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गोटी

ड्रॉफ्ट्स का बोर्ड एवं गोट्टियाँ

गोटी (ड्राफ्ट/Draughts) शतरंज से मिलता-जुलता एक खेल है जो पश्चिमी देशों, विशेषकर यूरोप और अमरीका में अधिक प्रचलित है। अमेरिकी अंग्रेजी में इसे 'चेकर्स' कहा जाता है। यह दो व्यक्तियों के बीच खेला जाता है। इस खेल का प्रधान उपकरण एक पट्ट (बोर्ड) होता है, जिसमें ६४ खाने बने होते हैं। ये खाने एकांतर क्रम से विरोधी रंगों में (काले सफेद या लाल नीले रंगों में) रंगे होते हैं। इस प्रकार कुल ३२ सफेद और उतने ही काले खाने इसमें होते हैं। शतरंज के मोहरों के स्थान पर इसमें चपटी गोटें होती हैं। प्रत्येक पक्ष के पास १२ गोटें होती हैं - एक के पास कुल सफेद और दूसरे के पास कुल काली। गोटों को नीचे चित्र में प्रदर्शित ढंग से पट्ट पर लगाते हैं।

इतिहास

यह खेल अत्यंत प्राचीन है। इसका प्राचीन नाम चेकर्स (Checkers) है। यूनानी तथा रोमन लोगों का यह अत्यंत प्रिय खेल था। इसकी लोकप्रियता का कुछ आभास इस तथ्य से मिल सकता है कि रामनों के अनेक ऐतिहासिक महत्त्व के भवनों में इसी के पट्ट (board) के चित्र स्थान-स्थान पर बने हुए दिखलाई पड़ते हैं। इससे बहुत कुछ मिलता जुलता एक खेल मिस्र देशवासी भी सहस्त्रों वर्षो से खेलते आ रहे हैं। यूनान से इस खेल का प्रचार अरब देशों में हुआ और ऐसा प्रतीत होता है कि वहीं से पुन: इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन आदि देशों में आया। भारत में नौ गोटों का एक खेल बहुत प्राचीनकाल से खेला जाता रहा है। यद्यपि वह इस खेल से बहुत भिन्न है, फिर भी गोटों को बंदी बनाकर उठा लेना और राजा बनाने (मुकुट धारण कराने) की प्रक्रिया आदि इस खेल से बहुत कुछ मिलती जुलती है।

इस खेल से संबधित साहित्य का भी विस्तृत परिमाण में निर्माण हुआ है और अंतराष्ट्रीय नियमोपनियमों का भी सृजन होता रहा है। वैलेंशिया के ऐंटोनिया टॉर्किमादा (Antonia Torquemada) ने सन् १५४७ में इस खेल के बारे में सर्वप्रथम पुस्तक प्रकाशित की। इसके बाद इंग्लैंण्ड के सुविख्यात गणितज्ञ विलियम पेन (William Payne) ने अपनी विश्वविश्रुत पुस्तक 'गाइड टु दि गेम ऑव ड्राफ्ट्स' (ड्राफ्ट के खेलकी संदर्शिका) सन् १७५६ में प्रकाशित की। इनकी प्रेरणा से इस खेल से सबंधित साहित्य में द्रुत गति से अभिवृद्धि होने लगी और लोकरुचि इस ओर केंद्रित होने लगी। १९वीं शताब्दी में ऐंड्रू ऐंडरसन (इंग्लैंड) गोटी-ड्राफ्ट के खेल का विश्वविख्यात विजेता हुआ। वह अनेक प्रतियोगिताओं में समिलित हुआ और अधिकांश में विजयी रहा। इस खेल से संबंधित अनेक नियमोपनियमों का वह प्रवर्तक था। खेल के आधुनिक रूप का शिल्पकार उसे ही कहा जा सकता है। २०वीं शताब्दी में अमरीकनों ने इस खेल में बड़ी प्रगति की और यरोपीय खिलाड़ियों को बहुत पीछे ढकेल दिया।

