दर्शन सिंह
दर्शन सिंह | |
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जन्म | 14 सितंबर 1921 |
मौत | 30 मई 1989 |
आवास | दिल्ली, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | संत मत |
जीवनसाथी | हरभजन कौर |
बच्चे | राजिंदर सिंह (पुत्र) |
माता-पिता | कृपाल सिंह (पिता) |
वेबसाइट साईंस ऑफ स्पिरिचुएलिटी, [ज्योति मेडिटेशन] |
दर्शन सिंह | |
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साहित्यिक कार्य | मता-ए-नूर, मंज़िल-ए-नूर |
कथन | अपने ही यार की तो हैं, जितनी भी हैं निशानियाँ। दैर मिले तो सर झुका, काबा मिले सलाम कर।। |
धर्म | हिन्दू |
सन्त दर्शन सिंह (1921–1989) भारत के आधुनिक काल के आध्यात्मिक गुरुओं में थे। दिल्ली स्थित सावन कृपाल रुहानी मिशन से संचालित सन्त मत विचारधारा के प्रणेता रहे। उर्दू व फारसी में वे सिद्धहस्त थे तथा सूफ़ी रहस्यात्मक शायरी में कई अत्यंत गहरी रचनाएँ उन्होंने मानवजाति को दीं।
प्रारंभिक जीवन
दर्शन सिंह जी का जन्म १४ सितंबर १९२१ को हुआ। उनके पिता संत कृपाल सिंह जी बाबा सावन सिंह जी के अनुयायी थे। ५ वर्ष की आयु में ही दर्शन ने बाबा सावन सिंह जी से सुरत शब्द योग की दीक्षा प्राप्त की तथा उनके मार्गदर्शन में रुहानी सफर शुरु किया। 1948-1974 तक पिता कृपाल सिंह के मार्गदर्शन में यह सफर जारी रहा। 1974 में संत कृपाल सिंह जी इन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करके परमेश्वर के चरणों में लीन हुए।
दर्शन सिंह जी की शिक्षा लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय के सरकारी कॉलेज में हुई। ३७ वर्ष की सरकारी नौकरी के पश्चात् १९७९ में वे वित्त मंत्रालय में डिप्टी सचिव के पद से रिटायर हुए।
आध्यायात्मिक गुरु
उन्होंने दिल्ली में सावन कृपाल रुहानी मिशन की स्थापना की। इनके नेतृत्व में दिल्लि में कृपाल आश्रम की स्थापना हुई तथा इस मिशन के ५५० से अधिक केंद्र ४० देशों में स्थापित हुए।
आपने छटे कॉन्फ्रेन्स ऑफ वर्ल्ड फेलोशिप ऑफ रिलिजन्स, एशियन कॉन्फ्रेन्स ऑफ रिलिजन्स फॉर पीस तथा दिल्ली में आयोजित पंद्रहवें मानव एकता सम्मेलन का नेतृत्व भी किया।
1986 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा आंतरिक और बाह्य शांति के विषय पर अपना संदेश देने के लिये आमंत्रित किया गया। वहाँ दिये गये अपने संदेश में उन्होंने सकारात्मक अध्यात्म (positive mysticism) पर ज़ोर दिया, जिसके अंतर्गत हम परिवार, समाज और विश्व के प्रति अपने समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते हैं। [1]
रचनाएँ
पुस्तकें
- तलाश-ए-नूर
- मता ए नूर
- मंज़िल-ए-नूर
संगीत एलबम
संत दर्शन सिंह जी द्वारा रचित कुछ चुनिंदा ग़ज़लों को प्रख्यात ग़ज़ल गायक गुलाम अली ने अपनी आवाज़ में टी-सीरीज़ द्वारा प्रकाशित एलबम कलाम-ए-मोहब्बत में गाया।[2]
कुछ चुनिंदा शे'र
राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी, राज़-ए-निहाँ है आज भी। वहम-ओ-गुमाँ अज़ल में थी, वहम-ओ-गुमाँ है आज भी।।
सम्मान
अपनी रूहानी शायरी की कि़ताबों के लिये चार बार उर्दू अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। [1]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 दिसंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 जनवरी 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 जनवरी 2015.