जलालुद्दीन मुहम्मद शाह
जलालुद्दीन मुहम्मद शाह् جلال الدین محمد شاہ | |||||
---|---|---|---|---|---|
सुल्तान سلطان | |||||
बंगाल का सुल्तान سلطنة البنغالية سلطناتِ بنگلہ गणेश वंश نسلِ گنیش | |||||
पूर्ववर्ती | शिहाबुद्दीन बेज़ीद शाह | ||||
उत्तरवर्ती | राजा गणेश | ||||
Reign | 1415–1416 | ||||
पूर्ववर्ती | राजा गणेश | ||||
उत्तरवर्ती | शिहाबुद्दीन बेज़ीद शाह | ||||
Reign | 1418–1433 | ||||
जीवनसंगी | ग्यास उद्दीन आजम शाह की बेटी अस्मंतरा[1] | ||||
संतान | शमसुद्दीन अहमद शाह | ||||
| |||||
घराना | गणेश राजवंश | ||||
पिता | राजा गणेश | ||||
माता | त्रिपुरा सुंदरी देवी[3] | ||||
धर्म | इस्लाम |
जलालुद्दीन मुहम्मद शाह (बांग्ला: জালালউদ্দীন মুহম্মদ শাহ; या यदु वा जदु[4][]) १५वीं शताब्दी में बंगाल के सुल्तान और मध्ययुगीन बंगाली इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। वह गणेश राजवंश की कुलपति राजा गणेश के घर में एक हिंदू बनकर जन्म लिया। उसने एक तख्तापलट के बाद बंगाल का सिंहासन ग्रहण किया जो इल्यास शाही राजवंश को उखाड़ फेंका। उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया और बंगाल सल्तनत पर १६ वर्षों तक शासन किया। एक मुस्लिम राजा के रूप में, उन्हों ने अराकान को बंगाली अधिराज्य के अधीन लाया और राज्य के घरेलू प्रशासनिक केंद्रों को समेकित किया। उन्होंने तिमुरीद साम्राज्य, मामलुक मिस्र और मिंग चीन के साथ संबंध बनाया था।[5] उसके शासनकाल में बंगाल धन और जनसंख्या में वृद्धि हुई। उन्होंने बंगाली और इस्लामी वास्तुकला को भी जोड़ा।
पहला भाग के शासन (1415-1416)
गोरोन और गोयनका के अनुसार, राजा गणेश ने सुल्तान बयाज़ीद (1412-1414) की मृत्यु के तुरंत बाद बंगाल पर नियंत्रण ले लिया। कुतुब अल-आलम नामक एक संत के इशारे पर हमले के आसन्न खतरे का सामना करते हुए, उन्होंने संतों से अपनी धमकी वापस लेने की अपील की। संत ने इस शर्त पर सहमति व्यक्त की कि राजा गणेश के पुत्र यदू इस्लाम में परिवर्तित हो जाएंगे और उनके स्थान पर शासन करेंगे। राजा गणेश का सहमत पर यदू ने बंगाल को 1415 ईस्वी में जलाल अल-दीन के रूप में शासन करना शुरू किया। नूर कुतुब की 1416 ईस्वी में मृत्यु हो गई और राजा गणेश ने अपने बेटे को पदच्युत करने और खुद को 'धनुजमर्दन देव' के नाम में सिंहासन पर बैठने के लिए प्रयास किया । हिरण्यगर्भ अनुष्ठान द्वारा जलालुद्दीन को हिंदू धर्म में वापस लाया गया। अपने पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने एक बार फिर इस्लाम धर्म अपनाया और अपने दूसरे भाग पर शासन करना शुरू किया।[6]
दुसरा भाग के शासन (1418–1433)
अपने दूसरे चरण के शासन के दौरान जलालुद्दीन ने एक शांतिपूर्ण राज्य बनाए रखा। उसका अधिकार पूर्वी बंगाल मोअज्जमाबाद (वर्तमान सुनामगंज) और दक्षिण-पूर्वी बंगाल (वर्तमान चटगांव) तक फैला हुआ था। उसने फतहाबाद (वर्तमान फरीदपुर) और दक्षिणी बंगाल पर भी विजय प्राप्त की। उनके शासनकाल के दौरान फ़िरोज़ाबाद पांडुआ एक आबादी वाला और समृद्ध शहर बन गया। यह मिंग शी में दर्ज है कि एक चीनी परिब्राजक चेंग हो ने 1421-22 और 1431-33 में दो बार शहर का दौरा किया।
उन्होंने राजदानी पाण्डुया से गौड़ में शिफ्ट किया था।.[5] उसके शासनकाल के दौरान गौड़ शहर फिर से आबाद होने लगा। जलालुद्दीन ने खुद कई इमारतों और सराय का निर्माण किया।[7]
मृत्यु
उनकी मृत्यु राबियस सानी, 837 हिजरी (1433 ईस्वी) में हो गई। उन्हें पांडुआ में एकलखी मकबरा में दफनाया गया था जो आज एक बहस का विषय है।[8]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ Sarkar, Jagadish Narayan (1985). Hindu-Muslim relations in Bengal: medieval period. Idarah-i Adabiyat-i-Delli. पृ॰ 52. OCLC 13980579.
- ↑ The Philological Secretary, Journal of the Asiatic Society of Bengal, Volume 43 (1874), p.294
- ↑ "Social History of Bengal", DC Sanyal, Page - 76
- ↑ Goron, Stan; Goenka, J.P. (2001). The Coins of the Indian Sultanates. Munshiram Manoharlal. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-215-1010-3.
- ↑ अ आ सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
का गलत प्रयोग;bpedia
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ Hanif, N. (2000). Biographical encyclopedia of Sufis. Sarup & Sons. पृ॰ 320. OCLC 786166571.
- ↑ Majumdar, R.C. (ed.) (2006). The Delhi Sultanate, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, pp.209–11
- ↑ "Adina Masjid". ASI, Kolkata Circle. अभिगमन तिथि 2019-04-03.