जठरांत्र शोथ
जठरांत्र शोथ वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
Gastroenteritis viruses: A = rotavirus, B = adenovirus, C = Norovirus and D = Astrovirus. The virus particles are shown at the same magnification to allow size comparison. | |
आईसीडी-१० | A02.0, A08., A09., J10.8, J11.8, K52. |
आईसीडी-९ | 008.8 009.0, 009.1, 558 |
डिज़ीज़-डीबी | 30726 |
मेडलाइन प्लस | 000252 000254 |
ईमेडिसिन | emerg/213 |
एम.ईएसएच | D005759 |
जठरांत्र शोथ (गैस्ट्रोएन्टराइटिस) एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसे जठरांत्र संबंधी मार्ग ("-इटिस") की सूजन द्वारा पहचाना जाता है जिसमें पेट ("गैस्ट्रो"-) तथा छोटी आंत ("इन्टरो"-) दोनो शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों को दस्त, उल्टी तथा पेट में दर्द और ऐंठन की सामूहिक समस्या होती है।[1] जठरांत्र शोथ को आंत्रशोथ, स्टमक बग तथा पेट के वायरस के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। हलांकि यह इन्फ्लूएंजा से संबंधित नहीं है फिर भी इसे पेट का फ्लू और गैस्ट्रिक फ्लू भी कहा जाता है।
वैश्विक स्तर पर, बच्चों में ज्यादातर मामलों में रोटावायरस ही इसका मुख्य कारण हैं।[2] वयस्कों में नोरोवायरस[3] और कंपाइलोबैक्टर[4] अधिक आम है। कम आम कारणों में अन्य बैक्टीरिया (या उनके जहर) और परजीवी शामिल हैं। इसका संचारण अनुचित तरीके से तैयार खाद्य पदार्थों या दूषित पानी की खपत या संक्रामक व्यक्तियों के साथ निकट संपर्क के कारण से हो सकता है।
प्रबंधन का आधार पर्याप्त जलयोजन है। हल्के या मध्यम मामलों के लिए, इसे आम तौर पर मौखिक पुनर्जलीकरण घोल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अधिक गंभीर मामलों के लिए, नसों के माध्यम से दिये जाने वाले तरल पदार्थ की जरूरत हो सकती है। जठरांत्र शोथ प्राथमिक रूप से बच्चों और विकासशील दुनिया के लोगों को प्रभावित करता है।
लक्षण एवं संकेत
जठरांत्र शोथ में आम तौर पर दस्त और उल्टी दोनों शामिल हैं,[5] या कम आमतौर पर इसमे केवल एक या दूसरा शामिल होता है।[1] पेट में ऐंठन भी मौजूद हो सकती है।[1] संकेत और लक्षण आमतौर पर संक्रामक एजेंट से संपर्क के 12-72 घंटे बाद आरंभ होते हैं।[6] यदि यह एक वायरल एजेंट के कारण हुआ हो तो स्थिति आमतौर पर एक सप्ताह के भीतर ठीक हो जाती है।[5] कुछ वायरल स्थितियां बुखार, थकान, सिरदर्द, और मांसपेशियों में दर्द के साथ जुड़ी हो सकती हैं।[5] यदि मल खूनी है, तो इसके वायरस जनित होने की संभावना कम है[5] और बैक्टीरिया जनित होने की संभावना अधिक है।[7] कुछ बैक्टीरिया संक्रमण गंभीर पेट दर्द के साथ संबद्ध किये जा सकते है और कई हफ्तों तक बने रह सकते हैं।[7]
रोटावायरस से संक्रमित बच्चे आमतौर पर तीन से आठ दिनों के भीतर पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं।[8] हालांकि, गरीब देशों में गंभीर संक्रमण के लिए उपचार अक्सर पहुँच से बाहर होता है और लगातार दस्त आम स्थिति है।[9] निर्जलीकरण, दस्त की एक आम समस्या है,[10] और निर्जलीकरण की काफी महत्वपूर्ण मात्रा वाले बच्चे को लंबे समय तक केशिका फिर से भरना, खराब त्वचा खिचाव और असामान्य साँस की समस्या हो सकती है।[11] खराब स्वच्छता वाले क्षेत्रों में संक्रमणों का फिर से होना आमतौर पर देखा जाता है और परिणास्वरूप कुपोषण,[6] अवरुद्ध विकास तथा लंबी अवधि का संज्ञानात्मक विलंब हो सकता है।[12]
