ज्वारासुर
हिंदू पौराणिक कथाओं अनुसार, ज्वारासुर बुखार के दानव और शीतला देवी का सहायक है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ज्वारासुर का जन्म चिंतनमय शिवजी के ललाट के पसीने से हुआ था और वह देवताओं के लिए एक खतरा था। एक बार विष्णुने हयग्रीव का अवतार लिया था तब वह ज्वारासुर के बुखारसे पीड़ित थे। इसलिए उन्होने दानव ज्वारासुर को मार डाला। उन्होने अपने सुदर्शन चक्र से उसके तीन टुकड़े कर दिये। हालांकि, ब्रह्मा ने ज्वारासुर काे पुनर्जीवित कर दिया और उसके तीनो हिस्सों को जोड़ दिया। लेकिन उस समय उसके तीनों हिस्सों में से प्रत्येक के सिर और अंग का विकास हो गया था। इस प्रकार ज्वारासुर तीन चेहरे और तीन पैरों वाला दिखाई देता है और एक ही बार में सभी दिशाओं में स्थानांतरित करने की एक असाधारण क्षमता रखता है। बाद में वे शीतला देवी के जीवनसाथी के रूप चुने गए।.[1]
एक अन्य कथा के अनुसार, माँ दुर्गा देवी कात्यायनी (ऋषि कात्यायन की बेटी के रूप में दुनिया में सभी अभिमानी, बुरे राक्षसी शक्तिओं को नष्ट करने के लिए) के रूप में अवतार लिया और काल्केया द्वारा भेजे गए कई राक्षसों को मार डाला।
ज्वारासुर नाम के बुखार के दानव ने, कात्यायनी के बचपन के दोस्तो में लाइलाज बीमारियां जैसे कि हैजा, अतिसार, खसरा, चेचक जैसे रोग फैलाना शुरू कर दिया। इसलिए कात्यायनी अपने बीमारियों से ग्रस्त दोस्तों का इलाज किया। उसके बाद पूरी दुनिया को बुखार और रोगों से राहत देने के लिए कात्यायनी ने शीतला देवी का रूप लिया। उनके चार हाथ में से एक हाथ में छोटा झाड़ू, दूसरे हाथ में पंखा, तीसरे हाथ में ठंडे पानी का बर्तन और चौथे हाथ में वे पीने का प्याला रखती है। उन्होंने अपनी शक्ति का इस्तेमाल सभी बच्चों के रोगों के इलाज करने के लिए किया। उसके बाद कात्यायनीने अपने दोस्त बटुकको आग्रह किया कि वह बाहर जाएं और राक्षस ज्वारासुर के साथ युद्ध करे।इसलिए युवा बटुक और दानव ज्वारासुर के बीच युद्ध शुरू हो गया। दानव ज्वारासुर बटुक को हराने में सफल हो गया। उसके बाद बटुक मृत गिर पडा। ज्वारासुर हैरान हो गया था क्योकि बटुक कहीं दिख नहीं रहा था। पर उसको पता ही नहीं चला कि बटुक ने एक भयानक पुरुष का रूप ले लिया था। इस पुरुष की तीन आंखें और चार हाथ थे। सिर राक्षस जैसा और उसके पास कुल्हाड़ी, तलवार, त्रिशूल था। उनका रंग अंधेरा जैसा काला था। उसके बाल उड़ रहे थे। आंखें क्रोध से जल रही थी। उन्होने बाघ की त्वचा ओर खोपड़ीओं की मालाएँ पहनी थी। बटुकने शिवजी का एक भयानक अवतार कालभैरव का रूप ले लिया था। उसके बाद कालभैरव ज्वारासुर की निंदा करते हैं और उसको बताते कि वह माँ दुर्गा देवी (देवी कात्यायनी) के सेवक है। उन दोनो में एक लंबी बहस होती है, लेकिन वह फिर लड़ाई में परिवर्तित हो जाती है। ज्वारासुर अपनी शक्ति के माध्यम से कई राक्षसों उत्पन्न किये, लेकिन सभी को कालभैरव ने नष्ट कर दिया। अंत में, कालभैरव ने ज्वारासुर के साथ मल्लयुद्ध किया और बादमें अपने त्रिशूल से उसको मार डाला।
शीतला देवी-ज्वारासुर का पंथ बंगाली संस्कृति में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। संयोग से, बंगाली, उड़िया और हिंदी भाषाओं, बुखार को ज्वर के रूप में जाना जाता है और असुर का अर्थ है राक्षस होता है। ज्वारासुर का नाम दो शब्दों का एक संयोजन है। - ज्वारा (यानी बुखार) और असुर (यानी राक्षस) - ज्वारासुर। इस प्रकार, ज्वारासुर बुखार का राक्षस है।ऐसा कहा जाता है कि शीतला देवी और ज्वारासुर अपने गधे पर एक साथ यात्रा करते हैं। ज्वारासुर युवान सेवक के रूप में हैं। उत्तरी भारत के सभी गांव के लोगों ज्वारासुर की पत्नी शीतला देवी को चेचक और बुखार के रोगों में रक्षक के रूप में पूजा जाता है।.[2]
बौद्ध धर्म में
बौद्ध संस्कृति में ज्वारासुर को पार्णशबरी (बौद्ध धर्म के अनुसार बीमारियों की देवी) पति के रूप में दिखाया गया है। कुछ तस्वीरो में देवताओं को वर्जयोगिनी (बौद्ध देवी और बीमारी नाशक) के प्रकोप से बचने के लिए दुर उडते बताए जाते हैं।.[3]