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तराना-ए-मिल्ली

इक़बाल

तराना-ए-मिल्ली (ترانۂ ملی‎) मुहम्मद इक़बाल द्वारा लिखी गई एक उर्दु शायरी है जिसमें उन्होंने नस्ली राष्ट्रवाद के बजाय मसलानों को बतौर मुस्लिम के रहने और इस पर गर्व होने का प्रदर्शन भी किया गया है। उन्होंने यह कविता तराना-ए-हिन्दी के जवाब में लिखी है, जब उन्होंने अपने दृष्टिकोण को बदलकर द्विराष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर लिया।[1][2]

पाठ

मूल नस्तालीक़ पाठ

مسلم ہیں ہم، وطن ہے سارا جہاں ہماراچین و عرب ہمارا، ہندوستان ہمارا
آساں نہیں مٹانا، نام و نشاں ہماراتوحید کی امانت، سینوں میں ہے ہمارے
ہم اس کے پاسباں ہیں، وہ پاسباں ہمارادنیا کے بتکدوں میں، پہلا وہ گھر خدا کا
خنجر ہلال کا ہے، قومی نشاں ہماراتیغوں کے سایے میں ہم، پل کر جواں ہوئے ہیں
تھمتا نہ تھا کسی سے، سیلِ رواں ہمارامغرب کی وادیوں میں، گونجی اذاں ہماری
سو بار کر چکا ہے، تو امتحاں ہماراباطل سے دبنے والے، اے آسماں نہیں ہم
تھا تیری ڈالیوں میں، جب آشیاں ہمارااے گلستانِ اندلُس! وہ دن ہیں یاد تجھ کو
اب تک ہے تیرا دریا، فسانہ خواں ہمارااے موجِ دجلہ، تو بھی پہچانتی ہے ہم کو
ہے خوں تری رگوں میں، اب تک رواں ہمارااے ارضِ پاک تیری، حرمت پہ کٹ مرے ہم
اس نام سے ہے باقی، آرامِ جاں ہماراسالارِ کارواں ہے، میرِ حجاز اپنا
ہوتا ہے جادہ پیما، پھر کارواں ہمارااقباؔل کا ترانہ، بانگِ درا ہے گویا

देवनागरी

चीनअरब हमारा, हिन्दोसताँ हमारा मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहाँ हमारा
तौहीद की अमानत, सीनों में है हमारे आसाँ नहीं मिटाना, नाम ओ निशाँ हमारा
दुनिया के बुतकदों में, पहले वह घर ख़ुदा काहम इस के पासबाँ हैं, वो पासबाँ हमारा
तेग़ों के साये में हम, पल कर जवाँ हुए हैं ख़ंजर हिलाल का है, क़ौमी निशाँ हमारा
मग़रिब की वादियों में, गूँजी अज़ाँ हमारी थमता न था किसी से, सैल-ए-रवाँ हमारा
बातिल से दबने वाले, ऐ आसमाँ नहीं हम सौ बार कर चुका है, तू इम्तिहाँ हमारा
ऐ गुलिस्ताँ-ए-अंदलुस! वो दिन हैं याद तुझको था तेरी डालियों में, जब आशियाँ हमारा
मौज-ए-दजला, तू भी पहचानती है हमको अब तक है तेरा दरिया, अफ़सानाख़्वाँ हमारा
ऐ अर्ज़-ए-पाक तेरी, हुर्मत पे कट मरे हम है ख़ूँ तरी रगों में, अब तक रवाँ हमारा
सालार-ए-कारवाँ है, मीर-ए-हिजाज़ अपना इस नाम से है बाक़ी, आराम-ए-जाँ हमारा
इक़बाल का तराना, बाँग-ए-दरा है गोया होता है जादा पैमा, फिर कारवाँ हमारा

आधुनिक हिन्दी में अर्थ व विश्लेषण

केन्द्रीय एशिया (इक़बाल के ज़माने में "चीन" का मतलब अलग था) हमारा है, अरब हमारा है, भारत हमारा है

हम मुसलमान हैं और पूरी दुनिया हमारा वतन है

हमारा नामोनिशान मिटाना आसान नहीं होगा

एकेश्वरवाद का ख़ज़ाना हमारे दिलों में है

काबा सबसे पहला स्थान है जिसे हमने मूर्तिपूजकों से मुक्त किया

हम इसके रक्षक हैं और ये हमारा रक्षक है

वर्धमान कटार हमारा राष्ट्रीय चिह्न है

हमारी उपासना की पुकार पश्चिमी दुनिया की घाटियों में गूँजती है

हमारी शक्ति किसी को नहीं रोक पाएंगे

हे आकाश! यह असत्यता हमें नहीं रोकेंगे

सौ बार के लिए तू ने हमारी परीक्षण ली है

हे आन्दलुसिया का बग़ीचा! तुझको वह दिन याद है?

जब हम तेरी डालियों पर बसे हुए थे

हे दजला की लहरें! तू भी हमें पहचानती है

तू आज तक हमारी कहानियों को सुनाती है

हे पवित्र भूमि! हम तुम्हारे लिए खून बहाने के लिए तैयार है

यह खून अभी भी हमारे रगों में है

हमारा इस आंदोलन के अगुआ हमारा अपना मुहम्मद है

उनके नाम से हमारे दिलों को सुख शान्ति मिलते है

इक़्बाल का यह गीत एक स्पष्ट पुकार है

ताकि हमारे यह आंदोलन जारी पर रखा जा सकता है

सन्दर्भ

  1. "Is Allama Iqbal relevant in today's politics?". Daily Tribune.com.pk. 2012-04-16. मूल से 18 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-07.
  2. "AT THE CROSS ROADS When the land becomes motherland". Daily Tribune India.com. 2006-09-10. मूल से 6 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-07.

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