चेना
चेना Panicum miliaceum | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
विभाग: | Tracheophyta |
वर्ग: | Liliopsida |
गण: | Poales |
कुल: | Poaceae |
वंश: | Panicum |
जाति: | Panicum miliaceum |
द्विपद नाम | |
Panicum miliaceum L. | |
पर्यायवाची | |
Panicum spontaneum Zhuk. |
चेना (वैज्ञानिक नाम : Proso millet) एक प्रकार का मोटा अन्न है। इसे पुनर्वा भी कहते हैं। इसे सबसे पहले कहाँ उगाया गया, यह ज्ञात नहीं है, किंतु एक फसल के रूप में इसे कॉकस तथा चीन में ७,००० वर्ष पूर्व से उत्पादित किया जा रहा है। माना जाता है कि इसे स्वतंत्र रूप से उगाया जाना सीखा गया होगा। इसे आज भी भारत, रूस, यूक्रेन, मध्य पूर्व एशिया, तुर्की तथा रोमानिया में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसे स्वास्थ्य रक्षक माना जाता है। इसमें ग्लूटेन नहीं होने से वे लोग भी इसका प्रयोग कर सकते हैं जिन्हें गेंहू से एलर्जी हो जाती है।
इसे बहुत कम जल की आवश्यकता होती है, तथा यह कई प्रकार की मृदा एवं जलवायु में उग जाता है। इसे उगने के लिए कम समय की आवश्यकता होती है। सूखे क्षेत्रों हेतु यह आदर्श फसल है, मुख्य अन्नों में यह न्यूनतम जल माँगती है। इसका पादप ४ फीट तक ऊँचा हो सकता है, बीज गुच्छों में उगते हैं तथा २-३ मिलीमीटर के होते हैं। ये पीले, संतरी, वा भूरे रंग के हो सकते हैं। यद्यपि यह घास है, किंतु अन्य मोटे अन्नों से इसका कोई संबंध नहीं है।
उगाने का इतिहास
कँगनी की भाँति इस फसल के जंगली पूर्वजों की पहचान नहीं हो सकी है, फिर भी माना जाता है कि यह मध्य एशिया में से शेष विश्व में फैली है। नवपाषाण युग में इसे उगाया जाने लगा था, जिसके प्रमाण जोर्जिया में मिलते हैं।
प्रयोग
यह उन मोटे अन्नों में से है जो अफ़्रीका में नहीं उगाये जाते हैं, विकसित देशों में इसे पशु चारे के रूप में ही उगाते हैं।