ठाकुर जगन्मोहन सिंह
ठाकुर जगन्मोहन सिंह (१८५७ विजयराघवगढ़ -- ४ मार्च १८९९ सुहागपुर) हिन्दी के भारतेन्दुयुगीन कवि, आलोचक और उपन्यासकार तथा जगन्मोहन मण्डल के संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में ठाकुर जगमोहनसिंह का हिन्दी का साहित्यिक वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने सन् 1880 से 1882 तक धमतरी में और सन् 1882 से 1887 तक शिवरीनारायण में तहसीलदार और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया। यही नहीं, छत्तीसगढ़ के बिखरे साहित्यकारों को जगन्मोहन मंडल बनाकर एक सूत्र में पिरोया और उन्हें लेखन की सही दिशा भी दी।
जीवन परिचय
जगन्मोहन सिंह का जन्म श्रावण शुक्ल १४, सं. १९१४ वि. को हुआ था। ये विजयराघवगढ़ (मध्यप्रदेश) के राजकुमार थे। अपनी शिक्षा के लिए काशी आने पर उनका परिचय भारतेंदु और उनकी मंडली से हुआ। हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य की उन्हें अच्छी जानकारी थी। ठाकुर साहब मूलत: कवि ही थे। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नई और पुरानी दोनों प्रकार की काव्यप्रवृत्तियों का पोषण किया।
साहित्य सेवा
उनके तीन काव्यसंग्रह प्रकाशित हैं : (१) 'प्रेम-संपत्ति-लता' (सं. १९४२ वि.), (२) 'श्यामालता' और (३) 'श्यामासरोजिनी' (सं. १९४३)। इसके अतिरिक्त इन्होंने कालिदास के 'मेघदूत' का बड़ा ही ललित अनुवाद भी ब्रजभाषा के कबित्त सवैयों में किया है। हिंदी निबंधों के प्रथम उत्थान काल के निबंधकारों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। शैली पर उनके व्यक्तित्व की अनूठी छाप है। वह बड़ी परिमार्जित, संस्कृतगर्भित, काव्यात्मक और प्रवाहपूर्ण होती हैं। कहीं-कहीं पंडिताऊ शैली के चिंत्य प्रयोग भी मिल जाते हैं। 'श्यामास्वप्न' उनकी प्रमुख गद्यकृति है, जिसका संपादन कर डॉ. श्रीकृष्णलाल ने नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित कराया है। इसमें गद्य-पद्य दोनों हैं, किंतु पद्य की संख्या गद्य की अपेक्षा बहुत कम है। इसे भावप्रधान उपन्यास की संज्ञा दी जा सकती है। आद्योपांत शैली वर्णानात्मक है। इसमें चरित्रचित्रण पर ध्यान न देकर प्रकृति और प्रेममय जीवन का ही चित्र अंकित किया गया है।
कवि की शृंगारी रचनाओं की भावभूमि पर्याप्त सरस और हृदयस्पर्शी होती है। कवि में सौंदर्य और सुरम्य रूपों के प्रति अनुराग की व्यापक भावना थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का इसीलिए कहना था कि 'प्राचीन संस्कृत साहित्य' के अभ्यास और विंध्याटवी के रमणीय प्रदेश में निवास के कारण विविध भावमयी प्रकृति के रूपमाधुर्य की जैसी सच्ची परख जैसी सच्ची अनुभूति इनमें थी वैसी उस काल के किसी हिंदी कवि या लेखक में नहीं पाई जाती (हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. ४७४, पंचम संस्करण)। मानवीय सौंदर्य को प्राकृतिक सौंदर्य के संदर्भ में देखने का जो प्रयास ठाकुर साहब ने छायावादी युग के इतने दिनों पहले किया इससे उनकी रचनाएँ वास्तव में 'हिंदी काव्य में एक नूतन विधान' का आभास देती हैं। उनकी व्रजभाषा काफी परिमार्जित और शैली काफी पुष्ट थी।
कृतियाँ
उपन्यास : श्यामास्वप्न
कविता संग्रह : श्यामालता, प्रेम संपत्तिलता, श्यामा सरोजनी
नाटक : हुक्के वाला
अनुवाद : मेघदूत, ऋतुसंहार, देवयानी
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- श्यामस्वप्न (जगन्मोहन सिंह द्वारा रचित उपन्यास)