चंद्रकांता (लेखिका)
जन्म | 3 सितंबर, 1938 श्रीनगर |
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पेशा | लेखिका |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधाs | कहानी और उपन्यास |
विषयs | सामाजिक |
चन्द्रकान्ता (जन्म 3 सितंबर 1938) हिन्दी की विख्यात लेखिका हैं।[1] 'कथा सतीसर' उनका सबसे विख्यात उपन्यास है।
श्रीमती चन्द्रकान्ता का जन्म श्रीनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रो. रामचंद्र पंडित था जो अंग्रेजी के शिक्षक थे। पिता को कश्मीर में हिंदी भाषा को बचाने के लिए मुहिम चलाते देखकर उनके मन में राष्ट्रभाषा के लिए सम्मान जागा और वे भी पिता की इस मुहिम में जुट गईं। हिंदी से एमए करने के बाद राजस्थान, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित कई राज्यों में भाषा को बचाने के लिए संस्थाएं बनाईं।
ग्रन्थ
उपन्यास और कहानियां
- ऐलान गली ज़िंदा है
- अपने अपने कोणार्क
- बदलते हालत में
- ओ सोनकिस्री
- अर्थान्तर
- कथा सतीसर
- अंतिम साक्ष्य
- यहां वितस्ता बहती है
- बाकी सब खैरियत है
- सलाखों के पीछे
- गलत लोगों के बीच
- पोष्णूल की वापसी
- दहलीज़ पर न्याय
- कोठे पर कागा
- सूरज उगने तक
- काली बरफ
- अब्बु ने कहा था
- कथा नगर
- आंचलिक कहानियाँ
- प्रेम कहानियाँ
- चर्चित कहानियाँ
- तांती बाई
'कविता
- यहीं कहीं आस पास
संस्मरण
- हाशिये की इबारतें
सम्मान तथा पुरस्कार
प्रतिष्ठित ‘व्यास सम्मान’ के अलावा हिंदी अकादमी, दिल्ली; हरियाणा साहित्य अकादमी, भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा अनेक पुस्तकें पुरस्कृत। रामचंद्र शुक्ल संस्थान वाराणसी, वाग्देवी पुरस्कार आदि एक दर्जन से अधिक अन्य पुरस्कार-सम्मान। 50 से अधिक शोधकार्य संपन्न; दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से अनेक धारावाहिक एवं कहानियों का प्रसारण। पचास छात्र-छात्राओं ने समग्र साहित्य पर शोध किया/ कर रहीं हैं।
सन्दर्भ
- ↑ Eminent novelist Chandrakanta has been awarded the 2005 Vyas Samman for Katha Satisar Archived 2012-02-05 at the वेबैक मशीन ट्रिब्यून इण्डिया