तिल
तिल | |
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तिल के पौधे | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | आवृतबीजी |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Asterids |
गण: | Lamiales |
कुल: | Pedaliaceae |
वंश: | Sesamum |
जाति: | S. indicum |
द्विपद नाम | |
Sesamum indicum L. | |
पर्यायवाची[1] | |
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तिल (Sesamum indicum) एक पुष्पिय पौधा है। इसके कई जंगली रिश्तेदार अफ्रीका में होते हैं और भारत में भी इसकी खेती और इसके बीज का उपयोग हजारों वर्षों से होता आया है। यह व्यापक रूप से दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। तिल के बीज से खाद्य तेल निकाला जाता है। तिल को विश्व का सबसे पहला तिलहन माना जाता है और इसकी खेती ५००० साल पहले शुरू हुई थी।
तिल वार्षिक तौर पर ५० से १०० सेøमीø तक बढता है। फूल ३ से ५ सेøमीø तथा सफेद से बैंगनी रंग के पाये जाते हैं। तिल के बीज अधिकतर सफेद रंग के होते हैं, हालांकि वे रंग में काले, पीले, नीले या बैंगनी रंग के भी हो सकते हैं।
तिल प्रति वर्ष बोया जानेवाला लगभग एक मीटर ऊँचा एक पौधा जिसकी खेती संसार के प्रायः सभी गरम देशों में तेल के लिये होती है। इसकी पत्तियाँ आठ दस अंगुल तक लंबी और तीन चार अंगुल चौड़ी होती हैं। ये नीचे की ओर तो ठीक आमने सामने मिली हुई लगती हैं, पर थोड़ा ऊपर चलकर कुछ अंतर पर होती हैं। पत्तियों के किनारे सीधे नहीं होते, टेढे़ मेढे़ होते हैं। फूल गिलास के आकार के ऊपर चार दलों में विभक्त होते हैं। ये फूल सफेद रंग के होते है, केवल मुँह पर भीतर की ओर बैंगनी धब्बे दिखाई देते हैं। बीजकोश लंबोतरे होते हैं जिनमें तिल के बीज भरे रहते हैं। ये बीज चिपटे और लंबोतरे होते हैं।
भारत में तिल दो प्रकार का होता है— सफेद और काला। तिल की दो फसलें होती हैं— कुवारी और चैती। कुवारी फसल बरसात में ज्वार, बाजरे, धान आदि के साथ अधिकतर बोंई जाती हैं। चैती फसल यदि कार्तिक में बोई जाय तो पूस-माघ तक तैयार हो जाती है। वनस्पतिशास्त्रियों का अनुमान है कि तिल का आदिस्थान अफ्रीका महाद्वीप है। वहाँ आठ-नौ जाति के जंगली तिल पाए जाते हैं। पर 'तिल' शब्द का व्यवहार संस्कृत में प्राचीन है, यहाँ तक कि जब अन्य किसी बीज से तेल नहीं निकाला गया था, तव तिल से निकाला गया। इसी कारण उसका नाम ही 'तैल' (=तिल से निकला हुआ) पड़ गया। अथर्ववेद तक में तिल और धान द्वारा तर्पण का उल्लेख है। आजकल भी पितरों के तर्पण में तिल का व्यवहार होता है।
वैद्यक में तिल भारी, स्निग्ध, गरम, कफ-पित्त-कारक, बलवर्धक, केशों को हितकारी, स्तनों में दूध उत्पन्न करनेवाला, मलरोधक और वातनाशक माना जाता है। तिल का तेल यदि कुछ अधिक पिया जाय, तो रेचक होता है।
सन्दर्भ
- ↑ "The Plant List: A Working List of All Plant Species". मूल से 2 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 January 2015.