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चीनी लिपि

चीनी लिपि संसार की प्राचीनतम लिपियों में से है। यह चित्रलिपि का ही रूपांतर है और इसमें अक्षरों की बजाए हज़ारों चीनी भावचित्रों के द्वारा लिखा जाता है। इसमें मानव जाति के मस्तिष्क के विकास की अद्भुत् कहानी मिलती है - मानव ने किस प्रकार मछली, वृक्ष, चंद्र, सूर्य आदि वसतुओं को देखकर उनके आधार पर अपने मनोभावों की व्यक्त करने के लिये एक विभिन्न चित्रलिपि ढूँढ़ निकाली। ईसवी सन् के 1700 वर्ष पूर्व से लगाकर आजतक उपयोग में आनेवाले चीनी शब्दों की आकृतियों में जो क्रमिक विकास हुआ है उसका अध्ययन इस दृष्टि से बहुत रोचक है।

चीनी लिपि की विभिन्न शैलियाँ

हुनान प्रांत में अनयांग की खुदाई के समय कछुओं की अस्थियों पर शांगकालीन (1766-1122 ई.पू.) जो लेख मिले हैं उनसे पता लगता है कि आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व चीन के लोग लिखने की कला से परिचित थे। इस प्रांत के निवासियों का विश्वास था कि इन अस्थियों में जादू है। इन्हें आग पर तपाने से इनपर जो दरारें पड़ जाती थीं उन्हें देखकर पंडित लोग भविष्य का बखान करते थे। कछुओं की अस्थियों के अतिरिक्त, पशुओं की टाँगों और कंधों की हड्डियों पर भी लेख लिखे जाते थे। "चू" राजवंशों के काल में (1122-221 ई.पू.) चीन निवासी काँसे के बर्तनों पर लिखने लगे थे। इस काल में चीनी भाषा में बहुत से नए वर्णो का समावेश किया गया। अब बाँस या लकड़ी की नुकीली कलम की जगह बालों के बने ब्रुश से लोग लिखने लगे थे। क्रमश: उत्तर में चीन की बड़ी दीवार से लेकर दक्षिण की ओर ह्वाई नदी की घाटी तक चीनी लिपि का प्रचार बढ़ा। इसके पश्चात् "छिन" राज्यकाल (221-206 ई.पू.) में सम्राट् शिह ह्वांग ने चीनी लिपि को एक रूप देने के लिय चीन भर में छिन लिपि का प्रचार किया। लेकिन इस लिपि के कठिन होने के कारण सरकारी फर्मानों के लिखने पढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिये इस समय "लि" लिपि का प्रचार किया गया जिसमें मुड़ी हुई रेखाओं और गोलाकार कोणों के स्थान पर कोण की सीधी रेखाएँ बनाई जान लगी। इस समय काँसे की जगह बाँस की पट्टियों पर लिखने लगे। इस प्रकार चीनी लिपि को सुव्यवस्थित और एकरूप बनाने के लिये चीन के लोग लगातार परिश्रम करते रहे। "हान" राजवंशों (206 ई.पू. से 221 ई.) और छिन राजवंशों के काल (265-420 ई.) में घसीट और शीघ्रलिपि शैली का प्रचार बढ़ा। ईसवी सन् की चौथी शताब्दी में सुलेखक वांग शिह-छि ने सुंदर अक्षरोंवाली एक आदर्श शैली को जन्म दिया जिससे अधिक व्यवस्थित, सुडौल और चौकोर अक्षर लिखे जाने लगे। आज भी लिखने की यही शैली चीन में प्रचलित है।

एकाक्षरप्रधान भाषा

चीनी एकाक्षरप्रधान भाषा मानी जाती है, यद्यपि ध्यान रखने की बात है कि उसके एक बार में बोले जानेवाले शब्द में एक या एक से अधिक वर्ण या अक्षर हो सकते हैं। हिंदी या अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति चीनी ध्वन्यात्मक भाषा नहीं है, अतएव इसमें एक एक शब्द या भाव के लिये अलग अलग संकेतात्मक आकृतियाँ बनाई जाती हैं।