खेल की प्रक्रिया

खेल के प्रारंभ की अवस्था में काले वृत्तों में काली तथा श्वेत वृत्तों में श्वेत गोटियाँ बैठाई जाती हैं। खेल की प्रारंभिक चाल काली गोटवाला व्यक्ति चलता है और इसके बाद दूसरी चाल सफेद गोटवाला चलता है। कोई गोट एक घर से दूसरे ऐसे घर में चली जा सकती है जो पहले घर के कर्णवत् एक से अधिक घर हों तो यह चलनेवाली की इच्छा पर है कि वह अपनी गोट जिस ओर चाहे चल सकता है। यदि विपक्षी की गोट अगले घर में हो और उसके आगे (कर्णवत्) घर रिक्त हो तो खिलाड़ी अपनी गोट उस रिक्त घर में पहुँचाकर बीच में पड़नेवाली विपक्षी की गोट को उठा ले सकता है।विपक्षी की गोट को इस प्रकार उठा लेने की क्रिया को बंदीकरण (Capture) कहते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि कोई गोट केवल आगे ही चली जा सकती है।

जब कोई गोट विपक्षी के प्रथम श्रेणीवाले सफेद घरों में से किसी एक में पहुँच जाती है, तो उसे राजमुकुट धारण कराया जाता है, क्योंकि ये घर 'राजा के घर' कहे जाते हैं। मुकुट धारण करने की क्रिया राजा के घर में पहुँची हुई गोट पर उसी रंग की दूसरी गोट रखकर संपन्न कराई जाती है। यह मुकुटधारी नया राजा आगे पीछे किसी ओर भी कर्णवत् घर में जा सकता है और उपर्युक्त बंदीकरण विधि से विपक्षी की किसी भी गोट को बंदी बना सकता है। किंतु राजा के घर में पहुँची हुई कोई विपक्षी गोट तब तक नहीं चली जा सकती जब तक मुकुट धारण की क्रिया संपन्न न हो जाय।

कोई पक्ष जब अपनी किसी गोट को, विपक्षी की गोट पार कराते हुए, अगले घर में डाल सकने में चूक जाता है और विपक्षी की गोट को उठा नहीं लेता, तो विपक्षी उसे दंडित कर सकता है। इसे 'हफिंग' (huffing) भी कहते हैं। तब यह विपक्षी की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह दंडस्वरूप उस गोट को, जिसके कारण उसकी अपनी गोट को बंदी हो जाना चाहिए था, स्वयं उठा ले अथवा उस पक्ष को अपनी चाल को वापस कर पुन: वही चाल चलकर अपनी गोट को बंदी बनाने के लिये बाध्य करे, जैसा भी वह अपने हित के अनुकूल समझे। ज्ञातव्य है कि इस खेल में कभी-कभी विजयी होने के निमित्त अपनी ही गोट को विपक्षी द्वारा बंदी बनवा लेना भी आवश्यक हो जाता है।

कोई पक्ष जब विपक्षी की सभी गोटो को बंदी बना लेता है अथवा उन गोटों का मार्ग इस प्रकार अवरुद्ध कर देत है कि वह विवश हो जाय और आगे कोई चाल चल ही न सके, तो वह पक्ष विजय माना जाता है। जब कोई पक्ष विजयश्री न प्राप्त कर सके और खेल की स्थिति कुछ इस प्रकार की हो जाय जिससे यह स्पष्ट हो जाय कि आगे निर्णय हो सकना असंभव है, तो उस बाजी को अनिर्णीत घोषित कर दिया जाता है। प्रत्येक बाजी समाप्त होने के बाद खिलाड़ी आपस में गोटें बदल लेते हैं। चाल चलते समय यह आवश्यक है कि कोई खिलाड़ी जिस गोट को छू ले, और उसकी चलने की गुंजायश है तो वह उसी गोट को चले।