ज्योति बसु
ज्योति बसु জ্যোতি বসু | |
ज्योति बसु | |
कार्यकाल २१ जून १९७७ –६ नवम्बर २००० | |
पूर्व अधिकारी | सिद्धार्थ शंकर रे |
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उत्तराधिकारी | बुद्धदेव भट्टाचार्य |
जन्म | ८ जुलाई १९१४ कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश इंडिया |
मृत्यु | १७ जनवरी २०१० कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) |
आवास | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
धर्म | नास्तिक |
वेबसाइट | www.cpim.org |
As of २७ जनवरी, २००७ Source: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) |
ज्योति बसु (बंगला : জ্যোতি বসু) (८ जुलाई १९१४ - १७ जनवरी २०१०)एक बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जानेमाने राजनेता थे। वे सन् १९७७ से लेकर २००० तक पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्यमंत्री रहकर भारत के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान स्थापित किए। वे सन् १९६४ से सन् २००८ तक सीपीएम पॉलित ब्यूरो के सदस्य रहे।
प्रारंभिक जीवन
ज्योति बसु ८ जुलाई १९१४ को कलकत्ता के एक उच्च मध्यम वर्ग बंगाली कायस्थ परिवार
परिवार में ज्योति किरण बसु के रूप में पैदा हुए। उनके पिता निशिकांत बसु, ढाका जिला, पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के बार्दी गांव में एक डॉक्टर थे, जबकि उनकी मां हेमलता बसु एक गृहिणी थी। बसु की स्कूली शिक्षा १९२० में धरमतला, कलकत्ता (अब कोलकाता) के लोरेटो स्कूल में शुरू हुई, जहां उनके पिता ने उनका नाम छोटा कर ज्योति बसु कर दिया। १९२५ में सेंट जेवियर स्कूल में जाने से पहले बसु ने स्नातक शिक्षा हिंदू कॉलेज (१८५५ में प्रेसीडेंसी कॉलेज के रूप में तब्दील) में विशिष्ठ अंग्रेजी में पूरी की। १९३५ में बसु कानून के उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए, जहां ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने कदम रखा। यहां नामचीन वामपंथी दार्शनिक और लेखक रजनी पाम दत्त से प्रेरित हुए। १९४० में बसु ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और बैरिस्टर के रूप में मिडिल टेंपल से प्रात्रता हासिल की। इसी साल वे भारत लौट आए। जब सीपीआई ने १९४४ में इन्हें रेलवे कर्मचारियों के बीच काम करने के लिए कहा तो बसु ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में संलग्न हुए। बी.एन. रेलवे कर्मचारी संघ और बी.डी रेल रोड कर्मचारी संघ के विलय होने के बाद बसु संघ के महासचिव बने।
बाद का राजनैतिक जीवन
बसु १९४६ में रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए। उन्होंने डॉ॰ बिधान चंद्र रॉय के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहते हुए लंबे समय के लिए विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया। बसु ने एक विधायक और विपक्ष के नेता के रूप में अपने सराहनीय कार्य से डॉ॰ बी.सी रॉय का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें उनका भरपूर स्नेह मिला, भले ही बसु डॉ॰ राय द्वारा चलाई जा रही नीतियों के खिलाफ थे। ज्योति बसु ने राज्य सरकार के खिलाफ एक और एक के बाद एक आंदोलन का नेतृत्व किया और एक नेता के रूप में विशेष रूप से छात्रों और युवकों के बीच गहरी लोकप्रियता अर्जित की। १९६४ में जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हो गया तो बसु नए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के पहले नौ सदस्यों में से एक बने। १९६७ और १९६९ में बसु के पश्चिम बंगाल के संयुक्त मोर्चे की सरकारों में उप मुख्यमंत्री बने। १९६७ में कांग्रेस सरकार की हार के बाद अजय मुखोपाध्याय के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। १९७२ में कांग्रेस पश्चिम बंगाल में वापस सत्ता पर लौट आई। ज्योति बसु बारानगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए और चुनाव के दौरान अभूतपूर्व हेराफेरी की शिकायत दर्ज कराई। उनकी पार्टी सीपीआई (एम) ने १९७७ में नए सिरे से चुनाव होने तक विधानसभा के बहिष्कार का फैसला किया।
२१ जून १९७७ से ६ नवम्बर २००० तक बसु पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। १९९६ में ज्योति बसु भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए संयुक्त मोर्चा के नेताओं के सर्वसम्मति उम्मीदवार बनते दिखाई पड़ रहे थे, लेकिन सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो ने सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला किया, जिसे बाद में ज्योति बसु ने एक ऐतिहासिक भूल करार दिया। बसु ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद से २००० में स्वास्थ्यगत कारणों से इस्तीफा दे दिया और साथी सीपीआई (एम) नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया। बसु सबसे लंबे समय तक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मुख्यमंत्री के तौर पर सेवा के लिए जाने जाएंगे।
कुछ दिन से बीमार चल रहे ज्योति बसु का १७ जनवरी २०१० को अस्पताल में निधन हो गया।
ज्योति बाबू की जीवनयात्रा
ज्योति दा ने 2000 में ही सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था लेकिन इसके बावजूद वह भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के पथप्रदर्शक बने रहे।
उनके जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाएं :-
- 8 जुलाई 1914 में कलकत्ता [अब कोलकाता] में जन्म।
-प्रेसिडेसी कॉलेज से अंग्रेजी विषय में प्रतिष्ठा के साथ स्नातक की डिग्री। लंदन से कानून की पढ़ाई की। वहीं मार्क्सवाद का 'ककहरा' सीखा और सार्वजनिक जीवन से जुड़े।
-1940 में भारत वापसी के साथ ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [भाकपा] से जुड़ गए।
-1944 में वह बंगाल रेलवे कामगार संघ के पदाधिकारी बने।
-1946 में बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के हुमायूं कबीर को पराजित किया।
-इसके बाद 1952, 1957, 1962, 1967, 1969 और 1971 में वह बड़ानगर विधानसभा से चुने जाते रहे। इस दौरान वह 1972 में विधानसभा चुनाव भी हारे।
-वर्ष 1964 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] की स्थापना हुई। वह इसके संस्थापकों में रहे।
-वर्ष 1967 में वह बंगाल की गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।
-21 जून 1977 को वह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। वह छह नवम्बर 2000 तक पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चे की सरकार के मुखिया बने रहे।
-1996 में वह देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। उनकी पार्“ी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था का फैसला उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में आड़े आया। बाद में ज्योति बाबू ने पार्टी के इस फैसले को ऐतिहासिक गलती करार दिया।
-वर्ष 2000 में उन्होंने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण मुख्यमंत्री का पद छोड़ा और फिर सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा की।
-वर्ष 2004 में केंद्र में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [संप्रग] की सरकार को वामपंथी दलों की ओर से दिए गए समर्थन में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई।