चरखारी
चरखारी | |
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नगर | |
चरखारी किला | |
चरखारी उत्तर प्रदेश में स्थिति | |
निर्देशांक: 25°25′N 79°45′E / 25.41°N 79.75°Eनिर्देशांक: 25°25′N 79°45′E / 25.41°N 79.75°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | महोबा ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 27,760 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 210421 |
चरखारी, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा जिले का एक शहर है । यह बुंदेलखंड का कश्मीर है। यह चरखारी रियायत की राजधानी थी। विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नाम की झीलें हैं। चरखारी नगरी को व्रज का स्वरूप और सौंदर्य प्रदान करने वाले कृष्ण के 108 मंदिर हैं। जिसमें सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मंदिर, रायनपुर का गुमान बिहारी, मंगलगढ़ का मंदिर, बख्त बिहारी, बांके बिहारी का मंदिर और माडव्य ऋषि की गुफा है। यह चरखारी तहसील का मुख्यालय भी है और विधान सभा सीट का नाम भी चरखारी है। विधान सभा क्षेत्र।[1][2]
इतिहास
बुंदेलखंड अपनी अनूठी परंपरा, कलाकृतियों और वास्तु कला के लिए भी देश में अलग पहचान रखता है। यहां चंदेल शासनकाल की इमारतों की वास्तु कला देखते ही बनती है तो महोबा के सात सरोवरों का अद्भुत संगम बरबस ही आकर्षित करता है। यह सोरोवर वर्ष भर जल से संतृप्त रहते हैं, यहां के लोगों ने डल झील की तरह मनोरम छटा बिखारने वाले इन सरोवरों के कारण चरखारी को बुंदेलखंड का मिनी कश्मीर का दर्जा दे दिया गया है। यहां कीरतसागर, मदनसागर, कल्यान सागर आल्हा ऊदल की याद दिलाते हैं तो चरखारी के सप्त सरोवर, मलखान जू देव महाराज की याद ताजा रखे हैं। चंदेलकालीन इन सात सरोवरों की अनूठी कलाकृति और वास्तुकला लोगों को खासा आकर्षित करती है।
महोबा मुख्यालय से करीब 18 किलो मीटर दूर है चरखारी। कस्बा के एक किलो मीटर पहले से ही यहां की मनोरम छटा नजर आने लगती है। यहां आकर लगता है कि हम बुंदेलखंड के किसी कस्बे में नहीं बल्कि कशमीर की वादियों में आ गये हैं। कस्बे के बीच और बाहर फैले तालाब यहां का दृश्य और भी मनोरम बना देते हैं। कस्बे में बने कान्हा के प्रतीक रुप में बने 108 मंदिर तो शोभा बढ़ाते ही हैं यहां के सात तालाब और भी उसमें चार चांद लगा देते हैं।
सात तालाबों में सबसे पहला तालाब है गोला तालाबा। यह तालाब चारो ओर से गोल है इसी लिए इसका नाम गोला तालाब है। सबसे पहले बस्ती और बारिश का पानी इसी तालाब में आता है। यह पूरा तालाब जब भर जाता है तो इसके बाद यहां का पानी कोठी तालाब में चला जाता है। इस तालाबा के पास राजाओं की कोठी बनी थीं इसलिए इसका नाम कोठी तालाब पड़ गया। इन कोठियों में राजाओं के मेहमान ठहरा करते थे। कोठी तालाब के बाद पंचीया तालाब में पानी भरता है। इसका नाम भगवान का मंदिर होने के कारण पड़ा। यहीं पर हर साल मेला लगता है।
कोठी तालाब से पानी होकर जय सागर तालाब में मिलता है। इस तालाब को राजा जयसिहं ने खुदवाया था। इसी लिए इसका नाम जयसागर पड़ा। जयसागर से पानी होकर मलखान सागर में जाता है। मलखान सागर का नाम मलखान सिंह जू देव महाराज के नाम पर पड़ा। इन्हें सर की उपाधि भी मिली थी। इनके द्वारा चरखारी का मेला लगना शुरु हुआ था। यहां से पानी होकर रपट तलैया में आता है। रपट तलैया का नाम इसलिए पड़ा क्यों कि बस्ती का सारा पानी यहां भर जाने के बाद यहां से पानी आगे रतन सागर में जाता है। रतन सागर को राजा रतन सिंह ने खुदवाया था। इसीलिए इसका नाम रतन सागर पड़ा।
अंग्रेजों के समय में यह एक छोटी राजशाही के रूप में मौजूद था जो भारत की आजादी के बाद अधिगृहीत कर लिया गया।यहाँ के शासकों ने ब्रिटिश राज़ के समय अंग्रेजों का साथ दिया....इस बात से क्षुब्ध तात्या टोपे द्वारा यहाँ एक बार आक्रमण किया गया जिससे घबरा कर यहाँ के राजा ने बिना युद्ध किये तात्या टोपे की सभी शर्त मान ली और चौथ दे के अपनी जान बचायी। तभी से भारत के स्वाधीनता संग्राम मे यहाँ के राज्य को जयचंद के राज्य से तुलना की जाती है। लेकिन यहाँ के राजाओं ने यहाँ कई तालाबों मंदिरों का भी निर्माण कराया।
भूगोल
चरखारी की भूगोलीय अवस्थिति 25°24′N 79°45′E / 25.4°N 79.75°E पर है[3] और यह समुद्र तल से १८४ मीटर (६०३ फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान कई झीलों से घिरा हुआ है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण "बुन्देलखण्ड का काश्मीर" कहा जाता है।[4]
जनसांख्यिकी
