दोहरीघाट
दोहरीघाट Dohrighat | |
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दोहरीघाट उत्तर प्रदेश में स्थिति | |
निर्देशांक: 26°16′N 83°31′E / 26.26°N 83.52°Eनिर्देशांक: 26°16′N 83°31′E / 26.26°N 83.52°E | |
ज़िला | मऊ ज़िला |
प्रान्त | उत्तर प्रदेश |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 10,245 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, भोजपुरी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
दोहरीघाट (Dohrighat) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मऊ ज़िले में स्थित एक नगर है। यहाँ रेलवे स्टेशन है और राष्ट्रीय राजमार्ग १२८सी भी यहाँ से गुज़रता है।[1][2]
त्रेता युग में सरयू के किनारे दोहरीघाट नामक स्थान पर भगवान श्री राम एवं भगवान श्री परशुराम का मिलन हुआ था। क्योंकि दोनों भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार थे इसलिए स्थान का नाम दोहरीघाट पड़ा। कथा के अनुसार जब भगवान श्री राम भगवती जानकी से विवाह करके अयोध्या पुरी को वापस जा रहे थे तब मार्ग में भगवान परशुराम उनसे जिस स्थान पर मिले वही आज दोहरीघाट नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर भगवान श्री राम ने गौरी शंकर भगवान का पूजन किया था । दोहरीघाट से कुछ दूरी पर सरयू नदी के किनारे ठाकुर श्री लक्ष्मण जी महाराज पवित्र मंदिर भी है जिनका विग्रह भगवान विष्णु का प्रतीत होता है तथा यह विग्रह भूमि से स्वयं प्रकट हुआ था।
कार्तिक मास की पूर्णिमा पर इस स्थान पर विशाल जल समुदाय सरयू जल में स्नान करने हेतु आता है कुछ ऐसा ही दृश्य मौनी अमावस्या को भी होता है
विवरण
दोहरी घाट मऊ जिले में घाघरा(सरयू) नदी के किनारे बसा हुआ एक कस्बा है।यहाँ लोग प्रायः मृतकों के अन्तिम संस्कार के लिए और नदी में स्नान के लिए आते है।घाट के पास "मुक्ति धाम" नाम से पार्क बना है।जिसमे घूमने के लिए आसपास के लोग आते हैं।मुक्ति धाम में तरह तरह के जानवरों को भी रखा गया है जो आकर्षण का केंद्र बनते हैं।मुक्ति धाम में एक बड़ा हाल बना है जहाँ मृतक के अंतिम संस्कार के समय लोग इन्तजार करते है।धीरे धीरे अब मुक्ति धाम के पास तरह तरह की दुकानें भी लगने लगी हैं।पूर्णिमा व अन्य त्योहारों पर यहाँ मेला लगता है।दोहरीघाट (मुक्ति धाम) आज़मगढ़ जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर है।यहाँ जाने के लिए बस और टैक्सी जैसे साधन उपलब्ध हैं।आज़मगढ़ से जीयनपुर कस्बे से होते हुए वहाँ पहुँचा जाता है।
इतिहास
"जब निको दिन आई है बनत न लगिहे देर" - हर बुरे दिन के बाद अच्छा दिन आता है। मुक्तिधाम इसका परम उदाहरण है। भौगोलिक दृष्टि से यह घाघरा वर्तमान सरयू नदी की गोद मे बसी है। यह स्थान श्रद्धालुओं का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है तथा समय समय पर मेले लगते हैं। सदियों से गौरवमयी इस स्थान पर दो-हरि यानि श्री राम एंव परशुराम की मिलन स्थली जिसको आज दोहरीघाट के नाम से जानते हैं। यह बाबा भोलेनाथ की परम पवित्र काशी नगरी की परिक्षेय मे आता है इसलिए इसको काशी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। सरयू के दक्षिणी पूर्वी द्वार पर बसा यह नगर इसलिए भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपुर्ण माना जाता है क्योंकि यहां दो किलोमीटर तक सरयू नदी उत्तर दिशा को बहती है। यहाँ बङे बङे महर्षि तपस्वी व संत वर्षों तक साधना किए हैं, ऐसे महात्माओं मे संत सिरोमणि, नागा बाबा, खाकी बाबा, मेला राम बाबा आदि। भगवान राम द्वारा स्थापित "गौरी शंकर" के भब्य मंदिर के नाते इस स्थान की चर्चा दूर-दूर तक है।
दोहरीघाट क्षेत्र कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का क्षेत्र रहा है. यहीं पर प्रथम पञ्चवर्षीय परियोजना में पम्प कैनाल का निर्माण किया गया. दलहन इस क्षेत्र की प्रमुख उपज रही है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों से दलहन के व्यापार के लिए दोहरीघाट एक केंद्र के रूप में स्थापित रहा है. पम्प कैनाल के निर्माण के बाद इस क्षेत्र में गेहूं और धन प्रमुखता से उगाये जाते हैं.
यहाँ का विक्ट्री इंटर कालेज शिक्षा का केंद्र रहा है. यहाँ खंड विकास कार्यालय, बस डिपो, रेलवे स्टेशन, उच्चीकृत स्वस्थ्य केंद्र एवं राज्य कर्मचारियों हेतु ट्रेनिंग सेण्टर स्थित है.
चित्रदीर्घा
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
- ↑ "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975