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जीवविज्ञान में सममिति

गिजगिजिया में अरीय सममिति है - इन्हें व्यास से काटने पर समान भाग बन जाते हैं
ततैया में द्विपार्श्विक सममिति है - इन्हें लगभग बराबर के दाएँ और बाएँ भागों में बाँटा जा सकता है

जीवविज्ञान में सममिति किसी जीव में समान रूप के अंगों की सन्तुलित उपस्थिति को कहते हैं, मसलन मनुष्यों में सन्तुलित व्यवस्था से एक बायाँ और उसी के जैसा एक दायाँ हाथ होता है। जीवविज्ञान में कई प्रकार की सममिति देखी जाती है और ऐतिहासिक रूप में इसका जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में काफ़ी महत्त्व रहा है।[1]

अरीय सममिति

जब किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणि के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति कहते हैं। उदाहरणार्थ तारामीन में अरीय सममिति होती है। ऐसे जीवों की कोई दाई-बाई तरफ़ नहीं होती।

द्विपार्श्विक सममिति

जब एक ही केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएँ व बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है। इसे द्विपार्श्विक सममिति कहते हैं। यह सममिति मानवों, कुत्तों, इत्यादि में देखी जाती है। क्रम-विकास (इवोल्यूशन) के दृष्टिकोण से द्विपार्श्विक सममिति प्राणियों के पनपने हेतु बहुत ही सफल रही है और वर्तमान में पृथ्वी के ९९% प्राणियों में द्विपार्श्विक सममिति देखी जाती है।[2]

द्व्यरीय सममिति

कुछ टेनोफोरा जैसे जीवों में द्व्यरीय (द्वि-अरीय) सममिति देखी जाती है जो अरीय और द्विपार्श्विक सममिति का मेल है। इसमें जीव को अपने केन्द्र के इर्द-गिर्द सुसज्जित चार भागों में बांटा जा सकता है जिसमें उल्टे छोर के दो भाग एक-जैसे होते हैं लेकिन वे अन्य दो भागों से अलग होते हैं, जो कि स्वयं आपस में एक-से होते हैं। कुछ जीववैज्ञानिकों का मत है कि जीवन के क्रम-विकास में यह अरीय और द्विपार्श्विक सममिति के बीच का अवस्था है, अर्थात् आरम्भ में जीवों में अरीय सममिति ही थी, जिस से फिर द्व्यरीय सममिति विकसित हुई जो आगे चलकर द्विपार्श्विक सममिति में विकसित हुई।[3]

असममिति

असममित स्पंज

सारे जीवों में सममिति नहीं होती। कुछ ऐसे भी जीव हैं जिनमें असममिति मिलती है। कुछ हद तक सममिति-वाले जीवों में भी असममिति होती है क्योंकि उनके एक-जैसे भागों में भी ज़रा-बहुत अन्तर तो होता ही है, मसलन किसी मानव के दोनों हाथों में थोड़ा सा अंतर होता ही है और मानवों का हृदय भी शरीर के केवल बाएँ भाग में होता है। लेकिन कुछ स्पंज और अन्य जीव ऐसे होते हैं जिनकी शरीर-रचना में कोई भी सममिति नहीं होती। ध्यान दें कि कुछ अन्य स्पंजों में अरीय सममिति देखी जाती है।[4]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Finnerty JR (2003). "The origins of axial patterning in the metazoa: How old is bilateral symmetry?". The International journal of developmental biology 47 (7–8): 523–9.
  2. Finnerty, John R. (2005). "Did internal transport, rather than directed locomotion, favor the evolution of bilateral symmetry in animals? Archived 2019-07-02 at the वेबैक मशीन" (PDF). BioEssays 27: 1174–1180. doi:10.1002/bies.20299.
  3. Martindale, Mark Q.; Henry, Jonathan Q. (1998). "The Development of Radial and Biradial Symmetry: The Evolution of Bilaterality1 Archived 2011-04-09 at the वेबैक मशीन" (PDF). American Zoology 38 (4): 672–684. doi:10.1093/icb/38.4.672.
  4. Myers, Phil (2001). "Porifera Sponges Archived 2014-06-14 at the वेबैक मशीन". University of Michigan (Animal Diversity Web). Retrieved 14 June 2014.