ठोस
ठोस (solid) पदार्थ की एक अवस्था है, जिसकी पहचान पदार्थ की संरचनात्मक दृढ़ता और विकृति (आकार, आयतन और स्वरूप में परिवर्तन) के प्रति प्रत्यक्ष अवरोध के गुण के आधार पर की जाती है। ठोस पदार्थों में उच्च यंग मापांक और अपरूपता मापांक होते है। इसके विपरीत, ज्यादातर तरल पदार्थ निम्न अपरूपता मापांक वाले होते हैं और श्यानता का प्रदर्शन करते हैं।
भौतिक विज्ञान की जिस शाखा में ठोस का अध्ययन करते हैं, उसे ठोस-अवस्था भौतिकी कहते हैं। पदार्थ विज्ञान में ठोस पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों और उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करते हैं। ठोस-अवस्था रसायन में पदार्थों के संश्लेषण, उनकी पहचान और रासायनिक संघटन का अध्ययन किया जाता है।
ठोस के अभिलक्षण
ठोस अवस्था के अभिलक्षणिक गुणधर्म निन्नलिखित हैं।
- ये निश्चित द्रव्यमान, आयतन एवं आकार के होते हैं।
- इनमें अंतराआण्विक दूरियाँ लघु होती हैं।
- इनमें उच्चअंतराआण्विक बल प्रबल होते हैं।
- इनके अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों) की स्थितियाँ निश्चित होती हैं और यह कण केवल अपनी माध्य स्थितियों के चारों ओर दोलन कर सकते हैं।
- ये असंपीड्य और कठोर होते हैं।
- इसमें अवयवी कण अणु होते हैं
ठोस के Name
ठोस का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया गया है।
अवयवी कणों की व्यवस्था में उपस्थित क्रम की प्रकृति के आधार पर
ठोसों को उनके अवयवी कणों की व्यवस्था में उपस्थित क्रम की प्रकृति के आधार पर क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय में वर्गीकृत किया जाता है।
क्रिस्टलीय
देखें मुख्य लेख क्रिस्टलीय ठोस
क्रिस्टलीय ठोस साधारणतः लघु क्रिस्टलों की अत्यधिक संख्या से बना होता है, उनमें प्रत्येक का निश्चित ज्यामितिय आकार होता है। क्रिस्टल में परमाणुओंं,अणुओं अथवा आयनों का क्रम सुव्यवस्थित होता है। इसमें दीर्घ परासी व्यवस्था होती है अर्थात् कणों की व्यवस्थाका खास पैटर्न होता है जिसकी निस्चित क्रम से पुनरावृत्ति होती है। क्रिस्टलीय ठोसो का गलनांक निश्चित होता है। क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विद्युतीय प्रतिरोधकता और अपवर्तनांक एक ही क्रिस्टल में भिन-भिन दिशाओं में मापने पर भिन-भिन मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग- अलग दिशाओं में कणों की भिन व्यवस्था से उत्पन्न होता है। भिन-भिन दिशाओं में कणों की व्यवस्था अलग होने पर एक ही भौतिक गुण का मान प्रत्येक दिशा में भिन पाया जाता है।[1] उदाहरण- सोडियम क्लोराइड, क्वार्ट्ज आदि। अधिकतर ठोस पदार्थ क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए सभी धात्विक तत्व; जैसे- लोहा, ताँबा और चाँदी; अधात्विक तत्व; जैसे-सल्फर, फॉसफोरस और आयोडीन एवं यौगिक जैसे सोडियम क्लोराइड, जिंक सल्पाइड और नेप्थेलीन क्रिस्टलीय ठोस हैं। क्रिस्टलीय ठोसों को उनमें परिचालित अंतराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर चार संवर्गो में वर्गीकृत किया जा सकता है- आण्विक, आयनिक, धात्विक और सहसंयोजक। [2]
