चुंबक चिकित्सा
चुंबकीय चिकित्सा एक छद्मवैज्ञानिक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें एक स्थायी चुंबक द्वारा निर्मित कमजोर स्थैतिक चुंबकीय क्षेत्र शामिल होता है जिसे शरीर पर रखा जाता है। यह वैद्युतचुंबकीय चिकित्सा की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के समान है, जिसमें विद्युतीय रूप से संचालित उपकरण द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया जाता है।[1] मैग्नेट थेरेपी उत्पादों में रिस्टबैंड, गहने, कंबल और रैप्स शामिल हो सकते हैं जिनमें चुंबक शामिल होते हैं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चुंबकत्व का क्या महत्व है
मानव का शरीर अपने आप में एक चुंबक के समान है .मानव शरीर में अति कमज़ोर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करने का आधार बनाता है। इसके लिए चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंब [Magnetic Resonance Imaging (MRI)] की सहायता से विशेष प्रतिबिंब लिए जाते हैं तो चिकित्सा विज्ञान के लिए अति महत्त्वपूर्ण होते है
सार्वदैहिक प्रयोग
इस के अनुसार उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रव वाले चुम्बकों का एक जोड़ा लेकर शरीर के विद्युतीय सहसंबंध के आधार पर सामान्यतया उत्तरी ध्रुव वाले चुम्बक का प्रयोग शरीर के दाएँ भागों पर, आगे की ओर व उत्तरी भागों पर किया जाता है, जबकि दक्षिणी ध्रुव वाले चुम्बक का प्रयोग शरीर के बाएँ भागों पर, पीठ पर तथा निचले भागों पर किया जाता है।
यह अटल नियम चुम्बकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है, जबकि स्थानिक प्रयोग की अवस्था में रोग संक्रमण, दर्द, सूजन आदि पर अधिक ध्यान दिया जाता है। उत्तम परिणाम हासिल करने के लिए जब रोग अथवा उसका प्रसार शरीर के ऊपरी भाग अर्थात् नाभि से ऊपर हो तो चुम्बकों को हथेलियों पर लगाया जाता है, जबकि शरीर के निचले भागों अर्थात् नाभि से नीचे विद्यमान रोगों में चुम्बकों को तलवों में लगाया जाता है।
स्थानिक प्रयोग
इसमें चुम्बकों को उन स्थानों पर लगाया जाता है, जो रोगग्रस्त होते हैं, जैसे- घुटना और पैर, दर्दनाक कशेरुका, आँख, नाक आदि। इनमें रोग की तीव्रता तथा रूप के अनुसार एक, दो और यहाँ तक कि तीन चुम्बकों का प्रयोग भी किया जा सकता है।
जैसे घुटने तथा गर्दन के तेज दर्द में दो चुम्बकों को अलग-अलग घुटनों पर तथा तीसरे चुम्बक को गर्दन की दर्दनाक कशेरुका पर लगाया जा सकता है। इस प्रयोग विधि की उपयोगिता स्थानिक रोग संक्रमण की अवस्था में भी होती है। अँगूठे में तेज दर्द होने जैसी कुछ अवस्थाओं में कभी-कभी दोनों चुम्बकों के ध्रुवों के बीच अँगूठा रखने से तुरंत आराम मिलता है।
चुम्बक चिकित्सा की पद्धति
प्रमुखतया चुम्बक चिकित्सा की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं- 1. सार्वदैहिक अर्थात हथेलियों व तलवों पर लगाने से तथा 2. स्थानिक अर्थात् रोगग्रस्त भाग पर लगाने से। इनका वर्णन यहाँ दिया जा रहा है -
- १) सार्वदैहिक प्रयोग
