छडी पूजा
छट पूजा एक प्राचीनतम मानवी सांस्कृतिक परंपरा है। छट का उपयोग केवल पवित्रता स्वरूप करते है तो उसे देवक-स्तंभ कहा जाता है। छट का उपयोग ध्वज के रुप मे किया जाता है तो उसे ध्वज स्तंभ कहते हैं। छट पूजा नॉर्वेजिया में Mære चर्च, इस्रायल में Asherah pole की पूजा ज्यू धर्म की संस्थापना से पहले से होती थी। विश्वभर में विभिन्न आदिवासी समुदायों में छट पूजा परंपरा का निर्वाह दिखाई देता है।
भारतीय उपखंड में बलूचिस्तान की हिंगलाज माता एवं पहलगाम छट मुबारक, महाराष्ट्र में जोतिबा गुड़ी (छट) के साथ यात्रा करने की परंपरा है। मध्यप्रदेश राज्य के निमाड प्रांत में छट माता की पूजा एवं छट नृत्य परंपरा है। राजस्थान में गोगाजी मंदिर मे छड़ियों की पूजा की जाती है।
डॉo बिद्युत लता रे के मतानुसार उड़ीसा राज्य के आदिवासियों में प्रचलित खंबेश्वरी देवी की पूजा छट पूजा का प्रकार है और खंबेश्वरी की पूजा वैदिक हिंदू धर्म की मूर्ति पूजा से भी प्राचीन होने की संभावना है। [1]
महाराष्ट्र में पवित्र छट को गुढ़ी कहा जाता है। महाराष्ट्र की गुढ़ी परंपरा के प्रमाण १३वीं सदी से मराठी साहित्य में दिखाई देते हैं। चैत्र शुद्ध प्रतिपदा के दिन महाराष्ट्र राज्य में वर्षारंभ दिन के रूप में मनाते हुए उसी दिन को गुड़ी पड़वा कहते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी याने छ्ड़ी की पूजा की जाती है।
छड़ी विशेष
हमेशा से लकड़ी की छड़ी को विभिन्न उपयोगों में लाया जाता रहा है, इसमें बम्बू से आशियाने बनाने से लेकर बुढ़ापे का सहारा और सुरक्षा समेत शिकार आदि में उपयोग आने के कारण इसकी पूजा होती है।
संदर्भ सूची
- ↑ "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 29 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अगस्त 2015.