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डीडीटी

DDT
DDT की रासायनिक संरचना
पहचान आइडेन्टिफायर्स
सी.ए.एस संख्या[50-29-3][CAS]
पबकैम 3036
केईजीजीD07367
रासा.ई.बी.आई16130
SMILES
InChI
कैमस्पाइडर आई.डी 2928
गुण
रासायनिक सूत्रC14H9Cl5
मोलर द्रव्यमान354.49 g mol−1
घनत्व 0.99 g/cm3
गलनांक

108.5 °C, 382 K, 227 °F

क्वथनांक

260 °C, 533 K, 500 °F

जल में घुलनशीलता25 μg/L (25 °C)[1]
खतरा
Main hazardsविषैला, पर्यावरण के लिए हानिकारक, सम्भावित कैंसरजनक
NFPA 704
2
2
0
 
यू.एस अनुज्ञेय
अवस्थिति सीमा (पी.ई.एल)
TWA 1 mg/m3 [skin]
एलडी५०113–800 mg/kg (rat, oral)[1]
250 mg/kg (rabbit, oral)
135 mg/kg (mouse, oral)
150 mg/kg (guinea pig, oral)[2]
जहां दिया है वहां के अलावा,
ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं।


डीडीटी (DDT) या "डाईक्लोरो-डाईफेनिइल-ट्राईक्लोरोएथेन" (Dichloro-Diphenyl-Trichloroethane) एक रंगहीन, स्वादहीन और लगभग गंधहीन क्रिस्टलीय रासायनिक यौगिक है। [3] यह एक कार्बक्लोराइड (organochloride) है। इसका विकास मूलतः एक कीटनाशी के रूप में किया गया था किन्तु इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों के चलते इसका उपयोग बन्द या कम करना पड़ा। यह पहला आधुनिक कीटनाशक था जो मलेरिया के विरूद्ध प्रयोग किया गया था, किन्तु 1950 के बाद इसे कृषि कीटनाशी रूप में प्रयोग करने लगे थे।

सबसे पहले डीडीटी का संश्लेषण सन १८७४ ई में ऑस्ट्रिया के रसायनज्ञ ऑथमर जिडरलर ने किया था। इसके कीटनाशी प्रभावों की खोज सन १९३९ में स्वीडेन के रसायनविद पाउल हर्मान मूलर (Paul Hermann Müller) ने किया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के द्वितीयार्ध में आम जनता और सैनिकों में मलेरिया तथा टाइफस के प्रसार को रोकने के लिए इसका उपयोग किया गया था। सन १९४८ में मूलर को चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।[4] (C14H9Cl5)

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; ATSDRc5 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. साँचा:IDLH
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; EHC009 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. NobelPrize.org: The Nobel Prize in Physiology of Medicine 1948, accessed July 26, 2007.

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