इस प्रयोग विधि के अनुसार उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रव से सम्पन्न चुम्बकों का एक जोड़ा लिया जाता है। शरीर के विद्युतीय सहसंबंध के आधार पर सामान्यतया उत्तरी ध्रुव वाले चुम्बक का प्रयोग शरीर के दाएँ भागों पर, आगे की ओर व उत्तरी भागों पर किया जाता है, जबकि दक्षिणी ध्रुव वाले चुम्बक का प्रयोग शरीर के बाएँ भागों पर, पीठ पर तथा निचले भागों पर किया जाता है। यह अटल नियम चुम्बकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है, जबकि स्थानिक प्रयोग की अवस्था में रोग संक्रमण, दर्द, सूजन आदि पर अधिक ध्यान दिया जाता है। उत्तम परिणाम हासिल करने के लिए जब रोग अथवा उसका प्रसार शरीर के ऊपरी भाग अर्थात् नाभि से ऊपर हो तो चुम्बकों को हथेलियों पर लगाया जाता है, जबकि शरीर के निचले भागों अर्थात् नाभि से नीचे विद्यमान रोगों में चुम्बकों को तलवों में लगाया जाता है।
- २) स्थानिक प्रयोग
इस प्रयोग विधि में चुम्बकों को उन स्थानों पर लगाया जाता है, जो रोगग्रस्त होते हैं, जैसे- घुटना और पैर, दर्दनाक कशेरुका, आँख, नाक आदि। इनमें रोग की तीव्रता तथा रूप के अनुसार एक, दो और यहाँ तक कि तीन चुम्बकों का प्रयोग भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- घुटने तथा गर्दन के तेज दर्द में दो चुम्बकों को अलग-अलग घुटनों पर तथा तीसरे चुम्बक को गर्दन की दर्दनाक कशेरुका पर लगाया जा सकता है। इस प्रयोग विधि की उपयोगिता स्थानिक रोग संक्रमण की अवस्था में भी होती है। अँगूठे में तेज दर्द होने जैसी कुछ अवस्थाओं में कभी-कभी दोनों चुम्बकों के ध्रुवों के बीच अँगूठा रखने से तुरंत आराम मिलता है।
चुम्बक चिकित्सा के लाभ
यह हर आयु के नर-नारियों के लिए गुणकारी है। चुम्बकों के माध्यम से इलाज इतना सीधा-सादा है कि यह किसी भी समय, किसी भी स्थान पर और शरीर के किसी भी अंग पर आजमाया जा सकता है। पुरुष हो या स्त्री, जवान हो या बूढ़ा, सभी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। चुम्बकत्व से रक्तसंचार सुधरता है कुछ समय तक चुम्बक लगातार शरीर के संपर्क में रहे तो शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है, उसकी सारी क्रियाएँ सुधर जाती हैं और रक्तसंचार बढ़ जाता है। इस कारण सारे शरीर को शक्ति मिलती है, रोग दूर होने में सहायता मिलती है, थकावट और दुर्बलता दूर होती है, जिससे रोगी शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करता है और शरीर के प्रत्येक अंग की पीड़ा और सूजन भी दूर हो जाती है। कुछ मामलों में लाभ बड़ी तेजी से यह पद्धति इतनी शक्तिशाली है और इसका प्रभाव इतनी तेजी से पड़ता है कि कई बार एक ही बार चुम्बक लगाना रोग को सदा के लिए समाप्त करने के लिए काफी होता है। कई मामलों में दूसरी बार चुम्बक लगाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जैसे कि दाँत की पीड़ा और मोच आदि में। पहले से तैयारी जरूरी नहीं एक ही चुम्बक का अनेक व्यक्ति उपयोग कर सकते हैं। उन्हें साफ करने, धोने या जंतुरहित बनाने की आवश्यकता नहीं होती। यद्यपि त्वचा के संक्रामक रोग की चिकित्सा में जिस चुम्बक का उपयोग हुआ हो, उसकी सफाई करनी पड़ती है। यदि महीन कपड़े के आवरण का उपयोग किया हो तो चुम्बक की सफाई का कोई प्रश्न ही नहीं रहता, केवल कपड़े को साफ करना पर्याप्त होता है। इसकी लत नहीं पड़ती चुम्बक के उपचार की आदत नहीं पड़ती और