जयसमंद
Dhebar Lake | |
---|---|
ढेबर झील (जयसमंद झील) | |
स्थान | Udaipur District, Rajasthan |
निर्देशांक | 24°16′N 74°00′E / 24.267°N 74.000°Eनिर्देशांक: 24°16′N 74°00′E / 24.267°N 74.000°E |
झील प्रकार | reservoir |
मुख्य अन्तर्वाह | Gomati River |
मुख्य बहिर्वाह | Gomati River |
द्रोणी देश | India |
अधिकतम लम्बाई | 9 मील (14 कि॰मी॰) |
सतही क्षेत्रफल | 87 कि॰मी2 (34 वर्ग मील) |
अधिकतम गहराई | 102 फीट (31 मी॰) |
तट लम्बाई1 | 30 मील (48 कि॰मी॰) |
द्वीप | 7 Islands |
1 तट लम्बाई का मापन सटीक नहीं होता है |
'ढेबर झील या जयसमंद झील पश्चिमोत्तर भारत के दक्षिण-मध्य राजस्थान राज्य के अरावली पर्वतमाला के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक विशाल जलाशय है। यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को विश्व की दूसरी तथा एशिया की पहली मीठे पानी की कृत्रिम सबसे बड़ी कृत्रिम झील होने का गौरव प्राप्त है। यह उदयपुर जिला मुख्यालय से 51 कि॰मी॰ की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर उदयपुर-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की सुन्दरता से यह झील वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है। जयसमंद झील के साथ साथ यह जयसमंद वन्य जीव अभयारण्य भी है, यहाँ घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून के समय है। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर दृश्य है।
इसका निर्माण उदयपुर के महाराणा जयसिंह द्वारा 1687-1691 में निवास के लिए करवाया गया था। जयसमंद झील पर दो महलों का निर्माण करवाया गया मुख्य महल 'हवा महल' के नाम से जाना जाता है तथा यह महल रूठी रानी के महल के नाम से विख्यात है। किंतु जयसमंद झील पर दो महलों का निर्माण करवाया गया था एक महल(रूठी रानी का महल) जयसमंद झील के पाल से सामने की ओर पहाड़ पर दिखाई पड़ता है व एक महल(हवा महल) पाल किनारे स्थित पहाड़ पर। पाल पर ही एक मंदिर का निर्माण करवाया गया जिसका नाम नरबदेश्वर महादेव मंदिर नाम से जाना जाता है पाल के एक तरफ झील है तथा दूसरी तरफ भ्रमण के लिए बगीचे/उद्यान का निर्माण करवाया गया है। तथा महाराणा जयसिंह द्वारा इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी करवाया था।
जयसमंद झील के सबसे बड़े टापू का नाम बाबा का भाखड़ा व सबसे छोटे टापू का नाम प्यारी है।
इतिहास
उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 1711 से 1720 ईसवी के मध्य 14 हजार 400 मीटर लंबाई एवं 9 हजार 500 मीटर चौडाई में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी का स्वरूप मानी जाती है।[1] दो पहाडि़यों के बीच में गोमती नदी पर जिसमें नौ 9 नदियाँ और निन्यानवे 99 नाले गिरते हैं। जयसमन्द झील का मुल नाम ढेबर है और महाराणा जयसिंह के नाम पर इसे 'जयसमन्द' कहा जाने लगा। जयसमन्द में पानी की आवक के लिए गौतमी व झामरी नदी और वगुरवा नाला प्रमुख हैं। नाले को स्थानीय भाषा में वेला भी कहा जाता हैं।
स्थापत्य
स्थापत्य कला की दृष्टि से बना बाँध अपने आप में आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। झील की तरफ़ के बाँध पर कुछ-कुछ दूरी पर बनी छह खूबसूरत छतरियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। गुम्बदाकार छतरियाँ पानी की तरफ़ उतरते हुए बनी हैं। इन छतरियों के सामने नीचे की ओर तीन-तीन बेदियाँ बनाई गई हैं। सबसे नीचे की बेदियों पर सूंड़ को ऊपर किए खड़ी मुद्रा में पत्थर की कारीगरी पूर्ण कलात्मक मध्यम कद के छह हाथियों की प्रतिमा बनाई गई है। यहीं पर बाँध के सबसे उँचे वाले स्थान पर महाराणा जयसिंह द्वारा भगवान शिव को सर्मपित 'नर्मदेश्वर महादेव' का कलात्मक मंदिर भी बनाया गया है।
