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चेना

चेना
Panicum miliaceum
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
विभाग: Tracheophyta
वर्ग: Liliopsida
गण: Poales
कुल: Poaceae
वंश: Panicum
जाति: Panicum miliaceum
द्विपद नाम
Panicum miliaceum
L.
पर्यायवाची

Panicum spontaneum Zhuk.
Panicum ruderale (Kitag.) D.M.Chang
Panicum milium Pers.
Panicum miliaceum var. virescens
Panicum miliaceum var. subvitellinotephrum
Panicum miliaceum var. ruderale
Panicum miliaceum subsp. ruderale
Panicum miliaceum var. nicotianum
Panicum miliaceum var. glaucum
Panicum miliaceum var. fuscum
Panicum miliaceum var. densobrunneum
Panicum miliaceum var. corsinum
Panicum miliaceum var. coffeatum
Panicum miliaceum var. atrobrunneum
Panicum miliaceum var. aquilum
Panicum miliaceum var. anthracinum
Panicum miliaceum subsp. agricola
Panicum miliaceum var. aerugineum
Panicum densepilosum Steud.
Panicum asperrimum Fisch.
Milium panicum Mill.
Milium esculentum Moench
Leptoloma miliacea (L.) Smyth

चेना की फसल
चित्र:Miglio.jpg
चेना के दाने

चेना (वैज्ञानिक नाम : Proso millet) एक प्रकार का मोटा अन्न है। इसे पुनर्वा भी कहते हैं। इसे सबसे पहले कहाँ उगाया गया, यह ज्ञात नहीं है, किंतु एक फसल के रूप में इसे कॉकस तथा चीन में ७,००० वर्ष पूर्व से उत्पादित किया जा रहा है। माना जाता है कि इसे स्वतंत्र रूप से उगाया जाना सीखा गया होगा। इसे आज भी भारत, रूस, यूक्रेन, मध्य पूर्व एशिया, तुर्की तथा रोमानिया में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसे स्वास्थ्य रक्षक माना जाता है। इसमें ग्लूटेन नहीं होने से वे लोग भी इसका प्रयोग कर सकते हैं जिन्हें गेंहू से एलर्जी हो जाती है।

इसे बहुत कम जल की आवश्यकता होती है, तथा यह कई प्रकार की मृदा एवं जलवायु में उग जाता है। इसे उगने के लिए कम समय की आवश्यकता होती है। सूखे क्षेत्रों हेतु यह आदर्श फसल है, मुख्य अन्नों में यह न्यूनतम जल माँगती है। इसका पादप ४ फीट तक ऊँचा हो सकता है, बीज गुच्छों में उगते हैं तथा २-३ मिलीमीटर के होते हैं। ये पीले, संतरी, वा भूरे रंग के हो सकते हैं। यद्यपि यह घास है, किंतु अन्य मोटे अन्नों से इसका कोई संबंध नहीं है।

उगाने का इतिहास

कँगनी की भाँति इस फसल के जंगली पूर्वजों की पहचान नहीं हो सकी है, फिर भी माना जाता है कि यह मध्य एशिया में से शेष विश्व में फैली है। नवपाषाण युग में इसे उगाया जाने लगा था, जिसके प्रमाण जोर्जिया में मिलते हैं।

प्रयोग

यह उन मोटे अन्नों में से है जो अफ़्रीका में नहीं उगाये जाते हैं, विकसित देशों में इसे पशु चारे के रूप में ही उगाते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