उसका उपयोग अचानक बंद कर दिया जाए तो भी कोई मुश्किल खड़ी नहीं होती। चुम्बक शरीर से पीड़ा को खींच लेता है प्रत्येक रोग में कोई न कोई पीड़ा अवश्य होती है। पीड़ा चाहे किसी कारण से हो, चुम्बक में उसे घटाने, बल्कि समाप्त तक करने का गुण है। उसकी सहायता से शरीर की सारी क्रियाएं सामान्य हो जाती हैं। इसी कारण सभी रोगों पर चुम्बकों का प्रभाव पड़ता है, पीड़ा दूर हो जाती है और शरीर की क्रियाओं के विकार ठीक हो जाते हैं।
- चुम्बकों का चयन
चुम्बक का आकार और डिजाइन इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे शरीर के किस भाग पर लगाना है। शरीर के कुछ अंग ऐसे हैं, जहाँ बड़े आकार के चुम्बक नहीं लग सकते, कुछ अंगों पर छोटे चुम्बक ठीक से काम नहीं करेंगे। उदाहरण के लिए अगर आँख पर चुम्बक लगाना हो तो छोटे आकार का गोल चुम्बक होना चाहिए, जो बंद आँख के ऊपर आ जाए। दूसरी ओर अगर शरीर के अधिकतर भागों में पीड़ा या सूजन है तो बड़े आकार का चुम्बक लगेगा। इसलिए एक ही आकार-प्रकार के चुम्बक का प्रयोग शरीर के विभिन्न भागों पर नहीं हो सकता। चुम्बकों की शक्ति पर भी यही बात लागू होती है। शरीर के कुछ कोमल अंग जैसे मस्तिष्क, आँख और हृदय जहाँ अधिक शक्ति वाले चुम्बक नहीं लगाने चाहिए और न मध्यम शक्ति के चुम्बक अधिक देर तक लगाने चाहिए। इसके विपरीत कम शक्ति वाले चुम्बक कड़ी और बड़े आकार की मांसपेशियों या हड्डियों के रोगों के लिए काफी नहीं होंगे, जैसे कि कूल्हों, जँघाओं, घुटनों या एड़ियों की होती हैं। न केवल स्थानीय रोगों, बल्कि सारे शरीर के लिए चुम्बकों के चुनाव में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- रोगी के बैठने की स्थिति
उपचार लेते समय जमीन अथवा किसी लोहे की वस्तु (फेरामेग्नेटिक पदार्थ) से रोगी का संपर्क न हो, यह आवश्यक है। अतः लोहे की कुर्सी या पलंग वर्जित है, जबकि लकड़ी की कुर्सी या पलंग आदर्श है। चुम्बकों की स्थिति इस प्रकार रहनी चाहिए कि उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव दक्षिण दिशा की ओर रहे। इससे चुम्बक का क्षेत्र पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के समानांतर रहेगा और चुम्बक अधिक प्रभावशाली बनेंगे। यदि दो चुम्बकों के दो अलग-अलग ध्रुवों का प्रयोग एक ही समय किया जा रहा हो तो रोगी का मुँह पश्चिम की ओर होना चाहिए, जिससे कि उसके शरीर का दाहिना भाग उत्तर की ओर तथा बायां भाग दक्षिण की ओर रहे।
- चुम्बक प्रयोग की अवधि
ऐसा उपयुक्त माना गया है कि चुम्बकों का स्थानिक अथवा सार्वदैहिक प्रयोग 10 मिनट से 30 मिनट तक समीचीन रहता है। वयस्कों के जीर्ण आमवाती सन्धिशोथ में पहले एक सप्ताह तक चुम्बकों का प्रयोग केवल 10 मिनट तक करना चाहिए और इस अवधि को धीरे-धीरे 30 मिनट तक बढ़ा देना चाहिए। अन्य कई रोगावस्थाओं में भी तदनुसार समय बढ़ाया जाना चाहिए। अधिक शक्तिशाली (जैसे 3000 गौस या उससे अधिक शक्ति वाले) चुम्बकों पर तद्नुसार घटा देनी चाहिए। जब मस्तिष्क जैसे कोमलांगों पर चुम्बक का प्रयोग करना हो, तो यह अच्छी तरह समझ लें कि इसमें शक्तिशाली चुम्बक नहीं लगाए जाते। चुम्बक का प्रयोग 10 मिनट से अधिक कभी न किया जाए। वैसे अवधि के संबंध में अपना विवेक ही