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तेय्यम

മുച്ചിലോട്ടു ഭഗവതി തെയ്യം
കുണ്ടാർ ചാമുണ്ഡി തെയ്യത്തിന്റെ അഗ്നിപ്രവേശം
ചാമുണ്ഡി തെയ്യത്തിന്റെ മോന്തിക്കോലം
പുതാടി ദൈവം

तेय्यम (तेय्याट्टम अथवा तिरा), केरल के उत्तर मलबार इलाके की एक प्रमुख पूजा अनुष्ठान है। यह अनुष्ठान, मुख्य रूप में कोलत्तु-नाड इलाके मे (वर्तमान प्रदेश - कासर्गोड, कण्णूर जिलाएँ, वयनाड जिले की मानन्ततवाटी तालूका, कोष़िक्कोड जिला के वडकरा और कोइलाण्डि तालूका) और कर्णाटक के कोडगु और तुलुनाडु इलाके में एक जीते-जागते पंथ के रूप मे दो हजार साल पुरानी रीति और विधिओं से निष्पादित किया जाता है। तेय्यम के निष्पादक समाज की निछ्ली जातियों के सदस्य होते हैं और उनकी इस कलारूप में खास योगदान है। इन इलाकों के लोग, तेय्यम को भगवान के प्रतिरूप मानते हैं और इनसे आशीर्वाद लेते है। तुलु नाडु इलाके मे इसको भूत- कोल कह्ते हैं।

इतिहास

ऐतिहासिक केरलोत्पत्ति के हिसाब से, परशुराम ने ही कलियाट्टम, पूरवेला और दैवाट्टम अथवा तेय्याट्टम जैसी कलारूपों को उत्तर मलबार मे स्थापित की थी।[संदिग्ध] उन्होंने ही मलयर, पाणन, वण्णान, वेलर जैसी आदिवासी समुदायों मे तेय्यम के निष्पादन की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी। यह अनुष्ठान जिसमें चढावे के रूप मे शराब, मांस आदि का इस्तेमाल किया जाता है, मन्दिरों में नम्बूदिरी ब्राह्मणों द्वारा किए गए सात्त्विक अनुष्ठानों के साथ अस्तित्व का दावा लेती है। हमेशा से नायर समुदाय जैसे सत्तारूढ वरगों द्वारा प्रायोजक किए जाने के कारण, तेय्यम और अन्य सात्त्विक उत्सव समान तरीके से मनाया जाता था। तेय्यम द्राविडों की कलारूप है। तेय्यम के पीछे यह क्रान्तिकारी सङकलपना भी है, कि ऊँचे जाति के लोगों को भी तेय्यम रूप मे प्रतिष्ठित भगवान की पूजा करनी होती है, जिससे, तेय्यम केरल के जाति व्यवस्था के खिलाफ है।

तेय्यम की उत्पत्ति का श्रेय मनक्काडन गुरुक्कल को दिया जाता है (गुरुक्कल से शिक्षक का तात्पर्य है)। वे "वण्णान" जाति के प्रमुख कलाकार थे। कहा जाता है कि चिरक्कल प्रदेश के राजा ने एक बार उनके जादुई शक्तियों की परीक्षा करने के लिए अपने राज- सभा में निमन्त्रित किया। गुरुक्कल, करिवेल्लूर प्रदेश के मनक्काड इलाके मे रह्ते थे। उनकी यात्रा के बीच राजा ने उनकी परीक्षा करने के लिए कई रुकावटों का इंतेजाम कर लिया था। लेकिन गुरुक्कल ने अपनी शक्तियों से सभी परीक्षाएँ पार कर ली और राजा के समक्ष आ पहुँचे। गुरुक्कल की शक्तियों से प्रभावित होकर राजा ने उनको, कुछ देवताओं के पोशाक बनाने का उत्तरदायित्व सौंप दी, जिनके प्रयोग करके अनुष्ठानीय नृतयों का आयोजन करना था। गुरुक्कल ने सुर्योदय से पहले ३५ अलग- अलग पोशाक बना डाले। उनके प्रभुत्व से प्रभावित होकर राजा ने गुरुक्कल को "मनक्काड्न " की उपाधि प्रदान की। तेय्यम के वर्त्मान रूप के पीछे यही ऐतिहय है।

उप पंथों का वर्गीकरण

तेय्यम पंथ की मुख्य धारा को प्राचीन, आदिवासी तथा धार्मिक पूजाओं ने चौडा बना दिया है और परिणाम स्वरूप लाखों का लोक-धर्म बना दिया है। उदाहरण में, भगवती तेय्यम की पंथ, जिसे देवी की मातृ रूप में पूजा की जाती है, देवी के मूल रूप से व्युत्पन्न है। इसके अलावा आत्माओं की पूजा, नाग- पूजा, वृक्ष- पूजा, वीर- पूजा, ग्राम-देवता की पूजा आदि तेय्यम पंथ की मूल धारा में मौजूद है। इन देवताओं के साथ, अनेक लोक-देवताएँ भी शामिल है। देवियों का तेय्यम भगवती के नाम से जाना जाता है। (सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा के मेल से बनी दिव्य रूप)

