सामग्री पर जाएँ

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

आदर्श वाक्य:विज्ञानवान् प्रज्ञावान् भवतु
(विज्ञानवान और प्रज्ञावान बनो)
स्थापित1941
प्रकार:सार्वजनिक
निदेशक:योगेश सिंह
शिक्षक:110 (अनुमानित)
विद्यार्थी संख्या:1500 [1]
स्नातक:2000 (पूर्ण-कालिक) 200 (अंश-कालिक)
स्नातकोत्तर:450 (पूर्ण-कालिक) 55 (अंश-कालिक)
अवस्थिति:दिल्ली, दिल्ली, भारत
परिसर:दिल्ली (उपनगरीय; 163.9 एकड़)
सम्बन्धन:दिल्ली विश्वविद्यालय
जालपृष्ठ:http://www.dtu.ac.in/

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (पुराना नाम: दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग या पूर्व दिल्ली पॉलीटेक्निक ; अंग्रेजी: Delhi Technological University या DTU पूर्व में DCE) भारत का एक अभियांत्रिकी विश्वविद्यालय है। मूल रूप से इसे सन 1940 में दिल्ली पालीटेकनिक के रूप में स्थापित किया गया था और उस समय यह भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में था। यह दिल्ली का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज है और भारत के उन कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों में से है जो स्वतंत्रता से पहले स्थापित किए गए थे।

१९६३ के बाद से यह दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में है और १९५२ से २००९ तक यह कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा। २००९ में कॉलेज को राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया तथा इसका नाम बदलकर 'दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय' कर दिया गया।

यह बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी (बी.टेक), मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.टेक), डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) और मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) की उपाधियों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करता है। इस विश्वविद्यालय में चौदह शैक्षणिक विभाग शामिल हैं जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसन्धान के क्षेत्र में मजबूत शिक्षा प्रदान करते हैं। सन २०१७ से यहाँ बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन एवं अर्थशास्त्र में बी.ए. जैसे पाठ्यक्रम भी प्रदान किए जा रहे हैं।

इतिहास

दिल्ली पॉलिटेक्निक

दिल्ली पॉलिटेक्निक को १९३८ की वुड एंड एबॉट कमेटी के अनुवर्ती के रूप में देखा गया था। इसे १९४१ में दिल्ली पॉलिटेक्निक के रूप में स्थापित किया गया था। तकनीकी स्कूल भारतीय उद्योगों की मांगों को पूरा करने के लिए बनाया गया था। उस समय दिल्ली पॉलिटेक्निक ने कला, वास्तुकला, वाणिज्य, अभियांत्रिकी, अनुप्रयुक्त विज्ञान और वस्त्र में पाठ्यक्रमों की पेशकश की। वाल्टर विलियम वुड दिल्ली पॉलिटेक्निक के संस्थापक प्रधानाचार्य बने। यह दिल्ली का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज बन गया और स्वतंत्रता से पहले स्थापित भारत के कुछ इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक था।[2]

दिल्ली पॉलिटेक्निक द्वारा प्रदान किया जाने वाला राष्ट्रीय डिप्लोमा बीई के समकक्ष माना जाता था। तत्कालीन यूपीएससी द्वारा डिग्री। कॉलेज 1952 में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध था और औपचारिक डिग्री स्तर के कार्यक्रम शुरू किए।[3]

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग

१९६२ तक दिल्ली पॉलीटेक्निक भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के सीधे नियंत्रण में था। १९६३ से दिल्ली पॉलिटेक्निक को तत्कालीन दिल्ली प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया और मुख्य आयुक्त दिल्ली कॉलेज के अध्यक्ष थे। यह बाद में केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का एक कॉलेज बन गया। १९६३ में कला विभाग कला महाविद्यालय बन गया और वाणिज्य और व्यवसाय प्रशासन विभाग को वाणिज्य और सचिवीय अभ्यास के कई संस्थानों में बदल दिया गया। दिल्ली पॉलिटेक्निक का विखंडन अंततः एक इंजीनियरिंग संस्थान को अकेला छोड़ गया। १९६२ में, कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध था। १९६५ में, दिल्ली पॉलिटेक्निक का नाम बदलकर दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग कर दिया गया और यह दिल्ली का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज बन गया, अब इसे दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कहा जाता है।

उत्पादन और औद्योग की अभियांत्रिकी में स्नातक १९८८ से मिलना शुरू हुआ जबकि कंप्युटर अभियांत्रिकी में स्नातक १९८९ में शुरू हुआ। पॉलीमर विज्ञान और रसायन विज्ञान और पर्यावरण अभियांत्रिकी में स्नारक की शुरुआत १९९८ में हुई। इस युग के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और नई सहस्राब्दी की शुरुआत में सूचना प्रौद्योगिकी में स्नारक को २००२ में जोड़ा गया। जैव-प्रौद्योगिकी में शैक्षणिक सत्र २००४-२००५ से शुरू किया गया था।[4]