अधिक उत्तम माना जाता है। चुम्बक चिकित्सा का कोई प्रतिप्रभाव नहीं होता। फिर भी सिर का भारीपन, चक्कर, उलटी, लार टपकना आदि लक्षण मालूम हों तो चिंता न करें। ऐसे किसी लक्षण को त्वरित दूर करना जरूरी हो तो जस्ते या तांबे की एक पट्टी पर दोनों हाथ 20-25 मिनट तक रखें। घुटनों के तथा गर्दन की कशेरुका सन्धि के प्रदाह की अवस्था में सुबह के समय 10 मिनट तक चुम्बकों का प्रयोग घुटनों पर तथा शाम को 10 मिनट तक गर्दन तथा दर्द के अंतिम भागों पर करना चाहिए, लेकिन इन अवस्थाओं में चुम्बकों की प्रयोग अवधि 10 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए। घरेलू नुस्खे जान-जहान यूँ रहें स्वस्थ यौन समस्याएँ सेहत समाचार जडी-बूटियाँ चिकित्सा पद्धतियाँ आहार आयुर्वेद
चुम्बक प्रयोग में सावधानियाँ
१) चुम्बक प्रयोग का समय
चुम्बकों का प्रयोग करने के लिए किसी समय विशेष नियम का पालन करना जरूरी नहीं होता, लेकिन उचित रहता है यदि इनका प्रयोग प्रातःकालीन शौच एवं स्नान आदि से निवृत्त होकर अथवा शाम को रोगी की सुविधानुसार किया जाए। चुम्बकों का प्रयोग करने तथा उनको उपयोग में लाने संबंधी समय का निर्धारण करने में पूरी-पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। अनुभव बताता है कि कशेरुका सन्धिशोथ, जानु सन्धिशोथ तथा कमर दर्द जैसी कुछ रोगावस्थाएँ शारीरिक श्रम एवं दिन का काम खत्म करने पर शाम को बढ़ते हैं। अतः ऐसे रोगों में जब शाम को चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है तो बहुत आराम मिलता है। इसके विपरीत दस्त, कब्जियत तथा बड़ी आँतों के प्रदाह में चुम्बकों का प्रयोग सुबह के समय करना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार खाँसी, सर्दी-जुकाम, श्वास नलियों के प्रदाह, पायरिया जैसे रोगों का प्रमुख कारण कफ बताया जाता है तथा ये सुबह के समय बढ़ते हैं। पित्त, अम्लता एवं रुद्धवात जैसे वात संबंधी रोग शाम को बढ़ते हैं। यदि हम इसी सिद्धांत का अनुसरण करें तो छाती की बीमारियों और कफ की अवस्था में चुम्बकों का प्रयोग सुबह के समय किया जाना चाहिए।
यदि जिगर विकार जैसे पित्तजनक रोग हों, तो चुम्बकों का प्रयोग दोपहर बाद किया जाना चाहिए तथा जब पेट या आँतों के अंदर हवा बनती हो तो चुम्बकों का प्रयोग शाम को किया जाना चाहिए। प्रत्येक विवेकशील चुम्बक चिकित्सक को चाहिए कि वह अपने रोगी को चुम्बकों के प्रयोग का समय निर्धारित करते समय इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखें।
- अन्य सावधानियाँ
1. चुम्बकों का प्रयोग करते समय अथवा उसके तुरंत बाद आइसक्रीम जैसी किसी ठण्डी खाने-पीने की चीज का सेवन नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा वे ऊतकों पर चुम्बकों के प्रभाव को अनावश्यक रूप से कम कर देंगी।
2. भोजन करने के बाद दो घंटे तक चुम्बकीय उपचार न लें, भोजन करने के बाद तुरंत यह उपचार लेने से उलटी-उबकाई की तकलीफ होने की संभावना रहती है। भोजन के बाद रक्त परिभ्रमण पेट के अवयवों की ओर विशेष होता है, उसमें व्यवधान डालना उचित नहीं है।
