तवाफ़
तवाफ़ (अरबी: طواف, अंग्रेज़ी: Tawaf) इस्लाम की महत्वपूर्ण हज तीर्थयात्रा के दौरान की जाने वाली एक रीत है जिसमें मुस्लिम तीर्थयात्री मक्का के पवित्र काबा भवन की सात बार घड़ी-विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं। एक ही दिशा में एक साथ परिक्रमा करना सभी भक्तजनों की एक ईश्वर में विशवास से बनी एकता और उसकी प्रति भक्ति दर्शाता है।[1]
रीति
परिक्रमा काबा के कोने में लगे 'हजर अस्वद' नामक काले पत्थर से शुरू होती है। अगर संभव हो तो इस चूमना या छूना होता है। अक्सर बड़ी भीड़ के कारण यह मुमकिन नहीं होता इसलिए पत्थर की तरफ़ ऊँगली करना या उसकी तरफ़ हथेली करना भी पार्याप्त माना जाता है। हर दफ़ा पत्थर के पास आते हुए 'तकबीर प्रार्थना' ('अल्लाह ओ अकबर') कहनी होती है। पुरुषों को पहली तीन परिक्रमाएँ तेज़ी से और बाद की चार परिक्रमाएँ साधारण चलने की गति पर करने को कहा जाता है।[1]
परिक्रमाओं के बाद मुस्लिम पास ही स्थित 'मक़ाम इब्राहिम' पर जाते हैं जहाँ वे दो प्रार्थनाएँ कहते हैं और पवित्र 'ज़मज़म के कुँए' से पानी पीते हैं। मुस्लिमों को कहा जाता है कि वे कम से कम दो तवाफ़ ज़रूर करें। पहली तवाफ़ हज के हिस्से के तौर पर और दूसरी मक्का छोड़ने से पहले।[2]
शब्द का ग़ैर-धार्मिक प्रयोग
आम हिन्दी-उर्दु में अक्सर 'तवाफ़' को 'चक्कर लगाने' के लिये प्रयोग किया जाता है। मसलन 'चाँद का तवाफ़' का अर्थ है आकाश में चाँद का चलते रहना। शायरी में भी इसका बहुत प्रयोग होता है, जैसे कि:
- लम्बे सफ़र की ओट में पल भर नहीं रुका, मैं वक़्त के फ़रेब में आकर नहीं रुका,
- बस यह हुआ कि आख़री लम्हा भी आ गया, दिल का तवाफ़ कूचा-ए-दिलबर नहीं रुका।
और:
- तूफ़ान कर रहा था मेरे अज़्म का तवाफ़,
- और वो समझ रही थी मेरी कश्ती भँवर में है।
- अर्थ:
- तूफ़ान डरा हुआ मेरे दृढ़ निश्चय के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहा था,
- उसने देखकर समझा कि मेरी नाव भँवर में फंसी हुई मुसीबत में है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ Arabia reborn, George Kheirallah, University of New Mexico Press, 1952, ... The Tawaf begins at the Black Stone, and is performed in seven rounds, the first three at a running walk (harwala), and the others at an ordinary walking pace, with the Ka'ba to the left throughout the circuits ...
- ↑ The Religion of Islam, Maulana Muhammad Ali, pp. 384, eBookIt.com, 2011, ISBN 978-1-934271-18-6, ... The tawaf begins at the Hajar al-Aswad (the Black Stone) which is kissed (Bu. 25:55), but even the making of a sign over it is sufficient (Bu. 25:59,60). The Holy Prophet used to kiss both the rukn al-yamani and the Hajar al-Aswad, but many Companions are reported as kissing all the four corners of the Ka'bah ...