झलकारी बाई
झलकारी बाई | |
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![]() ग्वालियर में घुड़सवार के रूप में झलकारी बाई की प्रतिमा | |
जन्म | 22 नवंबर 1830 झांसी, भारत |
मौत | 4 अप्रैल 1857 झांसी, भारत |
पेशा | रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति। |
प्रसिद्धि का कारण | भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी |
जीवनसाथी | पूरन सिंह कोली |
झलकारी बाई (22 नवंबर 1830 - 4 अप्रैल 1857) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं।[1] वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया।
उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है,[2] उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।[1]
प्रारंभिक जीवन
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/b/be/Indian_Postage_Stamp_on_Jhalkari_Bai_July_22%2C_2001.jpg/220px-Indian_Postage_Stamp_on_Jhalkari_Bai_July_22%2C_2001.jpg)
झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं का रख-रखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थीं। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक तेंदुए से हो गयी थी और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस तेंदुआ को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।[3] उसकी इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन सिंह कोली से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था।
स्वाधीनता संग्राम में भूमिका
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/fb/Jhalkar_Bai_Koli_Jhansi_Museum.png/220px-Jhalkar_Bai_Koli_Jhansi_Museum.png)
लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया। अप्रैल 1857 के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।
झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ में ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहुँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो। जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया। इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"।
ऐतिहासिक एवं साहित्यिक उल्लेख
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/9/90/Some_words_about_Jhalkari_Bai%27s_Bravery_by_Maithili_Saran_Gupta.jpg/220px-Some_words_about_Jhalkari_Bai%27s_Bravery_by_Maithili_Saran_Gupta.jpg)
मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा, झलकारी बाई के योगदान को बहुत विस्तार नहीं दिया गया है, लेकिन आधुनिक लेखकों ने उन्हें गुमनामी से उभारा है। जनकवि बिहारी लाल हरित ने 'वीरांगना झलकारी' काव्य की रचना की ।[4] हरित ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है :
- लक्ष्मीबाई का रूप धार, झलकारी खड़ग संवार चली ।
- वीरांगना निर्भय लश्कर में, शस्त्र अस्त्र तन धार चली ॥
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल (21-10-1993 से 16-05-1999 तक) श्री माता प्रसाद ने झलकारी बाई की जीवनी की रचना की है। इसके अलावा चोखेलाल वर्मा ने उनके जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा है, मोहनदास नैमिशराय ने उनकी जीवनी को पुस्तकाकार दिया है[5] और भवानी शंकर विशारद ने उनके जीवन परिचय को लिपिबद्ध किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है -
- जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।
- गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,
- वह भारत की ही नारी थी।
चित्र दीर्घा
- झलकारी बाई पार्क, अजमेर, राजस्थान।
- झलकारी बाई 1985।
- झलकारी बाई प्रतिमा।
- झलकारी बाई प्रतिमा।
- झलकारी बाई प्रतिमा।
- झलकारी बाई चौक, आगरा, उत्तर प्रदेश।
- समाजवादी पार्टी झलकारी बाई का जन्मदिवस मनाते हुए।
- झलकारी बाई एवं लक्ष्मी बाई, झांसी संग्रहालय।
- झलकारी बाई पार्क, ग्वालियर।
- झलकारी बाई प्रतिमा, आगरा
बाह्यसूत्र
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "वीरांगना - झलकारी बाई". मधुमती. मूल (पीएचपी) से 13 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अक्तूबर २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "डेटाबेस ऑफ इंडियन स्टाम्प्स". कामत पॉटपुरी. मूल (एचटीएम) से 17 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अक्तूबर २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "ग्रेट वूमेन ऑफ इंडिया" (अंग्रेज़ी में). Dakshina Kannada Philatelic and Numismatic Association. मूल (एचटीएम) से 8 अप्रैल 2003 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ अक्तूबर २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ https://books.google.co.in/books?id=0D-oQz3htaYC&pg=PA27&lpg=PA27&dq=bihari+lal+harit+jhalkari&source=bl&ots=hfsp7LlZl2&sig=ACfU3U32LG0eSeu0Mw_0azeLXEZjsQrb4A&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiRgomP_-fpAhX96XMBHQk6BG8Q6AEwAnoECBwQAQ#v=onepage&q=bihari%20lal%20harit%20jhalkari&f=false
- ↑ "वीरांगना झलकारी बाई" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि १८ अक्तूबर २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]