झमक घिमिरे
झमक घिमिरे | |
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जन्म | झमक कुमारी घिमिरे १९८० कचिडे, धनकुटा |
राष्ट्रीयता | नेपाली |
पेशा | कवयित्री |
झमक कुमारी घिमिरे (जन्म सन् १९८०, कचिडे, धनकुटा, नेपाल[1]) प्रतिभावान् नेपाली महिला स्रष्टा हैं। प्रतिमष्तिस्क रोग द्वारा पीडित घिमिरे, इस रोग से पीडित विश्व की १० वीं प्रतिभावान् साहित्यकार हैं। उनके हाथ-पैर जन्म से ही नहीं चलते इसलिए वे न तो खड़ी हो सकतीं हैं, न चल सकतीं हैं और न बोल सकतीं हैं। परंतु वे सुन और समझ सकती हैं।[2] पैर की केवल तीन उँगलियाँ चलतीं हैं और तीन उंगलियों के सहारे उन्होंने दर्जनौं पुस्तकें लिखीं हैं। औपचारिक शिक्षा पाने में असमर्थ घिमिरे ने घर में भाई-बहनों को लिख-पढ़ते देख-सुनकर अपनी क्षमता का विकास किया। उनकी साहित्य लेखन रुची नौ साल की उम्र से ही शुरु हुई।[3] कान्तिपुर दैनिक और ब्लास्ट टाइम्स पत्रिका में उनके नियमित स्तम्भ भी छपते हैं। झमक को प्रबल गोरखा दक्षिण बाहु चौथी लगायत दर्जनों पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं।[4]
बाल्यकाल
शिथिल हाथ-पैर, विकलांग शरीर लेकर ‘भूख से लड़ते ’ (अत्यंत गरीब) परिवार में जन्मी झमक को जन्म लेते ही अपने ही लोगों ने ‘मुर्कुट्टा’ (भूत-प्रेत का एक रुप) कहा। नेपाली परंपरा में दशहरा के अवशर पर बड़ों द्वारा लंबे आयु के लिए आशीर्वाद दिए जाते हैं परन्तु इसे हर दशहरा में जल्दी मर जाने के आशीर्वाद दिए जाते रहे। वे किसी पाठशाला वा गुरू से शिक्षा न ले सकी। जब भी सीखने की कोशिश की ‘तुम सीखकर क्या करोगी?’ आदि प्रश्न आते थे। पैर के तीन उँगलियों से जमिन पर अक्षर लिखकर अभ्यास करती तब अपने लोग घर के जमिन को खराब करने के आरोप में गालियाँ देते थे। इस प्रकार जमिन पे अभ्यास करते बख्त उनकी उँगलियों से खून निकलकर जमिन पर खून के धब्बे लगने के कारण उनको बहुत बार मार पड़ी। कभी-कभी कोयले से जमीन पर अक्ष्रर लिखने का अभ्यास करती तो (पुराने नेपाली सोच अनुसार) ऋण लगने के भय के कारण उन पर मार पड़ी। अन्य बच्चों को न पढ़ने के कारण दण्ड भोगना पड़ता था और उनको पढ़ने तथा कॉपी-कलम माँगने पर भी मार पड़ती थी। जोखाना वा ज्योतिष शास्त्र देखने वालों ने झमक को परिवार समाप्त करने वाली डायन बताया। लोगों ने उन्हें अलच्छिनि (राक्षसी) कहा। पाँच साल की उम्र में भात (खाना) खिलाने वाली दादी मर गई और उसके बाद उसको कोई नहीं खिलाता था (माँ भी), खूद अपने पैर की अपनी तीन उँगलियों के बूते खाना लेना पड़ता था। शौच (टट्टी) करने के बाद साफ करते समय उसी टट्टी में लोट-पोट हो जाती थी। भूखी, प्यासी, नंगी, अधिकांश एकाकीपन में बढी नौ–दश साल की हुई। उस समय घर बनाने आए कारिगरों ने फटे कपड़े और झमक के असमक्षता के कारण दिखाई देता गुप्तांग मे पत्थर के छोटे कंकणों से मारने और यौन शोषण करने की बात अपनी पुस्तक प्रेरणाको एक अनुपम शिखर (प्रेरणा की एक अनुपम शिखर) में झमक ने स्वयं लिखी है।
मदन पुरस्कार
घिमिरे को नेपाल का प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कार मदन पुरस्कार, जो भारत के ज्ञानपीठ के समान है, भी सन् २०११ में मिला।[5]
कृतियाँ
घिमिरे द्वारा रचित निम्न कृतियाँ हैं:[6]
- संकल्प
- आफ्नै चिता अग्निशिखातिर
- मान्छे भित्रका योद्धाहरू
- सम्झनाका बाछिट्टाहरू
- झमक घिमिरेका कविताहरू
- जीवन काँडा कि फूल
- अवसान पछिको आगमन
- क्वाँटी संग्रह
सन्दर्भ
- ↑ ASMITA: Who is Jhamak? Archived 2004-01-18 at the वेबैक मशीन (२००२ अगस्त)
- ↑ मेरो सिन्धु:प्रेरणाको एक अनुपम शिखर: झमक घिमिरे Archived 2011-07-14 at the वेबैक मशीन (जून २०११)
- ↑ "Times". मूल से 28 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 जुलाई 2012.
- ↑ "Online Nepali Literature Forum". Sahityaghar.com. 2006-12-25. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-07-12.
- ↑ "Gorkhapatra". Gorkhapatra. अभिगमन तिथि 2012-07-12.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ मदन पुरस्कार पुस्तकालय:झमक घिमिरे द्वारा लिखित पुस्तकें Archived 2011-09-20 at the वेबैक मशीन (जून २०११)