वर्णमाला के अभाव में इस भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये लिखा जानेवाला वर्ण या अक्षर अपने आप में पूर्ण होता है और विभिन्न उपसर्ग या प्रत्यय न लगने से इन वर्णों के मूल में परिवर्तन नहीं होता। हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति यहाँ विभिन्न प्रत्ययों या कारकचिह्नों की भरमार नहीं रहती जिससे संज्ञा सर्वनाम ओर विशेषणों में विभक्ति प्रत्ययों के साथ परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिये लड़का लड़के और लड़कों- इन विभिन्न रूपों के लिये चीनी में एक ही वर्ण लिखा जाता है- हाय त्स। काल, वचन, पुरुष और स्त्रीलिंग पुंलिं्लग का भेद भी यहाँ नहीं है, इस दृष्टि से चीनी भाषा का बोलना अपेक्षाकृत सरल हैं। कुछ शब्दों का उच्चारण करते हुए ऊँचे नीचे सुरभेद (चीनी में इसे शंग कहते हैं) का ध्यान अवश्य रखना पड़ता है। जैसे, चीनी में चू शब्द से सूअर, बाँस, स्वामी और रहना, इन चार अर्थो का बोध होता है। लेकिन जब हम चू शब्द का इसके विशिष्ट सुरभेद के साथ उच्चारण करते हैं तभी हमें अपेक्षित अर्थ का ज्ञान होता है।

लिखावट की कठिनाइयाँ

ऊपर उल्लेख हो चुका है कि चीनी भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये अलग अलग आकृति बनानी पड़ती है। सन् 1716 में प्रकाशित चीनी भाषा के सबसे बड़े कोश में इस प्रकार के 40 हजार वर्ण या शब्दचिह्न दिए गए हैं, यद्यपि इनमें से लगभग 6-7 हजार ही पिछले कई वर्षो से काम में आते रहे हैं। जिन वर्णो की आकृति बनाते समय ऊपर नीचे बहुत से रेखाचिह्न लगाने पड़ते हैं, उन वर्णो का लिखना कठिन होता है। एक वर्ण में एक बार में अधिक से अधिक लगभग 33 रेखाचिह्न तक रहते हैं और यदि भूल से कोई चिह्न इधर उधर हो गया तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। चित्रलिपि के साथ चीनी लिपि का संबंध होने के कारण कोई अच्छा चित्रकार ही चीनी के सुंदर अक्षर लिख सकता है। इन अक्षरों को सीखने के लिए उसका उच्चारण, लिखावट और उनके अंर्थ का ध्यान रखना आवश्यक है, अतएव चीनी लिपि का सीखना काफी कठिन है।

कभी कभी एक वर्ण के स्थान पर दो वर्णो के संयोग से भी चीनी शब्द बनाए जाते हैं। जैसे, "प्रकाश" के लिये सूर्य और चंद्रमा, "अच्छा" के लिये स्त्री और पुत्र, "पुरुष" के लिये खेत और ताकत, "घर" के लिये सूअर और छत, "शांति" के लिये घर में बैठी हुई स्त्री, "मित्रता" के लिये दो हाथ, तथा "वंश" के लिये स्त्री और जन्म का सांकेतिक चिह्न बनाया जाता है। कभी विभिन्न अर्थवाले दो वर्णो के संयोग से बननेवाले शब्दों का अर्थ ही बदल जाता है, यथा-

श्वेउ अध्ययन, वनउ लिखना, श्वेवनउ साहित्य; छिंगउ हरा, न्येनउ वर्ष, छिंगन्येनउ युवावस्था; मिंगउ चमकीला, ट्येनउ आकाश, मिंगट्येनउ कल; शीउ पश्चिम, हुंगउ लाल, शिहउ फल, शी हुंग शिहउ टमाटर; त्सउ अपने आप, लायउ आना, श्वेउ पानी, पीउ कलम, त्स लाय श्वे पीउ फाउंटेन पेन;उ चुंगउ मध्य, ह्वाउ फूल, रेनउ आदमी, मिनउ जनता, कुंगउ साधारण, हउ एकता, काउ देश, चुंग ह्वा रेन मिन कुंग ह कोउ चीनी लोक जनतंत्र।

चीनी भाषा को सरल बनाने के प्रयत्न

भावों को व्यक्त करने की सामथ्र्य, प्रवाहशीलता, व्याकरणपद्धति और शब्दकोश की दृष्टि से चीनी भाषा संसार की समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। लेकिन कंपोजिंग, टाइपिंग, तार भेजना, समाचारपत्रों को रिपोर्ट भेजना, कोशनिर्माण और प्रौढ़-शिक्षा-प्रचार आदि की दृष्टि से यह काफी क्लिष्ट है, इसलिये प्राचीन काल से ही इस भाषा के संबंध में संशोधन परिवर्तन होते रहे हैं।

