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टांका

राजस्थान में एक टांके का चित्र

टांका राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा जल को संग्रहित करने की परम्परागत प्रणाली है। इसे कुंड भी कहते हैं । यह विशेषकर पेयजल के लिए प्रयुक्त होता है । यहाँ का भू-जल लवणीय होता है, इसलिए वर्षा जल टांके में इकट्टा कर पीने के काम में लिया जाता है । टांका का पानी निर्मल होता है।

वास्तव में टांका एक भूमिगत लघु सरोवर है जो ऊपर से ढका होता है। इसका निर्माण मिट्टी से भी होता है और सिमेण्ट से भी। यह तश्तरी की तरह निर्मित होता है। टांका ३०-४० फुट तक गहरा होता है । पानी निकालने के लिए सीढ़ियों का प्रयोग किया जाता है। ऊपर मीनार जैसी ढेकली बनाई जाती है जिससे पानी खींचकर निकाला जाता है। खेतों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर टांके या कुड़िया बनाई जाती हैं । टांका किलों में, तलहटी में, घर की छत पर, आंगन में और खेत आदि में बनाया जाता है । इसका निर्माण सार्वजनिक रूप से लोगों द्वारा, सरकार द्वारा तथा निजी निर्माण स्वंय व्यक्ति द्वारा करवाया जाता है । कुछ टांके गांव के अमीरों द्वारा धर्म के नाम पर परोपकार हेतु बनवा दिये जाते हैं । एक परिवार विशेष उसकी देख-रेख करता है ।

टांके का निर्माण जमीन या चबूतरे के ढलान के हिसाब से बनाये जाते हैं। जिस आंगन में वर्षा का जल संग्रहित किया जाता है उसे आगोर या पायतान कहते हैं , जिसका अर्थ होता बटोरना । पायतान को साफ रखा जाता है , क्योंकि उसी से बहकर पानी टांके में जाता है । टांके के मुहाने पर इंडु ( सुराख ) होता है जिसके ऊपर जाली लगी रहती है , ताकि कचरा नहीं जा सके । टांका चाहे छोटा हो या बड़ा उसको ढंककर रखते हैं । पायतान का तल पानी के साथ कटकर नहीं जाए इस हेतु उसको राख, बजरी व मोरम से लीप कर रखते हैं ।

इतिहास

टांके मुख्यतः राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में ही बनाये गए हैं अर्थात् देखने को मिलते हैं। इसकी शुरुआत थार रेगिस्तान में ही हुई थी क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में टांका ही एक ऐसा साधन है जिससे गर्मियों के दिनों में प्यास बुझ सके। राजस्थान के फलोदी ,बाड़मेर ,ठाडिया ,बालोतरा इत्यादि जगहों पर ६.१मीटर की गहराई लंबा तथा २.४४ मीटर चौड़ा होता है। इसमें लोग वर्षा का पानी भी इकट्ठा करते हैं तथा टेंकर का पानी भी डलवाते हैं तथा भीषण गर्मी में उपयोग में लिया जाता है।

आदत

यहां राजस्थान में टांको का निर्माण के [1] बाद इस पर तिथि लिखना एक परम्परा सी बन गयी है। यहां लगभग हर टांके पर तिथि आसानी से मिल जाती है। .[2][3]

निर्माण प्रक्रिया

टांके का निर्माण करना खासा कठिन है इसको सर्वप्रथम फावड़ों की सहायता से खोदकर गढ्ढा करते हैं तथा चारों ओर पत्थर की दीवार बना देते हैं फिर सीमेंट को लेप देते हैं और सीमेंट को ७ से ८ दिनों तक अच्छी तरह से पकाते हैं। इस गढ्ढा रूपी टांके पर बड़ा लम्बा पत्थर जिसे राजस्थान की स्थानीय भाषा में (चीण) कहते हैं वो लगाते हैं।

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बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Rainwater harvesting in rural India - taankas in the Thar Desert, by Megan Konar, Waterlines, Volume 25, Number 4, April 2007 , pp. 22-24(3). Publisher: Practical Action Publishing.
  2. Rainwater Harvesting Structures: 1: Taanka Indian Villages 2020 (in 2 Volumes)vision And Mission (vol. 1)strategies And Suggested Development Models (vol 2), Y.P. Singh (ed.). Concept Publishing Company, 2006. ISBN 818069321X. Page 421 .
  3. Community initiatives in capturing rain through terrain-specific technologies: examples from India Archived 2017-10-28 at the वेबैक मशीन IWA International Water Association website