हिन्दु धर्म के विविध शाखाएँ, जैसे वैष्णविसम, शैविसम और शक्तिसम आज तेय्यम की पंथ पर हावी बैठे है। कुछ केन्द्रों में, हैन्दव, बौद्द, जैन आचारों के खिलाफ होने पर भी जानवरों की बलि चढाई जाती है। इन केन्द्रों में, मूल मन्दिरओं से दूर् प्रत्येक क्षेत्रों की योजना की जाती है जहा पर बलि चदाई जाती है और एक पारंपरिक "कलम" बनाया जाता है, जिसे, वडक्कनवातिल कहते है। अकसर मुर्गों की लडाई भी आयोजित की जाती है। खून की आहुति के नाम पर, मुर्गों की यह लडाइ, छोटे और बडे संस्कृतियों की मेल का प्रमाण है।

अनुष्ठान का निष्पादन

Thottam vishnumoorthi

अनुष्ठान के प्रथम विधि को तोट्टम कह्ते है, जिसमे निष्पादक सरल से पोशाक में सरल से अलंकार में, मन्दिर के गर्भ-ग्रह के सामने खडे होकर देवता के किस्सों का गान करते है या अल्प श्रृंगार के साथ तेय्यम से जुडे हुए ऐतिह्य पर आधारित जोशीले नृत्य का प्रदर्शन करते है। "तोट्टम पाट " नामक इस प्रदर्शनी के बाद, निष्पादक मुख्य क्रिया की तैयारी करने के लिए विदाई लेते है। यह तैयारी शुरू होती है, मुख की श्रृंगार से, जिसमें, हर एक रेखा की अलग ही मतलब होती है और खत्म होती है विस्तृत पोशाक के पह्नाव से। शिरोभूषण जो कि पोशाक का सबसे पवित्र तथ्य है, देवत की मूर्ति के साम्ने पहना जाता है, पार्ंपरिक वाध्यों के साथ कलाकार अपना प्रतिबिंब आइने में देखता है। यह इस कलारूप का अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं प्रतीकात्मक मुहूर्त है, क्योंकि कलाकार आइने में अपना प्रतिबिंब ही नहीं, बल्कि उस दैवी शक्ति को भी मह्सूस करता है, जिसका वह प्रतीक है। अनुष्ठान के आगे बढने पर, पार्ंप्रिक पोशाक और अल्ंकार से सुसज्जित कलाकार मन्दिर के चारों और दौडता, नृत्य करता, "चेण्डा" (वाध्य उपकरण) के ताल के संग भक्तों को आशीर्वाद देता है। आशीर्वाद देनी के अवसर पर कलाकार, दैवी शैली में प्रवचन देता है, जो उसके आम ढंग के बातचीत से विभिन्न होता है। इस प्रक्रिया के दौरान, एक दिव्य वातावरण पैदा हो जाता है।

तेय्यम कलाकार की पोशाक

Getting ready for the act

हर एक तेय्यम की पोशाक एवं मुख-अलंकार उसके ऐतिह्य एवं कहानी पर निर्भर होती है, जो उस प्रत्येक तेय्यम के भाव-शैली के बारे में हमें सूचना देती है। विभिन्न तरीके के रंग पदार्थों के इस्तेमाल से, कलाकार खुद ही अपनी पोशाक की तैयारी करते है। ज्यादा तर पोशाक, नारियल पत्तों के आवरणों को काटने के बाद, काले, लाल और सफेद लगाके बनाए जाते है, जिसपर अनेक चित्र बनाए जाते है। ताजे तालपत्रों से आँचल बनाए जाते है, नारियल के खोखले खोलों से स्तन बनाए जाते है और कमर पर एक लाल कपडा ओढ लिया जाता है। तेय्यम घर के या क्षेत्रीय मन्दिर के आँगन में, कुल देवता के आशीर्वादों के साथ, सामान्यतः, रात्रि काल में अनुष्ठित किया जाता है। मुख-कवच, अलंकार, स्तन कवच, कंकण, माला आदि अतीव श्रद्धा के साथ निर्मित किया जाता है।

कुछ प्रमुख तेय्यम रूप

तेय्यम रूपों में सबसे लोक प्रिय है, मुत्तप्पन, ती चामुण्डी, कण्डाकर्णन, गुलिकन, विष्णुमूर्ति, मुच्छिलोट भगवति आदि। इनमें से ती चामुण्डी, अत्यत जोखिमी माना जाता है क्योंकि इस रूप में, तेय्यम आग -अँगारों में नृत्य करके दैवी माहौल बना देता है।


सन्दर्भ

  1. तेय्यम यात्रा
  2. Killius, Rolf (2006), Ritual Music and Hindu Rituals of Kerala, New Delhi: BR Rhythms, ISBN 81-88827-07-X.
  3. Kurup, KKN (March 1986), Theyyam – A Ritual Dance of Kerala, Thiruvananthapuram: Director of Public Relations, Government of Kerala.
  4. The Birth of Indian Civilization, 1968, p. 3039.
  5. A Panorama of Indian Culture: Professor A. Sreedhara Menon Felicitation Volume - K. K. Kusuman - Mittal Publications, 1990 - p.129
  6. A Panorama of Indian Culture: Professor A. Sreedhara Menon Felicitation Volume - K. K. Kusuman - Mittal Publications, 1990 - p.127-128
  7. A Panorama of Indian Culture: Professor A. Sreedhara Menon Felicitation Volume - K. K. Kusuman - Mittal Publications, 1990 - p.130
  8. A Panorama of Indian Culture: Professor A. Sreedhara Menon Felicitation Volume - K. K. Kusuman - Mittal Publications, 1990 - p.128-129