ईसवी सन् की दूसरी शताब्दी के बाद चीन में भारतीय बौद्ध साहित्य का प्रवेश होने पर चीनी भाषा के वर्णोच्चारण के प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता प्रतीत हुई। लेकिन बौद्ध धर्म संबंधी हजारों पारिभाषिक शब्दों का चीनी में अनुवाद करना संभव न था। अतएव इन शब्दों को चीनी चीनी में अक्षरांतरित किया जाने लगा। जैसे, बोधिसत्व को फूसा, अमिताभ को अमि तो फो, शाक्यमुनि को शिह जा मोनि, स्तूप को था, गंगा को हंं ह और जैन को चा एन लिखा जाने लगा।

चीनी को रोमन लिपि में लिखने के प्रयास का इतिहास भी काफी पुराना है। इसके अतिरिक्त पिछले 60 वर्षो से इस लिपि को ध्वन्यात्मक रूप देने के प्रयत्न भी होते रहे हैं। सन् 1911 में पीकिंग बोली के उच्चरण की आदर्श मानकर इस प्रकार का प्रयत्न किया गया। सन् 1919 में 4 मई के साहित्यिक आंदोलन के पश्चात् दुरूह क्लासिकल भाषा (वन्येन) की जगह बोलचाल की भाषा (पाय् ह्वा) को प्रधानता दी जाने लगी।

सन् 1951 में जनमुक्ति सेना के चीनी शिक्षक छी च्येन ह्वा ने अपढ़ मजदूरों, किसानों और सैनिकों को अल्प समय में चीनी सिखाने के लिये नई पद्धति का आविष्कार किया। लेकिन लिखने की कठिनाई इससे हल न हुई। इस कठिनाई को दूर करने के लिये नए चीन की केंद्रीय जन सरकार ने चीनी के 2000 उपयोगी शब्द चुने और उनकी सहायता से पाठ्यपुस्तकें तैयार की गई। पहले किसी शब्द के उच्चारण से एक से अधिक अर्थो का बोध होता था, या बहुत से शब्द एक से अधिक प्रकार से लिखे जाते थे, लेकिन अब यह बात नहीं है। पुराने शब्दों को सरल बनाने के साथ कुछ नए शब्दों का भी आविष्कार किया गया है। चीन की सरकार ने पीकिंग बोली को आदर्श मानकर 26 अक्षरों की वर्णमाला तैयार कर चीनी लिपि को ध्वन्यात्मक रूप दिया है जिससे चीनी का सीखना सरल हो गया है। पहले यदि 2000 शब्द सीखने में 400 घंटे लगते थ तो अब केवल 100 घटों में इतने ही शब्दों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

पारंपरिक और सरलीकृत अक्षर

बांये तरफ के काले अक्षर पारम्परिक हैं। उनके दायें तरफ लाल रंग में सरलीकृत अक्षर है।

1956 में, चीन जनवादी गणराज्य की सरकार सरलीकृत चीनी अक्षरों के सार्वजनिक एक सेट करने के लिए सीखने, पढ़ने और चीनी भाषा आसान लेखन बनाने के लिए बनाया है। मुख्यभूमि चीन और सिंगापुर में, लोगों को इन सरल वर्णों का उपयोग करें। हांगकांग, ताइवान और अन्य स्थानों पर जहां वे चीनी बोलते हैं, लोगों को अभी भी और अधिक पारंपरिक वर्ण का उपयोग करें। कोरियाई भाषा में भी चीनी अक्षरों का प्रयोग करता है कुछ शब्दों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जापानी भाषा उन्हें और भी अधिक बार उपयोग करता है। ये वर्ण कोरियाई में हंजा के रूप में और कांजी के रूप में जापानी में जाना जाता है।

एक अच्छी शिक्षा के साथ एक चीनी व्यक्ति आज 6,000-7,000 अक्षर जानता है। एक मुख्यभूमि अखबार पढ़ने के लिए ३००० चीनी अक्षरों की जरूरत है। हालांकि, सीखने वाले लोग केवल 400 अक्षर इस्तेमाल कर एक अखबार पढ़ सकते हैं - लेकिन वे कुछ कम प्रयोग किया जाता शब्द लगता होगा।

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