द्विध्रुवी विकार
द्विध्रुवी विकार वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
कुछ इतिहासवेत्ताओं के अनुसार विन्सेंट वैन गोघ द्विध्रुवी विकार से ग्रस्त थे | |
आईसीडी-१० | F31. |
आईसीडी-९ | 296.80 |
ओएमआईएम | 125480 309200 |
डिज़ीज़-डीबी | 7812 |
मेडलाइन प्लस | 001528 |
ईमेडिसिन | med/229 |
एम.ईएसएच | D001714 |
द्रिध्रुवी विकार एक गंभीर प्रकार का मानसिक रोग है जो एक प्रकार का मनोदशा विकार है। इस रोग से ग्रसित रोगी की मनोदशा बारी-बारी से दो विपरीत अवस्थाओं में जाती रहती है। एक मनोदशा को सनक या उन्माद और दूसरी मनोदशा को अवसाद कहते हैं। सनक की मनोदशा में रोगी अति-आशावादी हो सकता है; अपने बारे मे बढ़ी-चढ़ी धारणा रख सकता है (जैसे मैं बहुत धनी, रचनाशील या शक्तिशाली हूँ); व्यक्ति अति-क्रियाशील हो सकता है (धड़ाधड़ भाषण, तेज गति से बदलते हुए विचार आदि); रोगी सोना नहीं चाहता या सोने को अनावश्यक कहता है आदि। दूसरी तरफ अवसाद की मनोदशा में रोगी उदास रहता है; उसको थकान लगती है; अपने को दोषी महसूस करता है या उसमें आशाहीनता दिखायी देती है।
विकार
ऐसे व्यक्ति का मूड जल्दी-जल्दी बदलता है। वह कभी खुद को एकदम से खुश महसूस करता है तो एकाएक से अवसाद की अवस्था में भी पहुंच जाता है। खुशी और दुख दोनों ही अवस्थाएं सामान्य नहीं होती है। खुशी की इस अवस्था को मेनिक कहा जाता है। द्रिध्रुवी विकार को मुख्यत: तीन श्रेणियों में बांटा गया है-
- द्रिध्रुवी १
- द्रिध्रुवी २
- साइक्लोथाइमिक विकार
यह विकार पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है। चूंकि यह मस्तिष्क के प्रकायों को प्रभावित करता है जिससे इसका प्रभाव लोगों के सोचने, व्यवहार और महसूस करने में देखा आता है। इसके कारण अन्य लोगों का उनकी स्थिति को समझ पाना मुश्किल हो जाता है। सामान्यत: वयस्कों में ये स्थिति एक हफ्ते से लेकर, एक महीने तक रहती है। कई मामलों में यह इससे कम भी हो सकती है। मेनिक और डिप्रेशन की स्थिति अनियमित होती है और इसका साथी भी समान नहीं होता। यानि हमेशा इसके लक्षण समान नहीं होते। हर व्यक्ति के व्यक्त्वि के अनुसार ये अलग-अलग प्रकट होते हैं।
दुष्प्रभाव
द्रिध्रुवी विकार के कारण कुछ लोगों को ड्रग्स और मदिरा की लत लग जाती हैं। इससे ग्रसित लोगों के लिए मदिरा और ड्रग्स बेहद हानिकारक सिद्ध होते हैं और वह व्यक्ति की स्थिति को ज्यादा खराब कर देते है जिससे चिकित्सक के लिए उसका उपचार करना अधिक मुश्किल हो जाता है।
वैज्ञानिक पक्ष
द्रिध्रुवी मूड विकारका अब तक कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक हल सामने नहीं आया है। ज्यादातर वैज्ञानिक इसके लिए जैवरासायनिक, आनुवांशिक और वातावरण को उत्तरदायी मानते हैं। ऐसा मस्तिष्क के रसायनों (स्नायुसंचारी) में असंतुलन की वजह से होता है। स्नायुसंचारी (न्यूरोट्रांसमीटर) में असंतुलन की वजह से मूड को नियंत्रित करने वाला सिस्टम गड़बड़ा जाता है। वहीं इसके लिए जीन भी प्रमुख कारक होते हैं। यदि किसी के सगे संबंधी को द्रिध्रुवी विकार है तो उस व्यक्ति को इसके होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। इसका अर्थ ये भी नहीं निकालना चाहिए कि ये उसको भी हो जाएगा।
वहीं माहौल को भी मनोवैज्ञानिक इस विकारके लिए उत्तरदायी मानते है। परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु, माता-पिता का तलाक और कई अन्य दर्दनाक हादसों की वजह से व्यक्ति इसका शिकार हो जाता है। मस्तिष्क की संरचना में खराबी के कारण भी ये विकार होता है। कुछ अध्ययनों में ये सामने आया है कि मेंडुला, प्रीफ्रंटल कार्टेक्स और हिप्पोकैंपस में गड़बड़ी की वजह से ऐसी समस्या होती है।
उपचार
द्रिध्रुवी मूड विकारको पहचान कर इसका उपचार किया जा सकता है। वयस्कों में इस विकारके लक्षण पता करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। बच्चों और टीनेजर्स में इसके लक्षण वयस्कों की तरह नहीं होते हैं, ऐसे में इनमें लक्षण पहचानने में समस्या आती है। उपचार करने से पहले टीएनजर्स की वर्तमान और भूतकाल के अनुभवों की पड़ताल की जाती है। इसके अलावा परिवार के सदस्य और दोस्तों से भी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानकारी ली जाती है। कई बार टीनेजर्स में इसे पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस विकार, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी विकारजैसा समझ लिया जाता है, जिससे इसके ईलाज में मुश्किलें आती हैं। उपचार मुख्यत: व्यवहारिक लक्षणों और संकेतों के आधार पर किया जाता है। बाद में टेस्ट किए जाते हैं। जैसे सीटी स्कैन ब्रेन बेंट्रीसिल्स (जहां सेरेब्रोस्पाइनल द्रव्य एकत्रित होता है) का बड़ा रूप दिखाता है। वही ब्राइट स्पॉट को दिमाग के एमआरआई द्वारा देखा जा सकता है
मिशीगन विश्वविद्यालय में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि द्रिध्रुवी मूड विकारवाले लोगों में रसायन का स्नव करने वाली दिमागी कोशिकाओं की संख्या आम लोगों की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा होती है। इसके अलावा उनके दिमाग में कैल्शियम या कॉर्टीसोल (एड्रीनल ग्रंथि द्वारा स्नवित स्ट्रेस हार्मोन) की अधिकता होती है। साथ ही दिमाग के सेल रिसेप्टर में असामान्यता देखने में आती है।
सन्दर्भ
- पल-पल बदलता मूड। अनुराग मिश्र
बाहरी कड़ियाँ
- Bipolar Disorder overview from the U.S. National Institute of Mental Health website
- NICE Bipolar Disorder clinical guidelines from the U.K. National Institute for Health and Clinical Excellence website
- BP Magazine from the U.S. BP Hope website