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नंज राज जाट

कर्णप्रयाग नंदा देवी की पौराणिक कथा से भी जुड़ा हैं; नौटी गांव जहां से नंद राज जाट यात्रा आरंभ होती है इसके समीप है। गढ़वाल के राजपरिवारों के राजगुरू नौटियालों का मूल घर नौटी का छोटा गांव कठिन नंद राज जाट यात्रा के लिये प्रसिद्ध है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है तथा कुंभ मेला की तरह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह यात्रा नंदा देवी को समर्पित है जो गढ़वाल एवं कुमाऊं की ईष्ट देवी हैं। नंदा देवी को पार्वती का अन्य रूप माना जाता है, जिसका उत्तरांचल के लोगों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान है जो अनुपम भक्ति तथा स्नेह की प्रेरणा देता है। नंदाष्टमी के दिन देवी को अपने ससुराल – हिमालय में भगवान शिव के घर – ले जाने के लिये राज जाट आयोजित की जाती है तथा क्षेत्र के अनेकों नंदा देवी मंदिरों में विशेष पूजा होती है। नंद राज जाट कनक पाल (जिसने 9वीं शताब्दी में पंवार वंश की स्थापना की) के समय से पहले चली आ रही है। कुछ लोगों के मतानुसार राज जाट एक प्राचीन तीर्थयात्रा है जो शासक शाहीपाल के समय से ही होती है। स्थानीय लोकगीतों के अनुसार शाहीपाल की राजधानी चांदपुर गढ़ी में थी। उसने यहां एक तांत्रिक यंत्र गड़वाकर अपनी संरक्षिका नंदा देवी की स्थापना नौटी में की। यह भी संभव है कि प्राचीन काल में जो गढ़पती इस क्षेत्र में राज्य करते थे वह सब नंदा देवी के नाम पर यात्राएं निकालते थे। पंवार वंश के 37वें वंशज अजय पाल ने जब इन गढ़पतियों को परास्त किया तो उसने इन सब यात्राओं के एक बड़ी यात्रा के रूप में परिवर्तित कर दिया।

आवधिक आयोजन

प्रत्येक 12 वर्षों पर राज जाट का आयोजन होता है जिसकी पूरी तैयारी इस रिवाज के मूल भागीदार लोगों के वंशजों, नौटी के नौटियालों एवं कंसुआ गांव के कुंवरों द्वारा किया जाता है। कुंवर राज परिवार के वंशज हैं। जब अजय पाल ने श्रीनगर को अपनी राजधानी बनायी (वर्ष 1506-1509) तो उसने नंद राज जाट के आयोजन की जिम्मेदारी कुंवरों को सौंप दी। यह माना जाता है कि अजय पाल ने ही हर 12 वर्षों में राज जाट आयोजित करने की प्रथा चलायी। यह प्रथा तब से चली आ रही है।

परंपरागत रूप से कुंवर, राज जाट का आयोजन करने नंदा देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने नौटी आते हैं। इसके बाद शीघ्र ही एक चार सिंगों वाला भेड़ कंसुआ गांव में जन्म लेता है। राज जाट के लिये इस प्रकार की एक समय-सारणी बनायी जाती है कि यह नंद घुंटी के आधार पर एक झील होमकुंड अगस्त/सितंबर नंदाष्टमी के दिन पहुंचे तथा कुलसारी विशेष पूजा के लिये इसके पूर्ववर्त्ती दूज के दिन पहुंच जाये। इसके अनुसार चार सिंगों वाले भेड़ सहित कुंवर नौटी पहुंचते हैं जिनके साथ एक रींगल की छटोली तथा देवी को भेंट की गयी वस्तुएं होती हैं। नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा डोली में रखकर राज जाट लगभग 280 किलोमीटर की गोल यात्रा आरंभ होती है जिसके रास्ते में 19 पड़ाव होते है तथा यह 19 से 22 दिनों में पूरा होती है। पास के इलाकों से अपनी मूर्तियां, डोलियां तथा देवताओं के साथ कई समुदाय इसमें शामिल हो जाते हैं। कुमाऊं के गोरिल या गोलू देवता तथा बंधन के लट्टू देवता 300 से अधिक प्रतिमाओं एवं सज्जित छतरियों के साथ घाट तपोवन के निकट लाता एवं अल्मोड़ा से शामिल हो जाते हैं।

शिला समुद्र में, भक्तगण सुबह के ठीक पहले तीन प्रकाश एवं एक धुएं की लकीर दैवीय संकेत के रूप में देख पाते हैं। नौटी से होमकुंड पहुंचने तक देवी के लिये पूजा सामग्री से लदा चार सिंगों वाला भेड़ जुलुस के आगे-आगे चलता है। समुद्र तल से 22,000 फीट ऊंचाई पर पर्वतों में वह भेड़ गायब हो जाता है और उसके साथ ही देवी की प्रसाद सामग्रियां भी चली जाती हैं।

राज जाट के दिन यात्रियों के उपयोग के लिये वान गांव के घर के प्रत्येक वासी घर खुला रखने के एक अलौकिक रिवाज का पालन करते हैं जो नंदा देवी का धार्मिक आदेश होता है तथा धार्मिक रीति से ही इसका पालन होता है। हजारों की संख्या में भक्तजन राज जाट में शामिल होते हैं बर्फ एवं हिम के ढेरों पर पैदल चलते हैं, घने जंगलों से गुजरते हैं तथा समुद्र तल से 17,000 फीट ऊंचाई पर स्थित रूप कुंड को पार करते हैं।

वर्ष 2000 के अगस्त-सितंबर में अंतिम नंदा देवी राज जाट का आयोजन हुआ था तथा अगला जाट वर्ष 2012 में आयोजित होगा। घाट के निकट बसे कुरूर गांव से प्रत्येक वर्ष छोटे राज जाटों का आयोजन होता है जहां नंदा देवी को समर्पित एक मंदिर है।