ग्रेच्युटी
किसी कंपनी में काम करने के दौरान कर्मचारी के वेतन का ए॰ भाग भविष्य निधि और ग्रेच्युटी (उपदान) के रूप में काटा जाता है। आरम्भिक दौर में यह स्वैच्छिक होता है और पूरी तरह से कर्मचारी पर निर्भर करता है। ग्रेच्युटी अधिनियम, १९७२ में प्रत्येक कंपनी, जिसमें दस से अधिक कर्मचारी हैं, कर्मचारियों को ग्रेच्युटी देने के लिए॰बाध्य है। इस अधिनियम में कर्मचारी वह हैं जिन्हें कंपनी वेतन पर रखती है। इसके अलावा प्रशिक्षुओं को ग्रेच्युटी नहीं मिलती। ग्रेच्युटी कर्मचारी के मूल वेतन ए॰ं महंगाई भत्ते की राशि के आधार पर दी जाती है।
ग्रेच्युटी की सीमा ३,५०,००० रुपये तक होने पर यह आयकर की सीमा से मुक्त होती है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली पूरी राशि आयकर मुक्त होती है। कंपनी को यह अधिकार है कि वह स्वेच्छा से अपने कर्मचारियों को ज्यादा ग्रेच्युटी दें। लेकिन अतिरिक्त लाभ के रूप में मिलने वाली ग्रेच्युटी आयकर के दायरे में आती है। इसके साथ हीवहीं यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसके उत्तराधिकारी को पूरी ग्रेच्युटी तुरन्त मिलती है, इस ग्रेच्युटी पर किसी तरह का आयकर भी नहीं लगता। कंपनी सीटीसी (कॉस्ट टू कंपनी) खाते के तहत कर्मचारी के वेतन के कुछ भाग को ग्रेच्युटी के रूप में काट सकती हैं। कंपनी में कार्यारम्भ करने से पहले इस बारे में कर्मचारी को जानकारी दी जानी चाहिये।
ग्रेच्युटी से मिलने वाली राशि को पेंशन प्लान, निजी भविष्य निधि और इक्विटी में निवेश कर सकते हैं। यहां ये ध्यान योग्य है कि यदि कर्मचारी इनमें निवेश करना चाहता है, तब उसे ऐसी निधि में निवेश करना चाहिये जिससे उसे नियमित आय हो। यह सेवानिवृत्ति उपरांट भी उसकी नियमित वेतन रूप में मिलती रहेगी।