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धातुपाठ

क्रियावाचक मूल शब्दों की सूची को धातुपाठ कहते हैं। इनसे उपसर्ग एवं प्रत्यय लगाकर अन्य शब्द बनाये जाते हैं।। उदाहरण के लिये, 'कृ' एक धातु है जिसका अर्थ 'करना' है। इससे कार्य, कर्म, करण, कर्ता, करोति आदि शब्द बनते हैं।

प्रमुख संस्कृत वैयाकरणों (व्याकरण के विद्वानों) के अपने-अपने गणपाठ और धातुपाठ हैं। गणपाठ संबंधी स्वतंत्र ग्रंथों में वर्धमान (12वीं शताब्दी) का गणरत्नमहोदधि और भट्ट यज्ञेश्वर रचित गणरत्नावली (ई. 1874) प्रसिद्ध हैं। उणादि के विवरणकारों में उज्जवलदत्त प्रमुख हैं। काशकृत्स्न का धातुपाठ कन्नड भाषा में प्रकाशित है। भीमसेन का धातुपाठ तिब्बती (भोट) में प्रकाशित है। अन्य धातुपाठ हैं-

  • पूर्णचन्द्र का धातुपारायण,
  • मैत्रेयरक्षित (दसवीं शताब्दी) का धातुप्रदीप,
  • क्षीरस्वामी (दसवीं शताब्दी) की क्षीरतरंगिणी,
  • सायण की माधवीय धातुवृत्ति,
  • श्रीहर्षकीर्ति की धातुतरंगिणी,
  • बोपदेव का कविकल्पद्रुम्,
  • भट्टमल्ल की आख्यातचंद्रिका

पाणिनीय धातुपाठ

पाणिनि के अष्टाध्यायी के अन्त में (परिशिष्ट) धातुओं एवं उपसर्ग तथा प्रत्ययों की सूची दी हुई है। इसे 'धातुपाठ' कहते हैं। इसमें लगभग २००० धातुएं हैं। इसमें वेदों में प्राप्त होने वाली लगभग ५० धातुएं नहीं हैं। यह धातुपाठ मूल १० वर्गों में हैं-

  • 1. भ्वादि (भू + आदि)
  • 2. अदादि (अद् + आदि)
  • 3. जुहोत्यादि
  • 4. दिवादि
  • 5. स्वादि
  • 6. तुदादि
  • 7. रुधादि
  • 8. तनादि
  • 9. क्र्यादि (क्री + आदि ; "कृ +आदि" नहीं )
  • 10. चुरादि

धातुपाठ का आरम्भिक भाग नीचे दिया हुआ है-

भू सत्तायाम् । ‘उदात्तः परस्मैभाषः’। एध वृद्धौ । स्पर्ध संघर्षे । गाधृ प्रतिष्ठालिप्सयोर्ग्रन्थे च । बाधृ लोडने । नाथृ यांचोपतापैश्वर्याशीःषु । नाधृ यांचोपतापैश्वर्याशीःषु । दध धारणे । स्कुदि आप्रवणे आप्लावनं उत्प्लवः उद्धरणं च । श्विदि श्वैत्ये श्वैत्यं श्वेतस्य भावः । वदि अभिवादन स्तुत्योः । भदि कल्याणे सुखे च । मदि स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु । स्पदि किंचिच्चलने । क्लिदि परिदेवने । मुद हर्षे । दद दाने । ष्वद आस्वादने । स्वर्द आस्वादने । उर्द मानेमानं परिणामंक्रीडायां च । कुर्द क्रीडायां । खुर्द क्रीडायां । गुर्द क्रीडायां । गुद क्रीडायां । षूद क्षरणे । ह्राद अव्यक्ते शब्दे । ह्लादी सुखे च । पर्द कुत्सिते शब्दे । यती प्रयत्ने । युतृ भासने । जुतृ भासने । विथृ याचने । वेथृ याचने । श्रथि शैथिल्ये । ग्रथि कौटिल्ये ।

धातुपाठ में एक धातु या कई धातुएँ देने के बाद उसका अर्थ दिया हुआ है। जैसे भू सत्तायाम् । जिसमें 'भू' धातु है और 'सत्तायाम्' उसका आशय या अर्थ है। धातुपाठ में ९६४ धातुओं के केवल एक-एक अर्थ हैं; २४३ धातुओं के दो-दो अर्थ हैं; ९९ धातुओं के तीन-तीन अर्थ हैं ; २५ धातुओं के चार-चार अर्थ हैं; १६ धातुओं के पाँच-पाँच अर्थ हैं; ४ धातुओं के छः-छः अर्थ हैं; २ धातुओं के सात-सात अर्थ हैं; एक धातु के आथ अर्थ हैं; एक दूसरी धातु के १३ ; एक तीसरी धातु के १८ अर्थ हैं।

धातुपाठ का महत्व

संस्कृत भाषा इस मामले में विश्व की अन्य भाषाओं से विलक्षण है कि इसके सभी शब्द धातुओं के एक छोटे से समूह (धातुपाठ) से व्युत्पन्न किये जा सकते हैं। निम्नलिखित उक्ति में इस गुण की महत्ता का दर्शन होता है-

मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके। इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 250,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है। …. अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके।
-- प्रसिद्ध जर्मन भारतविद मैक्समूलर (1823 – 1900), अपनी पुस्तक 'साइंस ऑफ थाट' में।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