अनुपलब्धता का वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए।
- सुदामा चरित, खण्ड काब्य (ब्रजभाषा में संपादित संकलन)। सुदामा चरित के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैः-
- यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है।
- ध्रुव-चरित, 28 छंद रसवती पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित
- नाम-संकीर्तन, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)
- विचारमाला, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)
डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काव्य के संदर्भ में लिखा हैः-
- कथा संगठन, नाटकीयता, विधान, भाव, भाषा, द्वन्द्व आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है।
- सारांश
जन्म संवत व स्थान - १५५० के लगभग ज़िला सीतापुर
मृत्यु - संवत १६०५ के लगभग
रचनाएं - सुदामा चरित, ध्रुव-चरित, विचार माला
वर्ण्य विषय - कृष्ण और सुदामा की आदर्श मित्रता, दरिद्रता और भावुकता का सफल चित्रण
भाषा - प्रवाहपूर्ण सरस ब्रज भाषा
शैली - काव्यात्मक नाट्य शैली
छंद - दोहा, कवित्त, सवैया, कुंडली
सन्दर्भ
- डॉ॰ नगेन्द्र ने अपने ग्रथ ‘रीतिकालीन कवियों की की सामान्य विशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सबसे पहले ‘सवैयों’ का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नरोत्तमदास को रखा हें ‘कवित्त’ (घनाक्षरी) का प्रयोग भी सर्वप्रथम नरोत्तमदास ने ही किया था। यह विधा अकबर के समकालीन अन्य कवियों ने अपनायी थी।
- सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने नरोत्तमदास की हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफी समय तक प्रामाणिकता की परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका।
- इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाड़ी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस महान कवि के जन्मस्थल पर अंग्रेज़ों के समय से चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहाँ प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये कान्यकुब्ज ब्राहमण थे।
इन्हें भी देखें
- भक्ति काल
- भक्त कवियों की सूची
- हिंदी साहित्य
- नरोत्तमदास ठाकुर (गौड़ीय भक्त कवि)