जगदीशचन्द्र
ये जगदीशचन्द्र माथुर से अलग हिन्दी साहित्यकार थे।
जगदीशचन्द्र ( २३ नवम्बर १९३० -- 10 अप्रैल, 1996) एक हिन्दी साहित्यकार थे।
जगदीशचंद्र का जन्म बचपन पंजाब के होशियारपुर के घोड़ेवाहा नामक गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम करमचंद वैद्य तथा माता का नाम त्रिकमदेवी था । उनके विश्वामित्र नाम के एक भाई थे । उनका बचपन दो गाँवों रलहन (ननिहाल) और घोड़ेवाहा में गुजरा। जगदीशचंद्र का परिवार उच्चवर्गीय था। घर का प्रमुख व्यवसाय खेती तथा पशुपालन था। [1]
रलहन गाँव में अधिकांश कृषक परिवार थे। इस गाँव में जाति-भेद बहुत था। बचपन में लेखक के मन में दलित बस्ती के बारे में कौतुहल था। घर क माहौल उच्चवर्गीय होने से दलित बस्ती में जाने पर रोक लगाई थी । फिर भी जगदीशचंद्र चोरी-छुपे वहाँ पहुँच जाते थे और दलित लड़कों के साथ खेलना तथा उनके साथ कभी-कभी खाना भी खाते थे। उनका अमरचंद नाम का दलित मित्र था, जिसके घर जगदीशचंद्र चोरी-छुपे खाना खाते थे। नानी के द्वारा जातिविशेष की हिदायत देने पर जगदीशचंद्र के बालमन में प्रश्न उठता था कि “एक ही जमीन में कुओं से निकलनेवाला पानी, एक-से खेतों में उपजनेवाला अनाज और साग-सब्जी इस बस्ती में पहुँचने और पकने के बाद भिन्न और सवर्ण जातियों के खाने-पीने और स्पर्श के अयोग्य क्यों हो जाते हैं?”
जगदीशचंद्र की प्रारंभिक शिक्षा ननिहाल रलहन गाँव में पूरी हुई । हाईस्कूल तक की पढ़ाई के लिए रलन गाँव से पाँच कि. मी. दसूहा नामक गाँव में हररोज पैदल जाना पड़ता था । स्नातक तक की शिक्षा होशियारपुर से पूरी की। डी. ए. वी. कॉलेज जालंधर से अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर हुए। - स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद आरंभ में प्रुफ रीडिंग जैसे कार्य में संलग्न रहे । नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गए। दिल्ली में पहली विधिवत नौकरी आकाशवाणी में सन् 1955 ई. में प्रेस इन्फर्मेशन ब्यूरो से सम्बद्ध रहे। सन् 1957 ई. में उनका तबादला श्रीनगर हो गया । छः साल वहाँ रहकर फिर 1962 में वे दिल्ली वापस आ गए। सन् 1978 ई. में दूरदर्शन के न्यूज विभाग में नौकरी की और वहीं से सेवानिवृत्त हो गये।
जगदीशचंद्र का विवाह क्षमा वैद्य के साथ हुआ । एक अर्धांगिनी के नाते श्रीमती क्षमा वैद्य ने जगदीशचंद्र का सफल साथ दिया। अपने पति के लेखन-कार्य के आगे उन्होंने अपनी आकांक्षाओं को सीमित रखा। किसी भी पारिवारिक कार्यक्रम में श्रीमती क्षमा वैद्य को अकेली जाना पड़ता था, परंतु उन्होने इसका कभी बुरा नहीं माना । अपने पति की सेवा के लिए सदैव रत रहने में ही श्रीमती क्षमा वैद्य ने अपने जीवन की सार्थकता मानी ।
जगदीशचंद्र को लेखन की ओर प्रवृत्त करने का श्रेय उनके घनिष्ठ मित्र सोम आनन्द को ही जाता है। तरसेम गुजराल के साथ साक्षात्कार में लेखक जगदीशचंद्र ने अपने लेखन की प्रेरणा बताते हुए कहा कि "गाँव का आम आदमी, जिसे व्यापक अर्थों में जनता कहा जाना चाहिए मेरी प्रेरणा रही है । वहाँ कमजोर आदमी का लगातार शोषण मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ और मैं खुद भी इस शोषण का एक हिस्सा रहा हूँ लेकिन अर्थशास्त्र के अध्ययन और फिर मार्क्सवाद के अध्ययन ने मुझे दृष्टि दी, नहीं तो गाँव के दूसरे लोगों की तरह मैं भी जुल्म को भगवान की देन समझता। लेकिन इस दृष्टि से पता चला कि उसका समाधान निकाला जा सकता है।"
सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे जालंधर शहर में परिवार के साथ रहने लगे थे। सन् 10 अप्रैल 1996 ई. को जालंधर में इनका निधन हो गया ।
कृतियाँ
इनके साहित्यिक जीवन का आरम्भ आज से कोई पचास वर्ष पूर्व उर्दू कहानी ‘पुराने घर’ और पंजाबी नाटक ‘उड़ीका’ के लेखन से हुआ। पहला उपन्यास 'यादों के पहाड़' 1966 में प्रकाशित हुआ।
उपन्यास
- यादों का पहाड़ (1966)
- धरती धन न अपना (1972)
- आधा पुल (1973)
- कभी न छोड़े खेत (1976)
- मुठ्ठी भर कांकर (1976)
- टुंडा लाट (1978)
- घास गोदाम (1985)
- नरक कुंड में वास (1994)
- लाट की वापसी (2000)
- जमीन अपनी तो थी (2001)
अन्य
- पहली रपट (कहानी संकलन)
- नेता का जन्म (नाटक)
'धरती धन न अपना' रूसी, उर्दू, पंजाबी एवं जर्मन में तथा' आधा पुल' अंग्रेजी में अनूदित है। 'कभी न छोड़े खेत' के नाट्य-रूपान्तर का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमण्डल की ओर से दिल्ली में 1984 और 1985 में मंचन हुआ।
धरती धन न अपना
इस उपन्यास में जगदीश चन्द्र ने पंजाब के दोआब क्षेत्र के दलितों के जीवन की त्रासदी, उत्पीड़न, शोषण, अपमान व वेदना को बड़े ही प्रभावकारी ढंग से चित्रित किया है। उन्होंने दलितों की दयनीय व हीन दशा के लिए जिम्मेदार भारतीय जाति व्यास्था, हिन्दू धर्म व्यवस्था और जन्म-कर्म सिद्धांत के आधारभूत तथ्यों को भी उजागर किया है। [2]
सम्मान
पंजाब सरकार का ‘शिरोमणि साहित्यकार’ (हिन्दी) 1981 सम्मान के अलावा कुछ और सरकारी व गैर-सरकारी पुरस्कार प्राप्त हुए।