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दोष (भावना)

एक महिला दोष की भावना के कारण ठीक से देख नहीं पा रही है और अजीव से चेहरे के भाव दिखा रही है।

दोष किसी भी मनुष्य में उत्पन्न होने वाली एक आंतरिक भावना है जो उस समय उत्पन्न होती है जब वह व्यक्ति यह मानने लगता है या समझने लगता है - भले ही सही हो या गलत - कि उसने अपने ही सही आचरण के मानकों के साथ समझौता किया है या वैश्विक नैतिकता के मानकों का उल्लंघन किया है और इसमें उस व्यक्ति का बड़ा दायित्व है। [1]

दोष पश्चात्ताप से बड़ी हद तक जुड़ा हुआ है।

स्वयं को दोष देने के उदाहरण

  • एक दरिद्र पिता जब अपने बेटे की आयु के लोगों को पढ़ लिखकर उच्च पदों पर देखता है, तब वह अपने बच्चे को स्कूली शिक्षा पूरी नहीं करने का दोषी मानता है।
  • दैनिक व्यस्तता के कारण पोलियो का टीका भूलने वाले माता-पिता अपने बच्चे की विकलांगता के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं।

दूसरों को दोष देना

यह एक आम बात है। कोई भी मनुष्य कठिन परिस्तियों के लिए अपने माता-पिता, पारिवारिक सदस्यों, मित्रों, समय, समुदाय, सरकार, देश और यहाँ तक कि जन्म और कर्म को दोष दे सकता है और लोग ऐसा करते आए हैं।

सन्दर्भ

  1. Compare: "Archived copy". मूल से 2 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जनवरी 2008.सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link) "In psychology, what is "guilt," and what are the stages of guilt development?". eNotes.com. 2006. 31 December 2007: 'Let's begin with a working definition of guilt. Guilt is “an emotional state produced by thoughts that we have not lived up to our ideal self and could have done otherwise.”' Retrieved 2017-12-03.