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जैवचिकित्सा इंजीनियरी

A JARVIK-7 नामक कृत्रिम हृदय - यह जैवचिकित्सा प्रौद्योगिकी में यांत्रिक प्रौद्योगिकी के उपयोग का महत्वपूर्ण उदाहरण है।

जैवचिकित्सा इंजीनियरी अर्थात्‌ बायोमेडिकल इंजीनियरी, प्रौद्योगिकी का एक ऐसा उभरता क्षेत्र है जो कि अंतर-विषयक पहुंच वाले महत्वपूर्ण प्रभाव के साथ वैशिष्टय से परिपूर्ण है। यह विषय क्षेत्र चिकित्सा और इंजीनियरी-दो गतिशील व्यवसायों का एकीकृत माध्यम होने के कारण औजार और तकनीकी अनुसंधान, इलाज और निदान की सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए बीमारियों और रोगों के खिलाफ संघर्ष में व्यापक सहायता प्रदान कर रहा है। जैव-चिकित्सा विशेषज्ञ अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों, जैसे कि फिजिशियनों, नर्सों, थेरेपिस्टों और तकनीशियनों के साथ मिलकर कार्य करते हैं तथा हेल्थकेअर के विकास से जुड़े उपकरण और सॉफ्टवेयर तैयार करते हैं।

जैव-चिकित्सा इंजीनियर रोग के निदान और इलाज के लिए उत्पादों और उपकरणों के विकास में जीवविज्ञान, भौतिकी के साथ-साथ रसायन विज्ञान के सिदान्तों का प्रयोग करते हैं। इस शाखा में जीवविज्ञान, चिकित्सा, व्यवहार और स्वास्थ्य के अध्ययन में भौतिकी, रासायनिक, गणितीय और अभिकलन विज्ञानों तथा इंजीनियरी के सिद्धान्त का समन्वय है।

वर्तमान में जैव-प्रौद्योगिकी और बायो-इन्फारमैटिक्स के साथ-साथ जैव-चिकित्सा इंजीनियरी तेजी से उभरता क्षेत्र बन गया है।

उपक्षेत्र एवं विशेषज्ञता

जैव चिकित्सा इंजीनियर विभिन्न प्रकार के कार्यात्मक क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं, जिनमें शामिल हैं- बायोइंस्ट्रमेंटेशन, बायोमैकेनिक्स, बायोमैटीरियल्स, क्लीनिकल इंजीनियरी, मेडिकल इमेजिंग, पुनर्वास इंजीनियरी तथा प्रणाली शरीर विज्ञान। निम्नलिखित विशेषज्ञता क्षेत्र एक दूसरे का अभिन्न और अंतर-स्वातंत्रा्‌य क्षेत्र हैं। सभी में चिकित्सा से जुड़ी चुनौतियों के हल में इंजीनियरी सिद्धान्त तथा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है।

बायोइंस्ट्रमेंटेशन : बायोइंस्ट्रमेंटेशन में रोग के निदान तथा इलाज हेतु उपकरण तैयार करने में कम्प्यूटर सहित इंजीनियरी सिद्धान्त और पद्धति का प्रयोग शामिल है।

बायोमैकेनिक्स : इसका इस्तेमाल फ्रल्युड परिवहन तथा गति की रेंज जैसी चिकित्सा समस्याओं तथा प्रणालियों को समझने के लिए मैकेनिक्स के सिद्धान्त के लिए किया जाता है। कृत्रिम अंग जैसे कि कृत्रिम हृदय, गुर्दे और जोड़ आदि ऐसे उपकरणों के उदाहरण हैं जिन्हें बायोकैमिकल इंजीनियरों द्वारा विकसित किया गया है।

बायोमैटीरियल्स : इसके अंतर्गत मानव शरीर में इस्तेमाल के वास्ते प्राकृतिक जीवित टिश्यू और कृत्रिम पदार्थों का विकास आता है। उपयुक्त गुणों वाले मैटीरियल के साथ कार्यात्मक अंग, हड्डियां और अन्य प्रत्यारोपण मैटीरियल्स तैयार करना अत्यंत कठिन होता है जिसमें मिश्रधातु, मृत्तिका, पोलीमर तथा अन्य मिश्रण सम्मिलित हैं।

क्लीनिकल इंजीनियरी : क्लीनिकल इंजीनियरी में कम्प्यूटर डॉटाबेस का विकास तथा अनुरक्षण, चिकित्सा औजारों और उपकरणों की सूचीकरण के साथ-साथ अस्पतालों में प्रयुक्त होने वाले चिकित्सा उपकरणों की खरीद का कार्य आता है। क्लीनिकल इंजीनियर अस्पताल या चिकित्सा प्रक्रिया की संभावित जरूरतों के लिए उपकरणों की उपलब्ध्ता और इस्तेमाल में सहयोग के वास्ते फिजिशियनों के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।

जैवचिकित्सा इंजीनियरी : यह ट्यूमर, कुरचना और इसी प्रकार की अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पहचान और वर्गीकरण के वास्ते इलेक्ट्रॉनिक डॉटा प्रोसेसिंग, विश्लेषण और प्रदर्शन कार्य का मिश्रण है। मैगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग एमआरआई, अल्ट्रासाउंड और अन्य तकनीकों का सामान्यतः इस्तेमाल किया जाता है।

पुनर्वास : यह शारीरिक अपंगता वाले व्यक्ति के जीवन की स्वतंत्रता, सक्षमता तथा गुणवत्ता पर केंद्रित होती है। इस विशेषज्ञता क्षेत्रा में किसी व्यक्ति विशेष की अत्यधिक विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विकासात्मक गतिविधियों सम्मिलित हैं।

टिशू इंजीनियरिंग : आजकल बीमार टिशूज और नष्ट मानकीय टिशूज की सक्रियता में सुधार या बहाली के लिए प्रतिस्थापन टिशूज का विकास किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर किसी के स्वस्थ गुर्दे से कोशिकाएं लेकर उन्हें खराब गुर्दे में डाल दिया जाता है ताकि स्वस्थ टिशू उत्पन्न हो सकें।

प्रणाली शरीरविज्ञान : इस क्षेत्र में निम्नलिखित को समझने के वास्ते ध्यान केन्द्रित किया जाता है :- माइक्रोस्कोपिक और सबमाइक्रोस्कोपी स्तर-जीवित अंग में किसी तरह क्रियाशीलता रहती है, फार्मासियुटीकल ड्रग रिस्पॉन्स से मेटाबॉलिक सिस्टम्स और रोग का रिस्पॉन्स, स्वैच्छिक अंग मूवमेंट से स्किन हीलिंग और ऑडिटरी फिजियोलोजी इस विशेषज्ञता क्षेत्र में गणितीय सूत्रों का प्रयोग करके प्रयोग और मॉडलिंग कार्य सम्मिलित है।

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