कंपाइलोबैक्टर प्रजातियों के साथ संक्रमण के बाद 1% लोगों में प्रतिक्रियाशील गठिया हो जाता है और 0.1% लोगों मेंगुलियन-बैरे सिंड्रोम हो जाता है।[7] एस्केरेशिया कॉलि का निर्माण करने वाले शिगा टॉक्सिन या शिगेला प्रजातियों के साथ संक्रमण के परिणामस्वरूप रक्तलायी (हीमोलिटिक) यूरेमिक सिंड्रोम (HUS) हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप निम्न प्लेटलेट संख्या, खराब गुर्दा गतिविधि तथा निम्न रक्त कोशिका संख्या (उनमें टूटन के फलस्वरूप) की समस्या हो सकती है।[13] HUS होने की संभावना के मामले में, वयस्कों की तुलना में बच्चे अधिक संवेदनशील होते हैं।[12] कुछ वायरल संक्रमण मामूली शिशु दौरे भी पैदा कर सकते हैं।[1]
कारण
वायरस (विशेष रूप से रोटावायरस) और बैक्टीरिया एस्केरेशिया कॉलि और कंपाइलोबैक्टर प्रजातियां जठरांत्र शोथ का प्राथमिक कारण हैं।[6][14] हलांकि, कई अन्य संक्रामक एजेंट भी इस रोग का कारण बन सकते हैं।[12] कुछ अवसरों पर गैर संक्रामक कारणों को भी देखा गया है लेकिन उनके होने की संभावना वायरल या बैक्टीरियल एटियॉलॉजि से कम है।[1] प्रतिरक्षा की कमी और अपेक्षाकृत खराब स्वच्छता के कारण बच्चों में संक्रमण का जोखिम अधिक होता है।[1]
विषाणुजनित (वायरल)
वे वायरस जो जठरांत्र शोथ के होने के कारणों में शामिल हैं उनको रोटावायरस, नोरोवायरस, एडेनोवायरस और एस्ट्रोवायरस कहा जाता हैं।[5][15] रोटावायरस बच्चों में जठरांत्र शोथ का सबसे आम कारण है,[14] और विकसित तथा विकासशील दुनिया, दोनों में समान प्रकार की दर से इसको पैदा करता है।[8] बाल उम्र समूह में संक्रामक दस्त के मामलों का 70% कारण वायरस है।[16] सक्रिय रोगक्षमता के कारण वयस्कों में रोटावायरस, कम आम कारण है।[17]
अमरीका में वयस्कों के बीच जठरांत्र शोथ का प्रमुख कारण नोरोवायरस है, जिसका प्रकोप 90% से अधिक मामलों में हो सकता है।[5] ये सभी स्थानीयकृत महामारियां आम तौर पर तब होती हैं जब लोगों के समूह, एक दूसरे के करीब शारीरिक निकटता में समय बिताते हैं, जैसे कि क्रूज जहाज पर,[5] अस्पतालों में, या रेस्तरां में।[1] दस्त के समाप्त होने के बाद भी लोग संक्रामक रह सकते हैं।[5] नोरोवायरस, बच्चों में लगभग 10% मामलों का कारण होता है।[1]
जीवाण्विक (बैक्टीरियल)
विकसित दुनिया में कंपाइलोबैक्टर जेजुनि बैक्टीरियल जठरांत्र शोथ का प्राथमिक कारण है जिसमें से आधे मामले पोल्ट्री से जुड़े हुये हैं।[7] बच्चों में,15% मामले बैक्टीरिया के कारण होते हैं, जिसमें सबसे आम प्रकार एस्केरेशिया कॉलि, साल्मोनेला, शिगेला और कंपाइलोबैक्टर प्रजातियाँ हैं।[16] यदि भोजन, बैक्टीरिया से संदूषित हो जाय और कई घंटे तक कमरे के तापमान पर रहे तो जीवाणु बढ़ते हैं तथा इस भोजन का उपभोग करने वालों में संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं।[12] कुछ खाद्य जो आमतौर पर बीमारी से संबंधित हैं उनमें कच्चा या कम पका मांस, पोल्ट्री, समुद्री भोजन तथा अंडे, गैर पास्चरीकृत दूध तथा नरम चीज़ फल व सब्जी के रस शामिल हैं।[18] विकासशील दुनिया में, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और एशिया में हैजा, जठरांत्र शोथ का एक आम कारण है। यह संक्रमण आम तौर पर दूषित पानी या भोजन के द्वारा फैलता है।[19]
