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चिकनगुनिया

चिकनगुनिया
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
आईसीडी-१०A92.0
आईसीडी-065.4, 066.3
डिज़ीज़-डीबी32213
एम.ईएसएचD018354

चिकुनगुनिया वायरस
विषाणु वर्गीकरण
Group: Group IV ((+)एसएसआरएनए)
कुल: टोगाविरिडी (Togaviridae)
वंश: अल्फ़ावायरस (Alphavirus)
जाति: चिकुनगुनिया वा्यरस

चिकनगुनिया CHIKV विषाणु द्वारा होने वाला संक्रमण है जिसमे रोगी को तीव्र ज्वर एवं जोडों में भारी दर्द होता है।[1] इस रोग का उग्र चरण तो मात्र २ से ५ दिन के लिये चलता है किंतु जोडों का दर्द कभी कभी महीनों या हफ्तों तक भी बना रह सकता है।

चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है। यह मानव में एडिस मच्छर के काटने से प्रवेश करता है। यह विषाणु ठीक उसी लक्षण वाली बीमारी पैदा करता है जिस प्रकार की स्थिति डेंगू रोग मे होती है।


लक्षण तथा दशा

इस रोग को शरीर मे आने के बाद इसे फैलने मे २ से ४ दिन का समय लगता है। रोग के लक्षणों मे ३९ डिग्री (१०२.२ फा) तक का ज्वर, धड और फिर हाथों एवं पैरों पे चकते बन जाना, शरीर के विभिन्न जोडाँ मे पीडा होना शामिल है। इसके अलावा सिरदर्द, प्रकाश से भय लगना, आँखों मे पीडा भी होती है। ज्वर आम तौर पर दो से ज्यादा दिन नहीं चलता तथा अचानक समाप्त होता है, लेकिन जिनमें अनिद्रा तथा निर्बलता भी शामिल है। आम तौर पर ५ से ७ दिन तक चलतें है। रोगियों को लम्बे समय तक जोडों की पीडा हो सकती जो उनकी उम्र पर निर्भर करती है।

कारण

एडीज एजिप्टी मच्छर, मानव मांस पर काटते हुए।

इस रोग को शरीर मे आने के बाद २ से ४ दिन का समय फैलने मे लगता है, रोग के लक्षणों मे 39डिग्री [102.2 फा] तक का ज्वर, धड और फिर हाथों पैरों पे चकते बन जाना, शरीर के विभिन्न जोडाँ मे पीडा होना शामिल है इसके अलावा सिरदर्द, प्रकाश से भय लगना, आखों मे पीडा शामिल है। ज्वर आम तौर पर दो से ज्यादा दिन नहीं चलता है तथा अचानक समाप्त होता है, लेकिन अन्य लक्षण जिनमें अनिद्रा तथा निर्बलता भी शामिल है आम तौर पर 5 से 7 दिन तक चलतें है रोगियों को लम्बे समय तक जोडों की पीडा हो सकती जो उनकी उम्र पर निर्भर करती है। मूल रूप से यह रोग उष्णकटिबंधीय अफ्रीका तथा एशिया मे पनपता है जहाँ यह रोग एडिस प्रजाति के मच्छर मानवों मे फैलाते है। यह रोग मानव- मच्छर- मानव के चक्र मे फैलता है। चिकनगुनिया शब्द की उतपत्ति स्थानीय भाषा से हुई है क्योंकि इस रोग का रोगी दर्द से दुहरा हो जाता है क्योंकि उसके जोडों मे भयानक दर्द होता है। मकोंडे भाषा में चिकनगुनिया का अर्थ होता ही है वो जो दुहरा कर दे। इस रोग के विषाणु मुख्य रूप से बन्दर मे पायें जाते है, किंतु मानव सहित अन्य प्रजाति भी इस से प्रभावित हो सकती है।

पैथोफिजियोलोजी

इस रोग को शरीर मे आने के बाद 2 से 4 दिन का समय फैलने मे लगता है, रोग के लक्षणों मे 39डिग्री [102.2 फा] तक का ज्वर, धड और फिर हाथों पैरों पे चकते बन जाना, शरीर के विभिन्न जोडाँ मे पीडा होना शामिल है। इसके अलावा सिरदर्द, प्रकाश से भय लगना, आखों मे पीडा शामिल है, ज्वर आम तौर पर दो से ज्यादा दिन नहीं चलता है तथा अचानक समाप्त होता है, लेकिन अन्य लक्षण जिनमें अनिद्रा तथा निर्बलता भी शामिल है आम तौर पर 5 से 7 दिन तक चलतें है रोगियों को लम्बे समय तक जोडों की पीडा हो सकती जो उनकी उम्र पर निर्भर करती है | मूल रूप से यह रोग उष्णकटिबंधीय अफ्रीका तथा एशिया मे पनपता है जहाँ यह रोग एडिस प्रजाति के मच्छर मानवों मे फैलाते है। यह रोग मानव- मच्छर- मानव के चक्र मे फैलता है। चिकनगुनिया शब्द की उतपत्ति स्थानीय भाषा से हुई है। क्योंकि इस रोग का रोगी दर्द से दुहरा हो जाता है क्योंकि उसके जोडों मे भयानक दर्द होता है मकोंडे भाषा में चिकनगुनिया का अर्थ होता ही है वो जो दुहरा कर दे। इस रोग के विषाणु मुख्य रूप से बन्दर मे पायें जाते है, किंतु मानव सहित अन्य प्रजाति भी इस से प्रभावित हो सकती है।

