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धर्मयुद्ध

प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के अनुसार धर्मयुद्ध से तात्पर्य उस युद्ध से है जो कुछ आधारभूत नियमों का पालन करते हुए लड़ा जाता है।

महाभारत में धर्मयुद्ध

महाभारत के युद्ध में युद्धरत दोनों पक्ष निम्नलिखित नियमों का पालन करते हुए युद्ध करने के लिये सहमत हुए थे-

  1. सूर्योदय के पहले युद्ध आरम्भ नहीं होना चाहिये और यूर्यात होते ही समाप्त हो जाना चाहिये। (१४वे दिन यह नियम भंग हुआ था जब जयद्रथ का वध हुआ)
  2. एक योद्धा के साथ अनेक योद्धा नहीं लड़ने चाहिये। (यह नियम कई बार भंग हुआ था, इसमें से सबसे प्रमुख है १३वें दिन अभिमन्यु की हत्या)
  3. दो योद्धा आपस में मल्लयुद्ध कर सकते हैं या एक-दूसरे से लम्बी अवधि तक उसी स्थिति में लड़ सकते हैं यदि दोनों के पास एक जैसे अस्त्र-शस्त्र हों और दोनों एक ही तरह की सवारी (जैसे रथ, घोड़ा, हाथी, पैदल) पर हों। (यह नियम भी कई बार भंग हुआ।)
  4. यदि कोई योद्धा आत्मसमर्पण कर दे तो उसे कोई नहीं मारेगा या उसका किसी प्रकार का नुकसान करेगा। (यह नियम तब भंग हुआ जब सत्यकी ने निःशस्त्र भूरिश्रवा की हत्या की थी)
  5. जो व्यक्ति आत्मसमर्पण कर देगा वह 'युद्धबन्दी' हो जायेगा और उसको वे सभी सुविधाएँ मिलेंगी जो किसी युद्धबन्दी के लिये निर्धारित हैं।
  6. कोई भी योद्धा किसी निःशस्त्र योद्धा को नहीं मारेगा। (जब अर्जुन ने कर्ण की हत्या की तब यह नियम भंग हुआ था, क्योंकि उस समय कर्ण अपने रथ का पहिया निकाल रहा था।)
  7. कोई भी योद्धा ऐसे योद्धा को नहीं मारेगा जिसको होश न हो। (यह तब भंग हुआ था जब अभिमन्यु की हत्या हुई थी)
  8. कोई भी योद्धा ऐसे मनुष्य या पशु की हत्या नहीं करेगा जो युद्ध में भाग नहीं ले रहा होगा। (यह नियम कई बार भंग हुआ था। कई योद्धाओं ने शत्रु के घोड़ों या सारथियों की हत्या की थी।)
  9. कोई भी योद्धा ऐसे योद्धा को नहीं मारेगा जिसकी पीठ उस योद्धा के सामने हो। (शकुनि और अर्जुन ने इस नियम को भंग किया था।)
  10. यदि कोई पशु प्रत्यक्ष रूप से किसी के लिये घातक न हो तो ऐसे पशु को नहीं मारा जायेगा। (जब भीम ने अश्वत्थामा के हाथी को मारा तो यह नियम भंग हुआ था।)
  11. कुछ शस्त्रों के अपने-अपने नियम भी थे। उदाहरण के लिये, गदा-युद्ध में कमर के नीचे प्रहार करना वर्जित है। (महाभारत युद्ध के अन्तिम काल में जब भीम ने दुर्योधन के जंघे पर प्रहार किया तो यह नियम भंग हुआ था।)

अन्य ग्रन्थों में धर्मयुद्ध

धर्मदुद्ध की संकल्पना महाभारत के अतिरिक्त अन्य धर्मग्रन्थों में भी मिलती है, जैसे रामायण, धर्मशास्त्र आदि में।

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