जहर पैदा करने वाला क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल दस्त का एक महत्वपूर्ण कारण है जो कि बुजुर्गों में अधिक होता है।[12] शिशु, इन बैक्टीरिया का संवहन, विकासशील लक्षणों के बिना, कर सकते हैं।[12] यह उन उन लोगों में दस्त का आम कारण है जो अस्पताल में भर्ती होते हैं और एंटीबायोटिक के उपयोग के साथ अक्सर जुड़ा हुआ है।[20] उनको स्टैफलोकॉकस ऑरीस संक्रामक दस्त भी हो सकता है जिन्होनें एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया है।[21] "ट्रैवेलर्स डायरिया" आमतौर पर जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न जठरांत्र शोथ का एक प्रकार है। एसिड का दमन करने वाली दवा, कई जीवों से प्रभावित होने के बाद महत्वपूर्ण जोखिम को बढ़ाती हुई प्रतीत होती है, इन जीवों में क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल, सेल्मोनेला और कंपाइलोबैक्टर प्रजातियां शामिल हैं।[22] यह जोखिम H2 एंटागोनिस्ट के साथ वालों से प्रोटॉन पंप इनहिबटर्स में अधिक है।[22]
परजीवीय
कई सारे एक कोशीय जीव, जठरांत्र शोथ का कारण बन सकते हैं - सबसे आमतौर पर जियार्डिया लैम्बलिया - लेकिन एन्टामोएबा हिस्टोलिटिका तथा क्रिप्टोस्पोरिडियम प्रजातियों को भी शामिल पाया गया है।[16] एक समूह के रूप में, ये एजेंट के 10% बच्चों के मामलों में शामिल होते हैं।[13] जियार्डिया सामान्यतः विकासशील दुनिया में होता है, लेकिन यह इटियॉलॉजिक एजेंट इस तरह की बीमारी कुछ हद तक हर जगह पैदा करता है।[23] यह उन लोगों में अधिक आम तौर पर होता है जो इसके अधिक होने वाली जगहों पर यात्रा करते हैं, बच्चे जो डे-केयर में शामिल होते हैं, पुरुष जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं और आपदाओं के बाद।[23]
प्रसारण (प्रसार)
इसका प्रसार दूषित पानी की खपत से या व्यक्तिगत वस्तुओं को आपस में साझा करने हो सकता है।[6] नम और शुष्क मौसमों वाले स्थानों में, पानी की गुणवत्ता आम तौर पर नम मौसम के दौरान बिगड़ जाती है और यह प्रकोपों के समय के साथ संबद्ध है।[6] ऐसे मौसम वाले दुनिया के क्षेत्रों में संक्रमण, सर्दियों में आम हैं।[12] अनुचित तरीके से साफ की गयी बोतलों के साथ बच्चों को दूध पिलाना वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण कारण है।[6] विशेष रूप से बच्चों में,[5] भीड़ भरे घरों में,[24] और पहले से मौजूद खराब पोषण की स्थिति वाले लोगों में प्रसार दर, खराब स्वच्छता से भी संबंधित है।[12] सहनशक्ति विकसित करने के बाद, संकेतों या लक्षणों के प्रदर्शन के बिना वयस्क कुछ ऐसे जीवों के वाहक हो सकते हैं और छूत के प्राकृतिक कुण्ड की तरह काम कर सकते हैं।[12] जबकि कुछ एजेंट (जैसे शिंगेला के रूप में) केवल नर वानरों में पाए जाते हैं जबकि दूसरे, जानवरों की एक विस्तृत विविधता (जैसे जियार्डिया के रूप में) में हो सकते हैं।[12]
गैर संक्रामक