एशिया की संभवत सबसे बड़ी कृत्रिम झील बाँध के उत्तरी छोर पर महाराणा फतहसिंह द्वारा निर्मित महल है, जिन्हें अब विश्रामगृह में तब्दील कर दिया गया है। दक्षिणी छोर पर बने महल "महाराज कुमार के महल" कहे जाते थे। दक्षिण छोर की पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह द्वारा बनाए गए महल का जीर्णोद्धार महाराणा सज्जनसिंह के समय कराया गया था। उन्होंने इस झील के पीछे 'जयनगर' को बसाकर कुछ इमारतें एवं बावड़ी का निर्माण करवाया था, जो आबाद नहीं हो सके। आज यहाँ निर्माण के कुछ अवशेष ही नजर आते हैं।
बाँध का निर्माण
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि झील में पानी लाने वाली गोमती नदी पर महाराणा जयसिंह ने 375 मीटर लंबा एवं 35 मीटर ऊँचा बाँध बनवाया था, झील को बंधवाने के लिए महाराणा द्वारा वख्ता एवं गलालिंग दो पुर्बिया चौहान राजपूतो को जो आपस में काका भतीजा थे के जिम्में दियाा झील के तल की चौड़ाई 20 मीटर एवं ऊपर से चौड़ाई पाँच मीटर है। बाँध का निर्माण के सलुम्बर में स्थित बरोडा गाँव की खदानों से सफेद पत्थरों से करवाया गया बरोडा की खदान से झील तक पत्थरों को गधे पर लाद कर लाया गय था झील की मजबूती के लिहाज से दोहरी दीवार बनाई गई है। सुरक्षा की दृष्टि से बाँध से करीब 100 फीट की दूरी पर 396 मीटर लंबा एवं 36 मीटर ऊँचा एक और बाँध बनवाया गया। महाराणा सज्जनसिंह एवं फहसिंह के समय में इन दो बाँधों के बीच के भाग को भरवाया गया और समतल भूमि पर वृक्षारोपण किया गया।
पर्यटन
जयसमन्द झील पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र बन गई है। झील के अंदर बाँध के सम्मुख एक टापू पर पर्यटकों की सुविधा के लिए 'जयसमन्द आइलेंड' का निर्माण एक निजी फर्म द्वारा कराया गया है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए अच्छे सुविधायुक्त वातानुकूलित कमरे, रेस्टोरेन्ट, तरणताल एवं विविध मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए नौका का संचालन किया जाता है। नौका से झील में घूमना अपने आप में अनोखा सुख का अनुभव देता है। जयसमन्द झील के निकट वन एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए वन विभाग द्वारा वन्यजीव अभयारण्य भी बनाया गया है। यहाँ एक मछली पालन का अच्छा केन्द्र भी है। झील की खूबसूरती और प्राकृतिक परिवेश की कल्पना इसी से की जा सकती है कि अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में यहाँ के दृश्यों को कैद किया है। सड़क के किनारे सघन वनस्पति एवं वन होने से उदयपुर से जयसमंद झील पहुँचना भी अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं है।
मुख्य तथ्य
- ढेबर झील पूरी तरह से भरी होती है, तो इसका क्षेत्रफल लगभग 50 वर्ग कि॰मी॰ होता है।
- ढेबर झील का मूल नाम जय समंद था और यह 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गोमती नदी के आर-पार बने एक संगमरमर के बाँध द्वारा निर्मित है।
- पश्चिमी क्षेत्र में स्थित गाँवों तक झील से नहरों द्वारा पानी ले जाया जाता है, जहाँ तट पर मछुआरों के गाँव बसे हुए हैं।
- दक्षिण की ओर स्थित पहाड़ियों पर दो महल खड़े हैं।
सन्दर्भ
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अक्तूबर 2017.
Jaysmad zeel me debha dangi ka balidan he is vajah se usko dhebar kha jata he