क्रिस्टलीय ठोस निम्न प्रकार के होते हैं उनके गुण निम्न प्रकार है 1 वह ठोस जिनके के जालक में घटक कणो कि व्यवस्था निश्चित वह नियमित होती है क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं उदाहरण Nacl,kcl,fe.... 2 इनमें दीर्घा परास व्यवस्था पाई जाती है 3 क्रिस्टलीय ठोस विद्लन का गुण प्रदर्शित करते हैं 4 इनके गलनांक उच्च होते हैं व निश्चित होते हैं क्योंकि इनके घटक कणों की व्यवस्था निश्चित वा नियमित होती है, क्रिस्टलीय ठोस को गर्म करने पर एक निश्चित ताप पर ही द्रव में बदलते हैं 5 क्रिस्टलीय ठोस और विषमदैशिकता का का गुण पाया जाता है, क्योंकि क्रिस्टल लिए ठोसो में अनेक भौतिक गुण जैसे चालकता अपवर्तनांक कठोरता आदि का मानप्रत्येक दिशा समान नहीं होते हैं 6 क्रिस्टल लिए thoso का शीतलन वक्र असतात होता है।
अक्रिस्टलीय
अक्रिस्टलीय ठोस असमान आकृति के कणों से बने होते हैं। इन ठोसों में अवयवी कणों परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों की व्यवस्था केवल लघु परासी होती है। इस व्यवस्था में नियमित और आवर्ती पैटर्न केवल अल्प दूरियों तक देखा जाता है। अक्रिस्टलीय ठोसों की संरचना द्रवों के सदृश होती हैं। अक्रिस्टलीय ठोस ताप के एक निश्चित परास पर नरम हो जाते हैं और गलाकर साँचे में ढाले जा सकते हैं और इनसे विभिन आकृतियाँ बनाई जा सकती हैं, यही कारण है, कि इसे अतिशीतित द्रव कहा जाता है। गर्म करने पर किसी एक तापमान पर वे क्रिस्टलीय बन जाते हैं। अक्रिस्टलीय ठोसों की प्रकृति समदैशिक होती है क्योंकि भिन-भिन दिशाओं में उनमें दीर्घ परासी व्यवस्था नहीं होती और सभी दिशाओं में अनियमित विन्यास होता है। अत कणों की भिन्न-भिन्न कोण से भी भौतिक गुण का मान समान होता है। रसायनशास्त्र, भाग-1, (कक्षा 12), एनसीईआरटी, नई दिल्ली, पृष्ठ-2-3 उदाहरण - काँच, रबर, प्लास्टिक आदि। अक्रिस्टलीय ठोसों के हमारे दैनिक जीवन में अनेक अनुप्रयोग हैं। अक्रिस्टलीय सिलिकन सूर्य के प्रकाश का विद्युत में रूपांतरण करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।7 7 आंक्रिस्टलीय ठोस को अतिशीतित द्रव भी कहा जाता है क्योंकि आकर इसलिए तो सुबह अंतरा आणविक बल कब होता है जिस कारण इनके बीच की दूरियां अधिक हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप इसमें बहने का गुणधर्म पर पाया जाता है यह प्रक्रिया अत्यंत धीमी गति से सफल होती है जिसे आंखो द्वारा नहीं देखा जा सकता, इसलिए आकृष्ट लिए ठोसो को अतिशीतित द्रव भी कहते हैं जैसे कांच क्योंकि हमने देखा है पुराने सौ 100 साल पुराने घरों की खिड़कियों के शीशे नीचे से मोटे और ऊपर से पतले हो जाते हैं अधिक समय से बने होने के कारण चौकी कांच में यानी आकर इसलिए ठोसो वे लघु प्रयास व्यवस्था पाई जाती है इस कारण इनके घटक कर स्त्री रह पाते और वह बहने के कारण नीचे से मोटे और ऊपर से पतले हो जाते हैं कांच इस कारण कांच को अतिशीतित द्रव भी कहा जाता है।
अक्रिस्टलीय ठोस
- इनके क्रिस्टल जालक में घटक कणों की व्यवस्था निश्चित व नियमित नहीं होती
- इन ठोसो लघु परास व्यवस्था पाई जाती है
- इनका गलनांक अनिश्चित होता है यह एक निश्चित ताप पर द्रव अवस्था में नहीं बदलते तथा ताप बढ़ाने पर धर्म होते जाते हैं क्योंकि इनके घटक कणों की व्यवस्था निश्चित वाह निर्मित नहीं होती
- यह विदलन का गुण प्रदर्शित नहीं करते अर्थात इनको काटने पर इनकी सताए प्लेन नहीं होती खुजली होती है इनकी सताए
- आकृष्ट लिए ठोस और शीतल वक्र सतत॒ प्राप्त होता है।