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का वास्तुकला विभाग स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर बन गया, जो अब एक मानित विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है। कला और मूर्तिकला विभाग कॉलेज ऑफ आर्ट्स बन गया और हौज खास में अपने नए परिसर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए रासायनिक प्रौद्योगिकी और वस्त्र प्रौद्योगिकी विभागों को एन-ब्लॉक में स्थानांतरित कर दिया गया। बाद में वाणिज्य विभाग को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन संकाय की स्थापना डीसीई के प्रोफेसर ए दास गुप्ता ने की। दिल्ली प्रशासन ने 1985 में दिल्ली प्रौद्योगिकी संस्थान (वर्तमान में नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी संस्थान) की स्थापना की और दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के संरक्षण में नए कॉलेज की स्थापना की गई। डीसीई ने कश्मीरी गेट परिसर में एनएसआईटी के साथ अपना परिसर साझा किया, हालाँकि बाद में, एनएसआईटी को १९३८ की वुड एंड एबट कमेटी के अनुवर्ती के रूप में द्वारका में स्थानांतरित कर दिया गया था। दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग इस प्रकार भारतीय सहित कई राष्ट्रीय संस्थानों की मातृ संस्था है जिनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर दिल्ली, कॉलेज ऑफ आर्ट, दिल्ली और फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज शामिल हैं।

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का चिह्न

डीसीई-डीटीयू पुनर्गठन और २००९-१० में संबंधित विरोध

जुलाई २००९ में दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग को केन्द्रीय सरकार के अंदर एक मामूली कॉलेज से बढ़ाकर एक राज्य विश्वविद्यालय बना दिया गया, और उसके नाम को दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बिल २००९ के माध्यम से बदलकर दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय रखा गया।[5] प्रीतम बाबू शर्मा को विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के रूप में चुना गया।[6] इस निर्णय के कारण छात्रों ने विरोध जताया, क्योंकि एक नामी केन्द्रीय संस्थान को राज्य संस्थान में बदलने से उसकी प्रतिभा और उसकी डिग्री की कीमत गिर जाएगी।[7] मार्च २०१० में छात्रों ने आने वाली मध्य छमाही परीक्षा का बहिष्कार करने का निर्णय लिया,[8] साथ ही कुलपति को बदलने की भी माँग की। हालाकी दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने छात्रों को भरोसा दिलाया कि उनकी अवधि में इस बदलाव को नहीं लाया जाएगा और उन्हें दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की ही डिग्री दी जाएगी, जिसके बाद प्रदर्शन रुक सका।

परिसर

संगणक केन्द्र, प्लेसमेंट ब्लॉक और विज्ञान ब्लॉक
परिसर का मुख्य प्रवेश द्वार

परिसर का कश्मीरी गेट से बवाना रोड मे स्थानानान्तरण 1995 में शुरु हुआ और नए परिसर मे 1999 से औपचारिक रूप से पूर्ण कालिक चार वर्षीय पाठ्यक्रमों का अध्ययन शुरू किया गया। नया परिसर अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह एक अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त परिसर है- जिनमे एक केंद्रीकृत कम्प्यूटर केन्द्र, एक आधुनिक पुस्तकालय प्रणाली, एक खेल परिसर, आठ लड़कों के छात्रावास, तीन लड़कियों के छात्रावास और एक शादीशुदा जोड़ों का छात्रावास शामिल हैं। परिसर मे संकाय और स्टाफ के लिए भी आवासीय सुविधाओं उपलब्ध हैं।

प्रवेश

दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज और नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी संस्थान में एक पूर्ण कालिक इंजीनियरिंग स्नातक की उपाधि के लिये दिल्ली विश्वविद्यालय, संयुक्त प्रवेश परीक्षा (CEE) और केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अखिल भारतीय इंजिनीयरिंग प्रवेश परीक्षा का संचालन करता है। संस्थान की कुल 570 सीटों में से 85% राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली या दिल्ली क्षेत्र के उच्च विद्यालयों से उत्तीर्ण छात्रों के लिए आरक्षित हैं, जबकि शेष 15% सीटें दिल्ली क्षेत्र के बाहर के उम्मीदवारों के लिए हैं जिनकी भर्ती अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर होती है।

दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज में एक स्नातकोत्तर उपाधि पाठ्यक्रम मे प्रवेश GATE की अर्हक परीक्षा में प्रदर्शन के तथा उसके बाद होने वाले साक्षात्कार के आधार पर होता है।

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. ":: दिल्ली टेक्निकल विश्विद्यालय में सुशांत सिंह राजपूत ने इंजीनियरिंग मे दाखिला लिया::".
  2. "List of Indian engineering colleges before Independence – Sri Vinayaka Educational Trust" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-10-08.
  3. "History  | Delhi Technological University". www.dtu.ac.in. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
  4. "History of DCE". web.archive.org. 2007-09-27. मूल से पुरालेखित 27 सितंबर 2007. अभिगमन तिथि 2021-10-08.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  5. "DCE upgraded - Times Of India". web.archive.org. 2013-11-01. मूल से 1 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
  6. "'Research and innovation are the key words' - Times Of India". web.archive.org. 2013-11-01. मूल से 1 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
  7. "Big league dreams dashed with erosion of brand DCE - Times Of India". web.archive.org. 2013-05-30. मूल से 30 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
  8. "DTU, students face-off intensifies - Times Of India". web.archive.org. 2013-11-01. मूल से 1 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-10-08.