डिंबग्रंथिउच्छेदन
उदर चीरकर स्त्रियों की डिंबग्रंथियों के अर्बुद निकालने के शल्यकर्म (सर्जरी) को डिंबग्रंथिच्छेदन (ovariectomy या Oophorectomy) कहते हैं। जब अर्बुद मारक (malignant) मालूम होता है, जब उसके मारक या अमारक (innocent) होने का ठीक ठीक ज्ञान नहीं हो पाता, जब उसके मारक (malignant) न होते हुए भी धीरे-धीरे बहुत बढ़ने की तथा शरीर को क्षीण करके मारक होने की आशंका होती है, जब उसमें वृंत होने से अक्षीय घूर्णन (axial rotaion) या मरोड़ (twist) उत्पन्न होने का डर बना रहता है और जब एक्स किरणों की तथा अन्य चिकित्सा निष्फल सिद्ध होती है, तब यह शल्यकर्म किया जाता है। यह बड़ा शल्यकर्म है, जिसमें अर्बुद एक ग्रंथि में होते हुए भी उसके साथ दोनों डिंबग्रंथियाँ निकाली जाती हैं। अर्बुद बड़ा होने पर उसके साथ डिंबवाही नलिका का भी कुछ अंश निकाला जाता है और जब अर्बुद मारक होता है तब उसके साथ दोनों डिंबग्रंथियों को तथा गर्भाशय को भी निकाल दिया जाता है। यह शल्यकर्म सर्वप्रथम केंटकी के इफ्रेम मैकडॉवेल (Ephraim Mcdowell) द्वारा किया गया था।
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