तर्कसंगत आत्महत्या
सर्वप्रथम आत्महत्या को हम तर्कसंगत नहीं ठहरा सकते हैं। वहीं आत्महत्या निराशा की चरम अवस्था है इससे हम इंकार भी नहीं कर सकते हैं । इस प्रकार व्यक्ति में निराशा की अवस्था में तर्क के अंतिम शिखर पर पहुचकर शून्यता का आभास होता है यानि कि जीवन अर्थहीन है, जीवन की समाप्ति ही कारगर उपाय है, दुखों से निजात पाने का हर समय नकारात्मक विचार मन में उठते हैं जिससे बुद्धि का तर्क के साथ सामंजस्य होने का पता चलता है।