जठरांत्र संबंधी मार्ग की सूजन के कई सारे गैर संक्रामक कारण हैं।[1] कुछ अधिक आम कारणों में शामिल हैं दवाएं (जैसे NSAIDs), कुछ खाद्य पदार्थ जैसे लैक्टोज़ (जो लोग इसके प्रति असिहष्णु हैं उनमें) और ग्लूटेन (सीलिएक रोग से पीड़ितों में)। क्रोहन का रोग भी जठरांत्र शोथ (अक्सर गंभीर) का गैर- संक्रमण स्रोत है।[1] ऐसे रोग जो विषों का परिणाम हो वे भी हो सकती हैं। मतली, उल्टी और दस्त से संबंधित कुछ खाद्य स्थितियों में शामिल हैं: दूषित शिकारी मछली की खपत के कारण सिग्वाटेरा विषाक्तता, कुछ प्रकार की खराब मछलियों की खपत से जुड़ी स्कॉमब्रॉएड, कई अन्य साथ पफर मछली की खपत से टेट्रोडॉक्सिन विषाक्तता तथा आम तौर पर अनुचित तरीके से संरक्षित भोजन के कारण बॉटुलिस्म।[25]
पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)
जठरांत्र शोथ को छोटी या बड़ी आंत के संक्रमण के कारण से उल्टी या दस्त के रूप में परिभाषित किया जाता है।[12] छोटी आंत में परिवर्तन आम तौर सूजन रहित होते हैं जबकि बड़ी आंत में सूजन के साथ परिवर्तन होते हैं।[12] एक संक्रमण के लिये आवश्यक रोगजनकों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है जो कम से कम एक (क्रिप्टोस्पोरिडियम के लिये) से लेकर 10 8 (विब्रियो कॉलरा के लिए) हो सकते हैं।[12]
रोग के लक्षण
जठरांत्र शोथ आमतौर पर चिकित्सीय रूप से पहचाना जाता है, जो कि किसी व्यक्ति के लक्षणों और चिह्नों पर आधारित होता है।[5] सटीक कारण के निर्धारण की आम तौर पर जरूरत नहीं होती है क्योंकि यह हालात के प्रबंधन में परिवर्तन नहीं करता नहीं है।[6] हालांकि, उन लोगो पर मल कल्चर परीक्षण किया जाना चाहिये जिनके मल में रक्त आ रहा हो, जो खाद्य विषाक्तता के शिकार हुये हों तथा जो हाल ही में विकासशील दुनिया की यात्रा कर के आये हों।[16] नैदानिक परीक्षण, निगरानी के लिए भी किया जा सकता है।[5] जैसे रक्त में शर्करा की कमी लगभग 10% शिशुओं और युवा बच्चों में होती है, इस आबादी में सीरम ग्लूकोज को मापने की सिफारिश की जाती है।[11] जहाँ पर गंभीर निर्जलीकरण चिंता का विषय है वहाँ पर इलेक्ट्रोलाइट्स और गुर्दे की क्रिया की जाँच की जानी चाहिए।[16]
निर्जलीकरण
किसी व्यक्ति को निर्जलीकरण है या नहीं इसका निर्धारण, मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। निर्जलीकरण को आम तौर पर हल्के (3-5%), मध्यम (6-9%) और गंभीर मामलों (≥ 10%) में विभाजित किया गया है।[1] बच्चों में, मध्यम या गंभीर निर्जलीकरण के सबसे सटीक संकेत विलंबित केशिका पुर्नभरण, खराब त्वचा खिचाव और असामान्य श्वसन हैं।[11][26] अन्य उपयोगी निष्कर्षों (जब संयोजन में उपयोग किये जायें) में धंसी हुयी आँखें, कम गतिविधि, आँसू की कमी है और मुँह की शुष्कता शामिल हैं।[1] सामान्य मूत्र उत्पादन और मौखिक तरल पदार्थ का सेवन आश्वस्त करता है।[11] प्रयोगशाला परीक्षण, निर्जलीकरण के स्तर का निर्धारण करने में चिकित्सीय रूप से लाभप्रद है।[1]
विभेदक रोगनिदान
