ग्राम्य दोष
काव्य में एक प्रकार का शब्द दोष। जब कविता में ऐसे ग्रामीण शब्दों का अधिक प्रयोग होता है जिनका प्रचलन किसी क्षेत्र विशेष में ही होता है, ऐसे शब्दों के प्रयोग से कविता में ग्राम्य दोष माना जाता है।
परिभाषा:- आचार्य मम्मट के अनुसार काव्य के मुख्य अर्थ ( रस) के विधात तत्व ही दोष है|
प्रसाद ने साहित्यदर्पण में "रसापकर्षका दोष:" कहकर रस का अपर्कष करने वालो तत्वों को दोष बताया है|
दोषों का विभाजन:--- दोषों का विभाजन करना तर्कसंगत नही है काव्यप्रकाश में ७० दोष बताए गये है इन्हे प्रायः पांच दोषो में विभाजित किया गया है:-- १-पद दोष २- पदांश दोष ३- वाक्य दोष. ४- अर्थ दोष ५- रस दोष
उदाहरण:- निश्चित रहे जो करे भरोसा मेरा | बस मिले प्रेम का मुझे भरोसा मेरा |
नोट:- कवि ने तुक के लिए ' भरोसा' शब्द का प्रयोग अंश के अर्थ को किया है जो ग्रामत्व दोष से युक्त है