द्विपद गुणांकों को मेरुप्रस्तार या पास्कल त्रिकोण के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। गणित में, द्विपद प्रमेय के प्रसार में जो धनात्मक पूर्णांक आते हैं, उन्हें द्विपद गुणांक (binomial coefficient) कहते हैं।
( 1 + x ) n = ( n 0 ) + ( n 1 ) x + ( n 2 ) x 2 + … + ( n n ) x n = ∑ k = 0 n ( n k ) x k , {\displaystyle (1+x)^{n}={\binom {n}{0}}+{\binom {n}{1}}x+{\binom {n}{2}}x^{2}+\ldots +{\binom {n}{n}}x^{n}=\sum _{k=0}^{n}{\binom {n}{k}}x^{k},} उदाहरण के लिये, 2 ≤ n ≤ 5 के लिये द्विपद प्रमेय का स्वरूप इस प्रकार है:
( x + y ) 2 = x 2 + 2 x y + y 2 {\displaystyle (x+y)^{2}=x^{2}+2xy+y^{2}\,} ( x + y ) 3 = x 3 + 3 x 2 y + 3 x y 2 + y 3 {\displaystyle (x+y)^{3}=x^{3}+3x^{2}y+3xy^{2}+y^{3}\,} ( x + y ) 4 = x 4 + 4 x 3 y + 6 x 2 y 2 + 4 x y 3 + y 4 {\displaystyle (x+y)^{4}=x^{4}+4x^{3}y+6x^{2}y^{2}+4xy^{3}+y^{4}\,} ( x + y ) 5 = x 5 + 5 x 4 y + 10 x 3 y 2 + 10 x 2 y 3 + 5 x y 4 + y 5 . {\displaystyle (x+y)^{5}=x^{5}+5x^{4}y+10x^{3}y^{2}+10x^{2}y^{3}+5xy^{4}+y^{5}.\,} अनेक भारतीय पाण्डुलिपियों में मेरु प्रस्तार का प्रयोग और चित्रण है। मेरु प्रस्तार का यह चित्र में रघुनाथ पुस्तकालय, जम्मू एवं कश्मीर की ७५५ ई की एक पाण्डुलिपि से लिया गया है। अतः
१, २, १ ; १, ३, ३, १ ; १, ४, ६, ४, १ ; १, ५, १०, १०, ५, १ आदि द्विपद गुणांक हैं।
द्विपद गुणांकों के उपयोग
इन्हें भी देखें
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