जठरांत्र शोथ में दिखने वाले संकेतों और लक्षणों के समान दिखने वाले लक्षणों के अन्य कारण जिनको अलग करने की आवश्यकता है उनमें उण्डुक-शोथ (अपेंडिसाइटिस), आंत में असामान्य घुमाव के कारण रुकावट (वॉल्वलस), सूजन वाला आंत्र रोग, मूत्र पथ के संक्रमण तथा मधुमेह शामिल हैं।[16] अग्नाशयी कमी, लघु आंत्र सिंड्रोम, व्हिपिल्स रोग, कोलिएक रोग और रेचक समस्या पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।[27] यदि व्यक्ति केवल उल्टी या दस्त (किसी एक से) से पीड़ित हो तो विभेदक निदान कुछ जटिल हो सकता है।[1]
33% मामलों में उण्डुक-शोथ (अपेंडिसाइटिस) उल्टी, पेट दर्द और हल्के दस्त के साथ उपस्थित हो सकता है।[1] यह हल्का दस्त जठरांत्र शोथ के कारण होने वाले दस्त की तीव्रता के वितरीत है।[1] बच्चों में मूत्र पथ या फेफड़ों के संक्रमण भी उल्टी या दस्त का कारण हो सकते हैं।[1] क्लासिकल मधुमेह केटोएसिडोसिस (DKA) में पेट का दर्द, मतली और उल्टी होती है लेकिन दस्त नहीं होता है।[1] एक अध्ययन में पाया है कि DKA से पीड़ित बच्चों में से 17% में शुरू में जठरांत्रशोथ का निदान किया गया गया।[1]
रोकथाम
जीवनशैली
संक्रमण की दरों और चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण जठरांत्र शोथ को कम करने के लिए आसानी से सुलभ शुद्ध पानी की आपूर्ति और अच्छी स्वच्छता आदतें महत्वपूर्ण हैं।[12] विकासशील और विकसित दुनिया दोनो में, व्यक्तिगत उपायों (जैसे हाथ धोना) को जठरांत्र शोथ की घटनाओं और प्रसार की दर में 30% तक की कमी करते देखा गया है।[11] एल्कोहल-आधारित जैल भी प्रभावी हो सकता है।[11] विशेष रूप से, खराब स्वच्छता वाले स्थानों में, आम तौर पर स्वच्छता के सुधार के रूप में स्तनपान महत्वपूर्ण पाया गया है।[6] स्तनपान से प्राप्त दूध संक्रमणों की आवृत्ति और उनकी अवधि दोनों को कम कर देता है।[1] दूषित भोजन या पेय से बचना भी प्रभावी होना चाहिए।[28]
टीकाकरण
इसकी प्रभावशीलता और सुरक्षा, दोनों कारणों से, 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात की सिफारिश की है कि रोटावायरस वैक्सीन सभी दुनिया भर में सभी बच्चों को दिया जाये।[14][29] दो वाणिज्यिक रोटावायरस टीके मौजूद हैं और कई अन्य विकसित हो रहे हैं।[29] अफ्रीका और एशिया में इन टीकों ने शिशुओं में गंभीर बीमारी कम की है[29] तथा वे देश जिन्होनें राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम को ठीक प्रकार से लागू किया है वहाँ पर रोग की दरों और रोग की गंभीरता में एक गिरावट देखी गयी है।[30][31] यह टीका उन बच्चों में बीमारी को रोक सकेगा जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है क्योंकि यह परिसंचारी संक्रमणों की संख्या को कम करेगा।[32] 2000 के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका में रोटावायरस टीकाकरण कार्यक्रम के कार्यान्वयन के कारण, दस्त के मामलों की संख्या में 80% तक की कमी आई है।[33][34][35] शिशुओं को टीके की पहली खुराक 6 से 15 सप्ताह की उम्र के बीच दी जानी चाहिए।[14] मौखिक हैजा टीका को 2 साल से अधिक समय तक 50-60% प्रभावी पाया गया है।[36]
प्रबंधन
जठरांत्र शोथ आमतौर पर एक तीव्र और अपने आप को खुद से सीमित करने वाली बीमारी है जिसके लिये दवा की आवश्यकता नहीं होती है।[10] हल्के तथा मध्यम निर्जलीकरण से पीड़ित लोगों के लिये बेहतर उपचार मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा (ORT) है।[13] मेटोक्लोप्रामाइड और/या ओडनसेन्ट्रन हलांकि कुछ बच्चों में सहायक हो सकते हैं और[37] ब्यूटिलस्कोपामाइन पेट दर्द के इलाज में उपयोगी है।[38]
