धरमपुरी
धरमपुरी Dharampuri | |
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धरमपुरी मध्य प्रदेश में स्थिति | |
निर्देशांक: 22°10′N 75°21′E / 22.17°N 75.35°Eनिर्देशांक: 22°10′N 75°21′E / 22.17°N 75.35°E | |
ज़िला | धार ज़िला |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 16,363 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
धरमपुरी (Dharampuri) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के धार ज़िले में स्थित एक नगर है। यह नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ है।[1][2]
विवरण
धरमपुरी एक पौराणिक नगर है। धरमपुरी प्राचीन भारत का एक सुविख्यात नगर तथा दुर्ग रहा है। यह दक्षिण - पशचिम के भूतपूर्व धार राज्य के अंतर्गत आता था। आजादी के पश्चात् यह धार जिले की मनावर तहसील का टप्पा था। विंध्यांचल पर्वत के अंचल में पुन्य सलिला नर्मदा के तट पर बसी यह नगरी मुंबई-आगरा राजमार्ग से खलघाट से पश्चिम दिशा में ११ किलोमीटर दुरी पर स्थित है।
मांडवगढ़ के इतिहास से इस नगर का घनिष्ट सम्बंध रहा है। नर्मदा के उत्तर तट पर बसी धरमपुरी नगरी परमार राज्य की शक्ति, सुरक्षा, स्थापत्यकला और धर्म की द्रष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र था। धरमपुरी के नाम की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है की महाभारत कल में धर्मराज युधिष्ठिर ने यह राजसूर्य यज्ञ किया था। इस कारण धर्मराज द्वारा बसाए जाने कारण उन्ही के नाम पर इस नगरी का नाम धर्मपुरी पड़ा था। जिसे वर्तमान में हम धरमपुरी से संबोधन करते है।
धरमपुरी का वर्तमान स्वरूप उसकी प्राचीनता तथा पूर्वावशेष इसके धार्मिक, एतिहासिक एवं कलात्मक होने की पुष्टि करते है। जगत तारनी माँ नर्मदा के उत्तर तट पर विंध्यांचल की तलेटी में स्थित धरमपुरी वर्तमान में बड़ा शहर नही है। परन्तु प्राचीन काल में यह महत्वपूर्ण नगर था। इसका प्रमाण पुराण एवम इतिहास में मिलता है। सदियों से ऋषि मुनियों तथा प्रतापी राजाओ की आवास स्थली होने के साथ - साथ धरमपुरी आध्यात्मिक एवम शोर्य से गोरान्वित था। सुद्रड़ता और सुरक्षा की द्रष्टि से तत्कालीन गडी के रूप में यह अपनी गरिमा रखता था। गडी के भग्नावशेष इसके आज भी साक्षी है। नगर के चारो और परकोटा और चार द्वार थे। जिसमे से तीन आज भी विद्यमान है।
काल और युध्दो के प्रभाव ने इस धर्मप्राण भू भाग को ध्वस्त कर दिया। भव्य प्रसादो और मन्दिरों के स्थानों पर खंडहर ईट, पत्थर और मिटटी के ढेर में तब्दील हो गए। प्राचीन इतिहास से पता चलता है की रामायण काल में १६०० ईस्वी पूर्व यह प्रदेश अनूप जनपद के अंतर्गत था। यह शाश्वत राज्य स्थापित होने के साथ महेश्व्वर हैहेय वंशीय राजा सहस्त्रार्जून एवम शिशुपाल ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। इसके पश्चात् महाभारत काल में धर्मराज युधिष्टिर ने यहा राजसूर्य यज्ञ के दौरान यज्ञ की सफलता के लिए राजा भीमसेन को अनेक राजाओ से युध्द करना पड़ा था। राजा भीमसेन ने अनेक देशो पर विजय प्राप्तकर युधिष्टिर की आज्ञा से चेदी वंश के राजा शिशुपाल को पराजित किया। चेदी वंश का राज्य नर्मदा किनारे फैला था और महेश्वर (माहिष्मती) उसकी राजधानी थी। महाभारत के पश्चात सम्राट परीक्षित और जन्मेजय के राज्यकाल तक धरमपुरी का वैभव अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच चूका था। लेखो और शिलालेखो के आधार पर ईसा की पहली व दूसरी सदी से इस जनपद का नाम अनूप पाया जाता है। बौध ग्रंथो में भी इसका उल्लेख है की ईसवी पूर्व ६०० के लगभग उत्तर में १६ महाजनपद थे। निमाड़ का यह हिस्सा अवन्ती महाजन के पद अंतर्गत आता था। पूर्व निमाड़ जिले के सन १९०८ में प्रकाशित ग्झेतियर के अनुसार प्राचीन निमाड़ के प्रान्त की सीमा क्षेत्र पूर्व में होशंगाबाद जिले में प्रवाहित गुंजाल नदी पश्चिम में हिरन फाल (हिरन जलप्रताप) तथा उत्तर दक्षिण में विंध्यांचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणी है।
प्राचीन धार्नाओ के अनुसार इस प्रान्त में नीम के पेड़ अधिक होने के कारण इसका नाम निमाड़ पड़ गया। मुगल शासक काल में निमाड़ की प्रतिष्ठा एवम स्वतंत्र राज्य के रूप में थी और उसके पश्चात् तुगलक वंश के समय में भी यह प्रान्त का रूप में अस्तित्व में था। धरमपुरी नगर अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। नगर व इसके आसपास का क्षेत्र तपोभूमि के प्राचीन एेतिहासिक व सांस्कृतिक जिसमे जैन, बौध, वैष्णव एवम् पौराणिक कालीन मूर्ति एवम् स्थापत्यकला के आज भी दर्शन होते है। धरमपुरी नगर के आसपास महान तपस्वियों ने तपस्या की जिनकी साक्षी गुफाए व प्राचीन शिवालय वर्तमान में विद्यमान है।
धरमपुरी के पौराणिक स्थल
धरमपुरी नगरी के दक्षिण दिशा में जीवनदायनी माँ नर्मदा जो सम्पूर्ण देश में पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली एकमात्र नदी है। जिसमे ९९९ छोटी - बड़ी नदियों मिलती है। जिसका भाव उपर से शांत ओर गहराई में तेज बहाव लिए हुए है। धरमपुरी से २ किलोमीटर पहले दो भागो में विभाजित होकर नगर के वार्ड १ खुजावा के सामने दोनों धराए एक दुसरे से मिल जाती है। विभाजित भागो के बीच बने एस द्वीप (टापू) को रेवा (नर्मदा) का गर्भ स्थान माना जाता है। पुरानो में भी इस भू भाग को रेवागर्भ नाम से उल्लेखित है। दोनों धाराओ के बीच में यह टापू वर्तमान में २ किलोमीटर लम्बा ओर करीब ४०० मीटर चौड़ा है। पहले इसकी लम्बाई १३ किलोमीटर थी। इस टापू को बेट कहा जाता हैं जहा पर भगवन बिल्वामृतेश्वर महादेव का मंदिर हैं श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन किये वही देर रात बेट संस्थान टापू पर मंदिर में स्थित शिवलिंग पर रजत मुखोटा विराजित होते ही पूरा बेट संस्थान शिवमय हो जाता हैं,पूरा मंदिर परिसर भोले शम्भू भोलेनाथ के जय करो से गूंज उठता हैं।बेट संस्थान स्थित स्वयं भू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के दिव्य दर्शन और महाआरती में शामिल होने के लिए नगर व ग्रामीण क्षैत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु बेट संस्थान पहुँचे हैं रजत मुखोटा 800 वर्ष पुराना है 1662 तोला चांदी से निर्मित इस मुखोटे की बनावट बेहद आकर्षक व अद्वितीय है,इस मुखोटे को केवल महाशिवरात्रि पर ही श्रद्धालुओ के दर्शनार्थ के लिए रखा जाता है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293