छोटी जाति के मृग
सप्तसैंधवसभ्यता की मुहरों पर उत्कीर्ण एकसिंगा यज्ञपशु वस्तुतः कुक्कुरवाच मृग है। मुहरों पर उत्कीर्ण लेखों पर इसे कुक कुक्कुवग संबंधित किया गया है। जबकि इसका उपयोग अश्वमेध यज्ञ में पवित्रतम यज्ञपशु के रुप में वर्णित किया गया है। सप्तसैंधव वासी इसको पालते थे और पूजते थे। इसीलिए इसे ययु (संस्कृत भाषा) संबोधित करते थे। कहीं कहीं मुहरों पर कुक शब्द को कर्क भी उत्कीर्ण कर दिया गया है।कर्क यथा सफेद। संयोग से एकसिंगा भी सफेद रंग का मृग होता था।जिसका खुर दो भागों में गाय बकरी हिरण जैसे द्विखुरा प्राणी की तरह होते थे।