पुनर्जलीकरण
बच्चों और वयस्कों, दोनों में आंत्रशोथ का प्राथमिक उपचार पुनर्जलीकरण है। अधिमानतः इसे मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा द्वारा हासिल किया जाता है, हलांकि यदि चेतना का स्तर कम हो या निर्जलीकरण गंभीर स्तर का हो तो इसे नसों के माध्यम से देने की आवश्यकता भी पड़ सकती है।[39][40] जटिल कार्बोहाइड्रेट के साथ बनाये गये मौखिक रिप्लेसमेंट थेरेपी उत्पाद (अर्थात गेहूं या चावल से बने) साधारण शर्करा आधारित उत्पादों से बेहतर हो सकते हैं।[41] साधारण शर्करा की उच्च मात्रा वाले पेय जैसे कि शीतल पेय और फलों के रसों को 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए के रूप में सरल शर्करा, विशेष रूप से उच्च पेय 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए अनुशंसा नहीं की जाती है क्योंकि वे दस्त को बढ़ा सकते हैं।[10] यदि अधिक विशिष्ट और प्रभावी ORT मिश्रण अनुपलब्ध हो या स्वीकार्य न हों तो सादा पानी इस्तेमाल किया जा सकता है।[10] यदि आवश्यक हो तो युवा बच्चों में तरल पदार्थ देने के लिये नैसोगेस्ट्रिक ट्यूब का इस्तेमाल किया जा सकता है।[16]
आहार-संबंधी
यह सिफारिश की जाती है कि है कि स्तनपान कराये जा रहे शिशुओं को सामान्य देखभाल जारी रखनी चाहिये तथा फॉर्मूला-पोषित शिशुओं को ORT के साथ पुनर्जलीकरण के तुरंत बाद उनका फॉर्मूला पोषण दिया जाना जारी रखना चाहिए।[42] लैक्टोज-मुक्त या कम-लैक्टोज फॉर्मूले आमतौर पर आवश्यक नहीं हैं।[42] दस्त के प्रकरणों के दौरान बच्चों को उनका आम आहार देना जारी रखना चाहिये तथा इसमें अपवाद स्वरूप साधारण शर्करा की उच्च मात्रा वाले खाद्यों से बचना चाहिये।[42] BRAT आहार (केले, चावल, सेब का सॉस, टोस्ट और चाय) की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें अपर्याप्त पोषक तत्व होते हैं और ये सामान्य भोजन से बेहतर नहीं होते है।[42] बीमारी की अवधि को और दस्त की आवृत्ति, दोनो को कम करने में कुछ प्रोबायोटिक्स फायदेमंद पाये गये हैं।[43] ये एंटीबायोटिक से जुड़े दस्त के इलाज तथा रोकथाम में भी उपयोगी हो सकते है।[44] किण्वित दूध उत्पाद (जैसे दही) समान रूप से फायदेमंद होते हैं।[45] विकासशील देशों में, बच्चों में दस्त के इलाज तथा रोकथाम दोनो में जिंक पूरक प्रभावी पाया गया है।[46]
वमनरोधी (एंटीमेटिक्स)
वमनरोधी दवाएं बच्चों में उल्टी के इलाज के लिए सहायक हो सकती है। नसों के माध्यम से तरल पदार्थों को देने की कम आवश्यकता, अस्पताल में भर्ती होने की कम दर तथा कम उल्टी के साथ जुड़े होने के कारण ऑनडेन्स्ट्रॉन की एक खुराक कुछ उपयोगी है।[47][48][49] मेटोक्लोप्रामाइड भी सहायक हो सकता है।[49] हालांकि, ऑनडेन्स्ट्रॉन का उपयोग संभवतः बच्चों में अस्पताल में वापसी की वृद्धि दर के लिए जुड़ा हुआ हो सकता है।[50] यदि नैदानिक निर्णय के अनुसार आवश्यक हो तो ऑनडेन्स्ट्रॉन की नसों के माध्यम से दिया जाने वाला मिश्रण मौखिक रूप से दिया जा सकता है।[51] उल्टी को कम करने के लिए डाइमेनहाइड्रिनेट, महत्वपूर्ण नैदानिक लाभ नहीं प्रदर्शित करता है।[1]
एंटीबायोटिक्स
