जजाऊ का युद्ध
औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई० में दक्कन के अहमदनगर में हुई परन्तु मृत्यु पूर्व उसने अपनी वसीयत में अपने तीन जीवित पुत्रों में साम्राज्य के विभाजन का प्रबन्ध कर दिया था। वसीयत के अनुसार औरंगजेब के शव को औरंगाबाद से दस मील उत्तर-पश्चिम में खुल्दाबाद ले जाया गया जहाँ शेख जैनुद्दीन की मजार के निकट उसे दफनाया गया। इसके उपरान्त उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिये राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्रक्रिया आरम्भ हो गयी। वसीयत के अनुसार, सबसे बड़े पुत्र शहजादा मुअज्जम (जिसे 'शाह आलम की उपाधि प्रदान की थी) को 12 सूबे दिए जाने थे। मुहम्मद आजम को दकन के प्रान्त, गुजरात एवं आगरा तथा छोटे पुत्र कामबख्श को हैदराबाद तथा बीजापुर की सूबेदारी प्रदान की जानीथी। औरंगजेब की मृत्यु के समय शाहआलम जमरूद में, आजम अहमदनगर में, तथा कामबख्श बीजापुर में था। शहजादा मुअज्जम को जब जमरूद में औरंगजेब की मृत्यु की सूचना मिली तो अपने बड़े पुत्र मुइजुद्दीन को लाहौर पहुंचने का आदेश दिया और स्वयं लाहौर के निकट पुल-ए-शाह नामक स्थान पर बहादुरशाह के नाम से 22 अप्रैल, 1707 को अपना राज्याभिषेक करवाया। लाहौर में ही उसने दरबार लगाकर पदों का वितरण किया तथा सिक्के ढलवाये और धार्मिक जनमत को दृष्टिगत रखते हुए सूफी संत शेख अबुल हसन की दरगाह पर जाकर श्रद्धा व्यक्त की। कालान्तर में दिल्ली पहुँचने पर शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर जियारत की तथा अपने सैनिक शक्ति को बढ़ाया। इतना सब कुछ होने तक उसके छोटे पुत्र अजीमुद्दीन ने आगरा पर अधिकार जमा लिया था। बहादुरशाह ने उसकी सहायता हेतु मुनीम खाँ को तुरन्त रवाना किया और स्वयं मथुरा होते हुए आगरा पहुँचा जहाँ उसने सम्पूर्ण राजकोष हस्तगत कर लिया। यहीं पर तत्कालीन जाट शासक चुणामण बहादुरशाह से आकर मिल गया तथा मुहम्मद आजम के कई अन्य विश्वस्त सरदार भी बहादुरशाह की संभावित विजय को देखते हुए उससे मिल गये।
दूसरी ओर मुहम्मद आजम ने वसीयत के प्रावधानों को नकारते हुए अपना राज्याभिषेक अहमदनगर में करवाया। उसने भी इस अवसर पर कई उपाधियां धारण की साथ ही अपना नाम खुतबे में पढ़वाया तथा सिक्के ढलवाये। इसके अतिरिक्त वफादारों को योग्यतानुसार पद प्रदान किया तथा औरंगाबाद जाकर शेख बुरहानुद्दीन गरीब की मजार पर श्रद्धा प्रकट की। यहीं पर जुल्फिकार खां, राव दलपत बुन्देला, राम सिंह हांडा तथा छत्रसाल राठौर आदि व्यक्ति उसके साथ मिल गये थे। औरंगाबाद से आजम बुरहानपुर, सिरोज, दोरहा होते हुए ग्वालियर पहुँचा तथा वहाँ व्यवस्थित होने के बाद अपने पुत्र देवारबख्त के साथ आगरा की ओर कूच किया। इस समय आजम की सैन्य संख्या तकरीबन एक लाख दस हजार थी। यहाँ सैनिकों से बड़े-बड़े वादे किये गये और इन्हीं आश्वासनों के साथ उसके सैनिक लड़ने को तैयार थे।
जजाऊ का युद्ध (18 जून, 1707 ) - मुहम्मद मुअज्जम ( बहादुरशाह) ने यद्यपि युद्ध टालने की तमाम कोशिश की तथापि परिस्थितियों ने युद्ध अवश्यम्भावी बना दिया। इसी क्रम में बहादुरशाह ने एक पत्र द्वारा जब आजम को वसीयत के अनुसार साम्राज्य विभाजन की बात कही तो आजम भड़क उठा और कहा कि बहादुरशाह जैसे वयस्क के लिए ऐसे बुद्धिहीन विचार अशोभनीय हैं। दुनिया शेख सादी के उस कथन से परिचित है कि “एक चादर के नीचे दस संन्यासी तो रह सकते हैं। किन्तु एक साम्राज्य में दो बादशाह कदापि नहीं" बहादुरशाह का यह प्रस्ताव भिखारियों जैसा है, बादशाहों के जैसा नहीं।
वास्तव में मुगलों के अघोषित उत्तराधिकार की समस्या इतनी वीभत्स हो चुकी थी कि बिना तलवार के फैसले संभव नहीं थे। युद्ध ही मात्र एक विकल्प था। आगरा से 12 मील दूर 'जजाऊ' नामक स्थान पर दोनों सेनायें आमने-सामने हुई। आजम के पुत्र वेदारबख्त का युद्ध के आरम्भ में मारा जाना युद्ध को बहादुरशाह की तरफ मोड़ दिया। इस बीच जुल्फिकार खाँ ने जब आजम को युद्ध से हटने और शक्ति एकत्र करने के लिए कहा तो आजभ ने उससे कहा कि उसे उसके परामर्श की आवश्यकता नहीं है। इस बात से नाराज जुल्फिकार खाँ जोमें आजम का साथ छोड़कर चला गया तथा उसके जाते ही आजम के अन्य सहयोगी भा क्रमशः युद्ध स्थल से उसका साथ छोड़ जाते हैं। अन्त में आजम अपने कुछ सैनिकों सहित युद्ध युद्ध क्षेत्र में ही मारा जाता है। सायंकाल में जब आजम का कटा हुआ सिर बहादुरशाह के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो वह इस कार्य की निन्दा करता है और चिल्ला-चिल्ला कर रोता है। बहादुरशाह शान्त होने पर आजम तथा उसके पुत्रों के शव को राजकीय सम्मान के साथ चन्दन के ताबूत में रखकर आगरा से दिल्ली ले जाने और हमायूँ के मकबरे में दफन करने की आज्ञा देता है।
जजाऊ के युद्ध (18 जून, 1707) में बहादुरशाह ने आजम को पराजित किया तथा दो पुत्रों सहित उसे कत्ल कर दिया गया एवं बीजापुर के युद्ध में जनवरी 1709 में कामबख्श भी मारा गया।
कामबख्श ने स्वयं को बीजापुर में ही भारत का सम्राट घोषित किया एवं आजम ने दक्षिण में अपने को बादशाह घोषित किया और वहाँ से आगरा के जजाऊ नामक स्थान पर पहुँचा परन्तु तब तक बहादुरशाह की आज्ञा से उसके पुत्र अजीम-उस-शान ने आगरा पर अधिकार कर लिया था।
जजाऊ के युद्ध के बाद बीजापुर के युद्ध में कामबख्श भी 1709 में मारा गया। और पूर्ण सत्ता बहादुर शाह के पास आ गई।