2011 के अनुसार [update] के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, चरखारी नगर पालिका के अंतर्गत कुल ५,०६६ मकान थे और कुल २७,७६० लोग निवासी थे जिनमें १४,७१२ पुरुष और १३,०४८ महिलायें थीं। शून्य से छह वर्ष की आयु के अंतर्गत बच्चों की संख्या ३५५४ थी जो कुल जनसंख्या का १२% थी। चरखारी नगर पालिका में लिंगानुपात ८८७ दर्ज किया गया जो राष्ट्रीय औसत ९१२ से काफ़ी कम है। साक्षरता ७३.८ % है जो राज्य के औसत ६७.६८ % से अधिक है। पुरुष साक्षरता ८२.२४ % और महिला साक्षरता ६४.२९ % दर्ज की गयी है।
संस्कृति
चरखारी में प्रसिद्द गोवर्धन जू मेला लगता है और लोगों के मुताबिक़ इसकी शुरूआत राजा मलखान सिंह ने १८८३ ई॰ में की थी।[5]
चरखारी का किला
- चरखारी का किला
बुन्देलखण्ड एक अत्यंत वैभव सम्पन्न राजसी क्षेत्र रहा है, इस बात में कोई दोराय नहीं है तभी इस क्षेत्र में हजारों साल पुराने किले, महल, तालाब, मंदिर इत्यादि हैं। ऐसा ही एक विशालकाय दुर्ग है, महोबा जिले की चरखारी नगरी में इससे सटा हुआ राजमहल है। इस राजमहल के चारों तरफ नीलकमल से आच्छादित तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े- विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नामक झीलें हैं। चरखारी नगरी को वृज का स्वरूप एवं सौन्दर्य प्रदान करते कृष्ण के 108 मन्दिर- जिसमें सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मन्दिर, रायनपुर का गुमान बिहारी, मंगलगढ़ के मन्दिर, बख्त बिहारी, बाँके बिहारी के मन्दिर तथा माडव्य ऋषि की गुफा है। इसके समीप ही बुन्देला राजाओं का आखेट स्थल टोला तालाब है। ये सब मिलकर चरखारी नगरी की सुन्दरता को चार चाँद लगाते हैं। चरखारी का प्रथम उल्लेख चन्देल नरेशों के ताम्र पत्रों में मिलता है।
चन्देलों के गुजर जाने के सैकड़ों वर्ष बाद राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज को चरखारी के एक प्राचीन मुंडिया पर्वत पर एक प्राचीन बीजक की सहायता से चंदेलों का सोने के सिक्कों से भरा कलश मिला। यह धन पृथ्वीराज चौहान से पराजित होने के उपरान्त जब परमाल और रानी मल्हना महोबा से कालिंजर को प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने चरखारी में छुपा दिया था। छत्रसाल के निर्देश पर जगतराज ने बीस हजार कन्यादान किये, बाइस विशाल तालाब बनवाए, चन्देलकालीन मन्दिरों और तालाबों का जीर्णोंद्धार कराया। किन्तु इस धन का एक भी पैसा अपने पास नहीं रखा। जगतराज ने ही भूतल से तीन सौ फुट ऊपर चक्रव्यूह के आधार पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया जिसमें मुख्यत: तीन दरवाजें हैं। सूपा द्वार- जिससे किले को रसद हथियार सप्लाई होते थे। ड्योढ़ी दरवाजा- राजा रानी के लिये आरक्षित था। इसके अतिरिक्त एक हाथी चिघाड़ फाटक भी मौजूद था।
अब आते हैं इस विशाल दुर्ग की सुन्दरता को देखते हैं, जिसे आजकल आम आदमी के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है जिस किले को एक शानदार पर्यटन स्थल होना चाहिए, वहाँ वर्षों से भारतीय फ़ौज का कब्ज़ा है। इस किले के ऊपर एक साथ सात तालब मौजूद हैं- बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुण्ड, रामकुण्ड, चौपरा, महावीर कुण्ड, बख्त बिहारी कुण्ड। चरखारी किला अपनी अष्टधातु तोपों के लिये पूरे भारत में मशहूर रहा है। इसमें धरती धड़कन, काली सहाय, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, गर्भगिरावन तोपें अपने नाम के अनुसार अपनी भयावहता का अहसास कराती हैं। इस समय काली सहाय तोप बची है जिसकी मारक क्षमा 15 किमी है। किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था। यह अनाज कई वर्षों तक खराब नहीं होता था।
- मंगलगढ़ का किला
मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह महोबा से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। यह स्थान उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत आता है। मंगलगढ़ दुर्ग के नीचे पहाड़ी की तलहटी में बसी बस्ती चरखारी के नाम से विख्यात है इसका पुराना नाम महराज नगर था।
मंगलगढ़ के इतिहास के अनुसार चरखारी नगर का विकास सन् 1761 में राजा खुमान सिंह के शासन में हुआ था। राजा खुमान सिंह ने सन् 1782 तक शासन किया। इनके पुत्र का नाम विज विक्रमवीर था। खुमान सिंह के बाद उनके पुत्र विक्रम वीर राजा बने। राजा विज विक्रमवीर की मृत्यु 1829 हुई। इसके पश्चात रतन सिंह राजा हुए। चन्देल शासनकाल में यहाँ पर अनेक तालाब निर्मित हुये थे। तथा उनके किनारे अनेक मन्दिर निर्मित हुये थे। ये सभी मंदिर चंदेलकालीन थे।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
- ↑ "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
- ↑ "Falling Rain Genomics, Inc - Charkhari". मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2016.
- ↑ "India heritage hub". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2016.
- ↑ "चरखारी के ऐतिहासिक महत्व को किया रेखांकित". दैनिक जागरण. 2 दिसंबर 2012. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2016.