जठरांत्र शोथ के लिए आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है, हलांकि यदि लक्षण विशेष रूप से गंभीर हों[52] या अतिसंवेदनशील बैक्टीरिया की पहचान हो या उसका संदेह हो तो कभी-कभी उनकी अनुशंसा की जाती है।[53] यदि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाना है तो फ़्लोरोक्विनोलोन में उच्च प्रतिरोध के कारण मैक्रोलाइड (जैसे एज़ीथ्रोमाइसिन) को अधिक पसंद किया जाता है।[7] स्यूडोमेम्ब्रेनस बृहदांत्रशोथ, जो कि आमतौर पर एंटीबायोटिक के प्रयोग की वजह से होता है, प्रेरक एजेंट को रोक कर तथा मेट्रोनिडाज़ोल या वैंकोमाइसिन द्वारा उपचार करके प्रबंधित किया जाता है।[54] बैक्टीरिया और प्रोटोज़ोन जो कि इलाज के लिए उत्तरदायी हैं, उनमें शिंगेला[55] साल्मोनेला टाइफी,[56] और जियार्डिया प्रजातियां शामिल हैं।[23] जियार्डिया प्रजाति या एंटामोएबा हिस्टोलिटिका वाले मामलों में, टिनिडाज़ोल उपचार की सिफारिश की जाती है जो कि मेट्रोनिडाज़ोल से बेहतर है।[23][57] विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) उन युवा बच्चों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग की सिफारिश करता है जिनमें खूनी पेचिश और बुखार दोनों की समस्या हो।[1]
जठरांत्र गतिशीलताविरोधी एजेंट (ऐंटीमोटिलिटी एजेंट)
जठरांत्रगतिशीलता विरोधी चिकित्सा में जटिलताओं को पैदा करने का एक सैद्धांतिक जोखिम है और हालांकि नैदानिक अनुभव इसकी संभावना को नकारते हैं,[27] इन दवाओं को खूनी पेचिश या बुखार द्वारा जटिल हो गये डायरिया से पीड़ित लोगों के लिये उपयोग किये जाने को हतोत्साहित किया जाता है।[58] लोपरामाइड जो कि एक ओपियॉएड अनुरूप है, आम तौर पर दस्त के लाक्षणिक उपचार के लिए प्रयोग की जाती है।[59] बच्चों के लिये लोपरामाइड की सिफारिश नहीं की जाती है, क्योंकि यह अपरिपक्व रक्त मस्तिष्क बाधा पार करके विषाक्तता पैदा कर सकती है। बिस्मथ सबसैलिसिलेट, जो कि बिस्मथ तथा सैलिसिलेट का एक त्रिसंयोजक अघुलशील यौगिक है, हल्के से लेकर मध्यम स्तर तक के मामलों में इस्तेमाल किया जा सकता है,[27] लेकिन सैलिसिलेट विषाक्तता एक सैद्धांतिक संभावना है।[1]
महामारी विज्ञान
██ कोई जानकारी नहीं ██ ≤कम 500 ██ 500–1000 ██ 1000–1500 ██ 1500–2000 ██ 2000–2500 ██ 2500–3000 | ██ 3000–3500 ██ 3500–4000 ██ 4000–4500 ██ 4500–5000 ██ 5000–6000 ██ ≥6000 |
यह अनुमान है कि जठरांत्र शोथ के तीन से पांच बिलियन मामले हर वर्ष होते हैं[13] जो कि प्राथमिक रूप से बच्चों तथा विकासशील दुनिया के लोगों को प्रभावित करते हैं।[6] इसके कारण 2008 में पाँच वर्ष से कम की आयु के 1.3 मिलियन बच्चों की मृत्यु हुई है,[60] जिनमें से अधिकांश दुनिया के सबसे गरीब देशों के बच्चे हैं।[12] इन मौतों में से 4,50,000 से अधिक वे मौतें है जो पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में रोटावायरस के कारण हुई थीं।[61][62] हैजा, के कारण रोग के तीन से पांच लाख मामले होते हैं तथा यह वार्षिक रूप से लगभग 1,00,000 लोगों को मारता है।[19] विकासशील दुनिया के दो वर्ष से कम की आयु के बच्चों को अक्सर एक वर्ष में छः या अधिक संक्रमण होते हैं जिनके परिणामस्वरूप चिकित्सीय रूप से महत्वपूर्ण जठरांत्रशोथ होता है।[12] यह वयस्कों में कम आम है, आंशिक रूप से जिसका कारण सक्रिय प्रतिरक्षा का विकास होना है।[5]