कुछ लोगो मे जो कि इस वाईरस से प्रभवित होते है उन मे इसके वाईरस के मुटेन्ट होने के आसर देखने को मिले है जैसे वाईरस एक से दुसरे बडि मे पहुचंता है तो वह पहले से विभिन्न इस्थितियो को दरसाता है।[]

रोकथाम

इस रोग के विरूद्ध बचाव का सबसे प्रभावी तरीका रोग के वाहक मच्छरों के संपर्क मे आने से बचना है इस हेतु उन दवाओं का प्रयोग करना चाहिए जिनसे मच्छर दूर भाग जाते है उदाहरण हेतु लम्बी बाजू के कपडे तथा पतलून पहन लेने से, कपडों को पाइरोर्थोइड से उपचारित करने से, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती लगा लेने, जालीदार खिडकी दरवाजों के प्रयोग से भी लाभ होता है किंतु घर से बाहर होने वाले संक्रमण से बचने हेतु मच्छरआबादी नियंत्रण ही सबसे प्रभावी तरीका है।[2]

उपचार

इस रोग का कोई उपचार नहीं है, ना ही इसके विरूद्ध कोई प्रभावी टीका बना है। क्योकि वर्तमान में, चिकनगुनिया के लिए कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है।[3] अतः लक्षणों के अनुसार देखभाल करनी चाहिए। बुखार और जोड़ों की सूजन के उपचार में नेप्रोक्सन, गैर-एस्पिरिन एनाल्जेसिक जैसे पैरासिटामोल (एसिटामिनोफेन) और गैर-स्टेरायडल विरोधी दवाओं NSAIDs का उपयोग शामिल है। ज्वार के चलते अधिकधिक तरल पदार्थ जैसे पानी का सेवन बढ़ाना चाहिए।[4] रक्तस्राव के बढ़ते जोखिम के कारण एस्पिरिन की गोली की सिफारिश नहीं की जाती। रोग के तीव्र चरण के दौरान कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का प्रयोग नही करना चाहिए, क्योंकि वे प्रतिरक्षक क्षमता का दमन करके संक्रमण को और बढ़ा सकते हैं।[5]

पूर्वानुमान

इस रोग से रोगी का ठीक होना उसकी उम्र पर निर्भर करता है जवान लोग 5 से 15 दिन में, मध्य आयु वाले 1 से 2.5 मास में तथा बुजुर्ग और भी ज्यादा समय लेते है, गर्भवती महिला पे भारी दुष्प्रभाव नहीं देखें गये है। इस रोग से नेत्र संक्रमण भी हो सकता है। पैरों की सूजन भी देखी जाती है जिसका कारण दिल, गुर्दे तथा यकृत रोग से नहीं होता है। यह विषाणु अल्फाविषाणु है जो ओन्योगोंग विषाणु से निकटवर्ती रूप से संबंध रखता है। यह रोग सामान्य रूप से एडिस एजेपटी नामक मच्छर से फैलता है किंतु पास्चर संस्थान ने अध्ययन से बताया है कि 2005-06 मे इसने उत्परिवर्तन करके एडिस एल्फोपिक्टस जिसे टाइगर मच्छर भी कहते है के माध्यम से फैलने की क्षमता हासिल कर ली है। इस उत्परिवर्तन से रोग के प्रसार का खतरा भी बढ गया है हाल ही मे इटली मे एक प्रसार इसी नये मच्छर से फैला माना जाता है। अफ्रीका में यह रोग बन्दरों से मच्छर मे फिर मनुष्य़ मे आ जाता है।

इतिहास

इस रोग का नाम मकोंडे भाषा से लिया गया है वहाँ इसका अर्थ है जो दूहरा कर दे क्योंकि रोगी को भारी पीडा होती है इस रोग को पहली बार मेरोन रोबिंसन तथा लुम्स्डेन ने वर्णित किया था। यह पहली बार तंजानिया मे फैला था।

सन्दर्भ

  1. https://www.cdc.gov/chikungunya/index.html
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसंबर 2017.
  3. Caglioti C, Lalle E, Castilletti C, Carletti F, Capobianchi MR, Bordi L. Chikungunya virus infection: an overview. New Microbiol. 2013 Jul;36(3):211-27. Epub 2013 Jun 30. PMID: 23912863.
  4. Caglioti C, Lalle E, Castilletti C, Carletti F, Capobianchi MR, Bordi L. Chikungunya virus infection: an overview. New Microbiol. 2013 Jul;36(3):211-27. Epub 2013 Jun 30. PMID: 23912863.
  5. Burt FJ, Rolph MS, Rulli NE, Mahalingam S, Heise MT. Chikungunya: a re-emerging virus. The Lancet. 2012 Feb 18;379(9816):662–71.

बाहरी कडियाँ