जीतेंद्र अभिषेकी
जितेंद्र अभिषेकी | |
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पृष्ठभूमि | |
अन्य नाम | जितेंद्र अभिषेकी |
जन्म | 21 सितम्बर 1929 मंगेशी, गोवा , भारत |
निधन | 7 नवम्बर 1998 | (उम्र 69)
विधायें | शास्त्रीय अर्द्ध शास्त्रीय संगीत, भक्ति, नाट्य संगीत |
पेशा | गायक, संगीतकार, संगीत शिक्षक |
सक्रियता वर्ष | 1929–1998 |
वेबसाइट | आधिकारिक वेबसाइट |
पंडित जितेंद्र अभिषेकी ( जितेंद्र अभिषेकी; 21 सितंबर 1929 – 7 नवंबर 1998) एक भारतीय गायक, संगीतकार और भारतीय शास्त्रीय, अर्द्ध शास्त्रीय, भक्ति संगीत तथा हिन्दुस्तानी संगीत के प्रतिष्ठित विद्वान थे। इन्हें 1960 के दशक में मराठी थिएटर संगीत के पुनरुद्धार के लिए भी श्रेय दिया जाता है।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जीतेन्द्र जी का जन्म गोवा में ,मंगेशी नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार परंपरागत रूप से भगवान शिव के मंगेशी मंदिर से जुड़ा था।। उनके पिता, बलवंतराव उर्फ भीकमभट्ट , अपने सौतेले भाई मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के शिष्य और मंगेशी मंदिर के पुजारी और कीर्तनकार थे। बलवंतराव ने जितेंद्र को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बुनियादी सिद्धांतों सेसे अवगत कराया। जितेंद्र ने आगरा घराने के जगन्नाथ बुवा पुरोहित और अजमत हुसैन खान और अतरौली घराने (जिसे जयपुर घराने के रूप में जाना जाता है) के गुल्लूभाई जसदनवाला से संगीत में आगे का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने khayál गायन की एक विशिष्ट शैली विकसित की ,जिसे आज अभिषेकी घराने के नाम से जाना जाता है। पंडित जी को अपने मराठी नाट्य संगीत रचनाओं की अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाना जाता है उनकी नाट्य संगीत रचनाओं में "गुंतता हृदया हे ", "हे सुरांनो चंद्र व्हा " और इस तरह के अन्य गीत "माझे जीवना गाणे " / मराठी गजल, "कैवल्याचा ", सर्वात्मक सर्वेश्वरा "," कटा रूते कुणाला "आदि प्रमुख है।
कैरियर
संस्कृत साहित्य में एक डिग्री प्राप्त करने के बाद, अभिषेकी ,एक संक्षिप्त अवधि के लिए ,ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) मुंबई में शामिल हो गए, जहा वे कई संगीतकारों के साथ संपर्क में आये और उन्हें रेडियो कार्यक्रमों के लिए अपनी रचनाओ द्वारा अपनी संगीत प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर मिला। इस बीच उन्हें संगीत के क्षेत्र में उन्नत प्रशिक्षण के लिए भारत सरकार से छात्रवृत्ति प्राप्त की तथा उस्ताद अज़मत हुसैन खान के सानिध्य में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा। उन्होंने करीब 25 मराठी नाटकों के लिए संगीत भी बनाया। साठ के दशक में होमी भाभा फैलोशिप प्राप्त करने के बाद, वह सितार वादक पंडित रवि शंकर द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में चलाए जा रहे एक संगीत स्कूल में पढने लगे। उन्होंने अपनी मातृभूमि गोवा से अपने संबंधों को बनाए रखा और कला अकादमी के साथ सहयोग के माध्यम से राज्य से छात्रों को परामर्श देते रहे एवं उनका मार्गदर्शन किया।
विरासत
अभिषेकी के जाने-माने संगीत शिष्यो में बेटा शौनक अभिषेकी,आशा खड़ीकर , देवकी पंडित, शुभा मुद्गल, अजीत कड़कड़े , राजा काळे , प्रभाकर कारेकर , हेमंत पेंडसे, डॉ मोहन कुमार दारेकर, विजय कोपरकर , महेश काळे और मकरंद हिंगने शामिल हैं
पुरस्कार और सम्मान
- होमी भाभा फैलोशिप (1969)
- नाट्यदर्पण पुरस्कार (1978)
- पद्म श्री (1988)
- संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार (1989)
- महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार (1990)
- गोमांतक मराठी अकादमी पुरस्कार (1992)
- बालगंधर्व पुरस्कार (1995)
- सुरश्री केसरीबाई केरकर पुरस्कार (1996)
- मास्टर दीनानाथ स्मृति पुरस्कार (1996)
- लता मंगेशकर पुरस्कार (1996)
- बालगंधर्व पुरस्कार (नाट्यपरिषद, 1997)
- पुरस्कार (कैलाश गणित नासिक, 1997)