1980 में सभी कारणों से पैदा हुये जठरांत्र शोथ के कारण 4.6 मिलियन बच्चों की मृत्यु हुई, जिनमें से अधिकांश विकासशील दुनिया में हुई।[54] वर्ष 2000 तक मृत्यु दर में काफी कम हो गई थी (लगभग 1.5 मिलियन वार्षिक मृत्यु), जिसका मुख्य कारण मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा की शुरुआत तथा व्यापक उपयोग था।[63] अमेरिका में जठरांत्र शोथ के कारण होने वाले संक्रमण दूसरे सबसे आम संक्रमण (आम सर्दी के बाद) हैं और इनके कारण 200 से 375 मिलियन मामलों मे गंभीर दस्त हो जाता है[5][12] तथा वार्षिक तौर पर लगभग दस हजार मौतें होती हैं,[12] जिनमें से 150 से 300 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत होती है।[1]
इतिहास
"जठरांत्र शोथ (गैस्ट्रोएन्टराइटिस)" शब्द को सबसे पहले 1825 में उपयोग किया गया था।[64] इस समय से पहले इसे अधिक विशिष्ट रूप से टाइफाइड बुखार या दूसरे नामों के साथ "कॉलरा मॉर्बस", अथवा कम विशिष्ट रूप से "ग्रिपिंग ऑफ गट्स", "सर्फीट","फ्लक्स","बॉवल कंप्लेनेट" या गंभीर दस्त के लिये दूसरे कई पुरातन नामों में से किसी एक नाम से जाना जाता था।[65]
समाज और संस्कृति
जठरांत्र शोथ कई बोलचाल वाले नामों के साथ जुड़ा है, जिनमें कई अन्य नामों के साथ "मॉन्टेज़ूमा रीवेंज", "दिल्ली बेली", "लॉ टूरिस्टा" तथा "बैक डोर स्प्रिंट" शामिल है।[12] इसने कई सैन्य अभियानों में एक भूमिका निभाई है और माना जाता है कि कहावत "नो गट्स नो ग्लोरी" की उत्पत्ति का मूल यही है।[12]
जठरांत्र शोथ के कारण अमरीका में चिकित्सकों के पास प्रत्येक वर्ष 3.7 मिलियन[1] तथा फ्रांस में प्रत्येक वर्ष 3 मिलियन चिकित्सीय दौरे किये जाते हैं।[66] संयुक्त राज्य अमेरिका में जठरांत्र शोथ, समग्र रूप से 23 बिलियन अमरीकी डालर प्रति वर्ष के व्यय के लिये उत्तरदायी है,[67] जिसमें से अकेले रोटावायरस के कारण एक वर्ष में एक बिलियन अमरीकी डालर का अनुमानित व्यय होता है।[1]
शोध
जठरांत्र शोथ के खिलाफ कई सारे टीके विकास की प्रक्रिया में हैं। उदाहरण के लिए, पूरी दुनिया में जठरांत्र शोथ के दो मुख्य बैक्टीरिया जनित कारणों, शिगेला और एन्टेरोटॉक्सिजेनिक {0एस्केरेशिया कॉलि, (ETEC), के खिलाफ टीके।[68][69]
अन्य प्राणियों में
बिल्लियों और कुत्तों में जठरांत्र शोथ, कई ऐसे एजेंटों के कारण होता है जो मनुष्यों के समान हैं। सबसे आम जीव हैं: कैम्पाइलोबैक्टर, क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल,क्लोस्ट्रीडियम परफ्रिंजेंस तथा साल्मोनेला।[70] विषैले पौधों की एक बड़ी संख्या भी लक्षणों को पैदा कर सकती है।[71] कुछ एजेंट कुछ प्रजातियों के लिए अधिक विशिष्ट हैं। संक्रामक जठरांत्र शोथ कोरोनावायरस (TGEV) सुअरों में होता है जिसके कारण उल्टी, दस्त तथा निर्जलीकरण होता है।[72] ऐसा माना जाता है कि यह जंगली पक्षी द्वारा सूअरों में प्रवेश करता है और इसका कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है।[73] यह मनुष्य के लिए संक्रामक नहीं है।[74]
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