3. गर्भिणी स्त्रियों पर शक्तिशाली चुम्बकों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे कभी-कभी गर्भपात हो जाता है। आवश्यकता हो तो मध्यम शक्ति तथा अल्प शक्ति चुम्बकों का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन उन्हें गर्भाशय से दूर रखना चाहिए।
4. 'चुम्बकीय जल' वाले अध्याय में दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए सामान्यतया चुम्बकीय जल की मात्रा नहीं बढ़ानी चाहिए, अन्यथा इससे कभी-कभी शरीर की क्रिया अत्यधिक बढ़ जाती है तथा एक असुविधाजनक स्थिति पैदा हो जाती है। बच्चों को चुम्बकीय जल देने पर इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
5. शक्तिशाली चुम्बकों के विरोधी ध्रुवों को एक-दूसरे के संपर्क में न आने दें। कभी अकस्मात् अँगुली बीच में आ जाए तो कुचल जाने की संभावना रहती है। इसके अलावा चिपके हुए चुम्बकों को अलग करना मुश्किल होता है।
6. उपचार के समय शरीर से गहना या ऐसी वस्तुओं को हटा देना चाहिए जो चुम्बकत्व का शोषण कर लेते हैं। कुछ बिजली के उपकरण तथा घड़ियाँ भी चुम्बकों के प्रभाव से नष्ट हो सकती हैं, यदि उन्हें चुम्बकों से दूर नहीं रखा जाए। अतः चुम्बकों को इनसे दूर रखना चाहिए।
7. जब चुम्बकों का प्रयोग नहीं किया जाता तो उनके ऊपर धारक रखकर अच्छी तरह संभाल देना चाहिए। उन्हें जमीन पर नहीं गिराना चाहिए, क्योंकि ऐसी असावधानियों से चुम्बकों की शक्ति मंद पड़ जाती है तथा अनावश्यक रूप से उनके पुनर्चुम्बकन की आवश्यकता पड़ जाती है। इसी तरह बच्चों को चुम्बकों के साथ खेलने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।
8. शक्तिशाली चुम्बक लगाने के दो घंटे बाद तक नहाना नहीं चाहिए। इसी कारण कहा गया है कि प्रातः स्नान के बाद चुम्बक चिकित्सा की जाए।
9. चुम्बकों को यथासंभव लोहे के डिब्बे या अलमारी में न रखें, लकड़ी की पेटी या ऐसा ही कोई साधन पसंद करें।
10. चुम्बकों को पानी का स्पर्श न होने पाए, इसका ध्यान रखें अन्यथा उन्हें जँग लग जाता है। इसी प्रकार शरीर के जिस हिस्से का उपचार करना हो, उसे पसीनारहित करना न भूलें।
11. चर्मरोगों का उपचार करते समय चुम्बकों को त्वचा के सीधे संपर्क में न रखकर बीच में पतला कपड़ा रखें।
12. उपचार के समय शरीर पर चुम्बकों का दबाव पड़ना आवश्यक नहीं है, किन्तु वे स्थिर रहें यही देखना है। अपवादस्वरूप कुछ उदाहरणों में चुम्बकों को घुमाते हुए भी उपचार किया जाता है।
13. बड़े शक्तिशाली चुम्बकों का उपचार दिन में एक या दो बार लिया जा सकता है, छोटे अल्पशक्ति चुम्बकों को शरीर के हिस्से के साथ पूरे दिन बेल्ट के रूप में बाँधकर या टेप से चिपकाकर भी रखा जा सकता है।
बाहरी कड़ियाँ
- चुम्बक चिकित्सा के लाभ (वेबदुनिया)
- Magnetic Therapy: Can magnets alleviate pain? by Cecil Adams — The Straight Dope
- Magnetic Therapy: Plausible Attraction? by James D. Livingston — Skeptical Inquirer
- Magnet therapy in the Skeptic's Dictionary by Robert Todd Carroll
- Magnet therapy — editorial in the British Medical Journal
- Magnet Therapy: A Skeptical View by Stephen Barrett — Quackwatch
- ↑ "Magnetic Therapy". web.archive.org. 2012-11-12. मूल से पुरालेखित 12 नवंबर 2012. अभिगमन तिथि 2022-11-23.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)