डी॰वी॰ गुंडप्प
डी॰वी॰ गुंडप्प | |
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जन्म | 17 मार्च 1887 मुलबागल |
मौत | 7 अक्टूबर 1975 बेंगुलुरु |
नागरिकता | ब्रिटिश राज, भारत |
पेशा | दार्शनिक, कवि, लेखक |
प्रसिद्धि का कारण | श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग |
पुरस्कार | पद्म भूषण[1] |
डी वी गुण्डप्प या डीवीजी (1887 – 1975) कन्नड साहित्यकार एवं दार्शनिक थे।
गुंडप्प को अपने कार्यक्षेत्र कर्नाटक से बाहर अधिक प्रसिद्धि नहीं मिल सकी। यहां उन्होंने राजनीतिक सुधार और सामाजिक जागृति के लिए 50 वर्षों तक काम किया। उन्होंने इस कार्य को अपने लेखन के द्वारा प्राप्त करने की कोशिश की। उनके लेखन में गीत, कविताएं, नाटक, राजनीतिक पर्चे, जीवनियां और भगवतगीता पर टीका शामिल हैं। वे पूरी तरह से आदर्श लोकतंत्र के समर्थक थे अनुशासन पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुशासनहीनता लोकतंत्र की दुश्मन है। उन्हें कर्नाटक सरकार ने पेंशन देने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इसे यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे जनता के बीच अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक रखने के उनके अधिकार पर अंकुश लग जाएगा।
इनके द्वारा रचित एक दार्शनिक व्याख्या श्रीमद्भगवद्गीता तात्पर्य अथवा जीवन धर्मयोग के लिये उन्हें सन् १९६७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कन्नड़) से सम्मानित किया गया।[2]
समग्र साहित्य
काव्य
- निवेदन
- उमरन ऒसगॆ
- मंकुतिम्मन कग्ग - भाग १
- मरुळ मुनियन कग्ग - भाग २
- श्रीराम परीक्षणं
- अन्तःपुरगीतॆ
- गीत शाकुंतला
निबंध
- जीवन सौंदर्य मत्तु साहित्य
- साहित्य शक्ति
- संस्कृति
- बाळिगॊंदु नंबिकॆ
नाटक
- विद्यारण्य विजय
- जाक् केड्
- म्याक् बॆथ्
सन्दर्भ
- ↑ "The Times of India Directory and Year Book Including Who's who".
- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.