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चरक पूजा

चरक पूजा

2014 में हावड़ा में चरक पूजा का एक दृश्य
अन्य नाम नील पूजा, हाजरा पूजा
अनुयायी हिन्दू
प्रकारहिन्दू

चरक पूजा (जिसे चड़क और नील पूजा भी कहा जाता है) भगवान शिव के सम्मान में एक हिंदू लोक त्योहार है। यह भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल और दक्षिणी बांग्लादेश में चैत्र के महीने के अंतिम दिन (संक्रांति) में मनाई जाती है।[1] महीनेभर उपवास रखकर पूजन करने वाले श्रद्धालुओं को इस दिन लकड़ी के विशाल चरखे (चरक) में झुलाया जाता है।

इसमें झूलने वाले के शरीर को रस्सी से बांधकर लोहे का हुक फंसाया जाता है और तेज गति से झुलाया जाता है। यह बेहद कष्टप्रद है लेकिन समाज के लोगों की मान्यता है कि महीनेभर उपवास रखकर सेवा करने से इतनी शक्ति आ जाती है कि कष्ट का थोड़ा भी अनुभव नहीं होता। इस अनुष्ठान को करने वालों को चैत्र माह में पूरे एक महीने संन्यास धारण करते पारम्परिक वेशभूषा में भिक्षा मांग एक पहर भोजन ग्रहण करना होता है। खजूर भांगा महोत्सव का इंतजार लोग बेसब्री से करते हैं। शिवभक्त की टोलियों में 2 सदस्य गंगा जल से स्नान कर गेरुआ वस्त्र धारण कर कटीले खजूर पेड़ में बिना किसी सहारे चढ़ते हैं तथा नृत्य करते हुए पेड़ पर लगी कच्चे खजूर की डालियों को तोड़ नीचे फेंकते हैं। नीचे खड़े श्रद्धालु ऊपर से फेंके खजूर फल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह दिन शिवभक्तों का भिक्षा मांगने का आखिरी दिन होता है। इसके एक दिन बाद शिवभक्त अपने पीठ में रस्सी से लोहे की हुक लगा चरक पर्व मनाते हैं। चरक पूजा में वही भक्त शामिल होते हैं जो महीने भर उपवास रहते हैं। [2]

सन्दर्भ

  1. Murdoch, John (1991). Hindu and Muhammadan Festivals (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-206-0708-8. अभिगमन तिथि 7 दिसम्बर 2020.
  2. बंग समाज के लोगों ने मनाया चरक पूजा का त्योहार