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टीरोब्रैकिया

चित्र:Rhabdopleura normani 01.png
रैब्डोप्लूरा नार्मनी

टीरोब्रैंकिया (Pterobranchia) एक प्रकार के जीव हैं, जो केवल समुद्र में पाए जाते हैं। ये हेमिकॉर्डा (Hemichorda) वर्ग के होते हैं। इनकी साधारण संरचना एंटेरोनेन्स्टा (Enteropnensta) जैसी होती है, किंतु इनमें केवल एक जोड़ा क्लोम छिद्र (gill slit) होता हैं या वह भी नहीं। संस्पर्शक भुजाएँ ओर प्रतिवर्तित पाचक क्षेत्र (recurved digestive tract) होते हैं तथा मुख और गुदा अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनन दोनों प्रकार से होता है-लैंगिक जनन तथा समुद्भवन द्वारा।

परिचय

इस वर्ग में सेफैलोडिस्कस (Cephalodiscus), रैब्डोप्लूरा (Rhabdopleura) और ऐटूबोरिया (Atubaria), ये तीन वंश हैं।

सेफैलोडिस्कस

ये असंबद्ध व्यष्टियों से बने समूह में पाए जाते हैं। लिंग से उत्पन्न किसी एक पूर्वज से समूह के व्यष्टि समुद्भवन द्वारा उत्पन्न होते हैं। यह व्ष्टिसमूह स्रवण से प्राप्त अज्ञात रासायनिक संरचना के आवास, सीनीसियम (coenecium), में रहता है, जिसमें रेतकण, स्पंज कंटिका जैसे बाह्य द्रव्य भी चिपके रहते हैं। सीनीसियम का रूप जाति के साथ बदलता है। शीर्षाभिमुख ढाल या शुंड (proboscis), स्कंधमूल (collar) या मध्यकाय (mesosoma) और धड़ (trunk) या पश्चकाय (metasoma), इन तीन क्षेत्रों में शरीर विभक्त रहता है। ये क्षेत्र एंटेरोनेन्स्टा के विभाजन के जितना स्पष्ट नहीं होते। घड़ कोश (trunk sac) खोखले पेशीय वृत्त से अविच्छिन्न रहता है। वृंत का सिरा चिपचिपा होता है और प्राणी को सीनीसियम से संलग्न रखता है। नर मादा अलग अलग होते हैं, किंतु बाहर से पहचान में नहीं आते। उभयलिंगी भी प्राय: पाए जाते हैं। सी. साइबोगी (C. sibogae) की विचित्र लैंगिक स्थिति की सूचना मिली है, जिसमें सीनीसियम में क्लीव और पुंजतुभ (male zooids) पाए जाते हैं, किंतु मादा नहीं पाई जातीं। समुद्भवन (budding) ऋ तुकालिक होता है। अंडे सीनीसियम के विवर में झड़ते हैं और वहीं विकसित होते हैं। इनके विकास का ज्ञान हमें अधूरा है। एंटेरोनेन्स्टा के भ्रमि-डिंभ (Tornaria) के समान इनमें मुक्त तैरता डिंभ होता है। धड़ के सिरे के निकटवर्ती क्षेत्र में कलिका (buds) बनने से अलिंगीजनन होता है। मूल सीनीसियम को कलिकाएँ नहीं छोड़ती हैं।

रैब्डोप्लूरा

इसका फीके भूरे रंग का संघ शैल, मोलस्क घोंघा या सचोलों (Tunicates) आदि पर बढ़ता है। इस वर्ग के जंतुभ (zooids) बहुत कुछ सेफैलोडिस्कस सदृश होते हैं ओर वाह्यत: बहुत छोटे होते हैं। धड़ को छोड़कर इनकी लंबाई १ मिमि. होती है। रंग गहरा होता है और ये बहुत फैल सकते हैं। सभी जंतुभ एक दूसरे से अंगत: जुड़े और सीनीसियम की नालियों में स्थायी रूप से बंधे होते हैं। सीनीसियम में एक शाखा नली होती है, जो एक अधिष्ठान (stolon) कहते हैं। विरोहक संघ के सभी र्जतुभों को एक दूसरे से जोड़ता है और यह जंतुभ के समान जीवित ऊतकों का बना होता है।

लिंगी जनन

संघ में या तो केवल जंतुभ होते हैं या क्लीब मिश्रित स्त्री जंतुभ। अंडे बाहरी भाग की ओर निस्सारित होते हैं। इसका भ्रूणविकास अज्ञात है, किंतु एक तैरता, मुक्त डिंभ ज्ञात है।

अलिंगी जनन

रैब्डोप्लूरा के संघ लिंग से उत्पन्न एक व्यष्टि से, जिससे एक या अनेक विरोहक उपजते हैं, प्रारंभ होते हैं ओर फिर जंतुओं से निकले विरोहक से कलिकाएँ बाहर निकल आती हैं। विराहक की सक्रिय तरुण कलिका तरुण जंतुभ बन जाती है। इससे फिर नया विरोहक निकलता है और इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति बारंबार होती है।

ऐटुबेरिया हेटेरोलोका (Atubaria heterolopha)

सेफैलोडिस्कस से इसका निकट संबंध है, किंतु यह अंतर है कि इसमें सीनीसियम नहीं होता। इसका शरीर लाल रंग की धारीदार शीर्ष (cephalic) ढाल से ढका रहता है। स्कंधमूल संधि पर आठ संस्पर्शक भुजाएँ होती हैं और भरा हुआ धड़ कोश (trunk sac) होता है, जिसपर लंबा, छड़ जैसा, दूरस्थ (distal) भाग होता है। धड़ पर चिपचिपा सिरा भी नहीं होता। समूह में समुद्भवन का कोई प्रमाण नहीं मिलता।

सन्दर्भ