गोंडवाना
गोंडवाना (पूर्वनाम 'गोंडवाना लैंड '), एक वृहत महाद्वीप (अंग्रेज़ी:super continent) था जिसका अस्तित्व नवप्राग्जीव महाकल्प (आज से 550 करोड़ वर्ष पूर्व) से लेकर जुरासिक काल (आज से 180 करोड़ वर्ष पूर्व) तक था। यह पैन्जिया का दक्षिणी भाग था। उत्तरी भाग को लॉरेशिया कहा जाता है। गोंडवाना लैंड का नाम एडुअरड सुएस ने भारत के गोंडवाना क्षेत्र के नाम पर रखा था। गोंडवाना भूभाग आज के समस्त दक्षिणी गोलार्ध के अलावा भारतीय उप महाद्वीप और अरब प्रायद्वीप जो वर्तमान मे उत्तरी गोलार्ध मे है का उद्गम स्थल है ।
जहाँ से गोंडवाना काल की शिलाओं का पहले पहल विज्ञानजगत् को बोध हुआ था। इनका निक्षेपण पुराकल्प के अंतिम काल से अर्थात् अंतिम कार्बन युग (Carboniferous) से आरंभ होकर मध्यकल्प के अधिकांश समय तक, अर्थात् जुरैसिक (Jurassic) युग के अंत तक, चलता रहा। एक पूर्वकालीन विशाल दक्षिणी प्रायद्वीप के निम्न स्थलों अथवा विभंजित द्रोणियों में जो संभवत: मंद गति से निमजित हो रही थीं, नदी द्वारा निक्षिप्त अवसादों से इन शिलाओं का निर्माण हुआ। गोंडवाना काल में मुख्यत: मृत्तिका, शेलशिला (Shell), बलुआ पत्थर (sandstone), कंकरला मिश्रपिंडाश्म (conglomerate), सकोणाश्म (braccia) इत्यादि शिलाओं का निक्षेपण हुआ। स्वच्छ जल में निर्मित होने के कारण इन शिलाओं में स्वच्छ जलीय एवं स्थलीय जीवों तथा वनस्पतियों के जीवाश्म का बाहुल्य और महासागरीय जीवों एवं वनस्पतियों के जीवाश्म का अभाव है।
Ittulal irpache
गोंडवाना महाद्वीप का नाम ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक एडुआर्ड सूस द्वारा मध्य भारत के इसी नाम के क्षेत्र के नाम पर रखा गया था, जो संस्कृत से "गोंडों के जंगल" के लिए लिया गया है गोंडवाना ५५ करोड़ वर्ष पहले तक एक बृहद भूभाग था जोकि बाद में विकसित मानव सभ्यता के साथ विभाजित होता चला गया।[1] यह नाम पहले भूवैज्ञानिक संदर्भ में इस्तेमाल किया गया था, पहली बार 1872 में एच.बी. मेडलिकॉट द्वारा[2], जिसमें से गोंडवाना तलछटी अनुक्रम (पर्मियन-ट्राइसिक) का भी वर्णन किया गया है।
कुछ वैज्ञानिक क्षेत्र और महाद्वीप के बीच स्पष्ट अंतर बताने के लिए "गोंडवानालैंड" शब्द को प्राथमिकता देते हैं।[Gondwana or Gondwana land 1]
परिचय
इस महान् स्थलखंड को भूगर्भवेत्ताओं ने 'गोंडवाना प्रदेश' की संज्ञा दी। कुछ विद्वानों का मत है कि यह प्रदेश एक विशाल भूखंड न होकर अनेक भूभागों का समूह था जो सँकरे भूसंयोजकों अथवा स्थलसेतुओं द्वारा एक दूसरे से संबद्ध थे। इसके अंतर्गत भारत तथा समीपवर्ती देश आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमरीका, ऐंटार्कटिका, दक्षिणी अफ्रीका और मैडागास्कर आते थे। इस काल की शिलाओं, जीव जंतुओं, वनस्पतियों, जलवायु इत्यादि के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्वकालीन गोंडवाना प्रदेश के उपर्युक्त अंतर्गत भागों पर इन दशाओं में आश्चर्यजनक समानताएँ थीं। इस प्रकार यह पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है कि पूर्वकालीन गोंडवाना प्रदेश के अंतर्गत भाग गोंडवाना काल में एक दूसरे से पूर्णतया अथवा भूसंयोजकों द्वारा संबद्ध थे, अन्यथा जीवों और वनस्पतियों का एक भाग से दूसरे भाग में परिगमन असंभव था। इसी काल में, उत्तरी गोलार्ध में, उत्तरी अमरीका, यूरोप तथा एशिया महाद्वीप भी एक दूसरे से संबद्ध थे और एक अन्य विशाल भूखंड का निर्माण कर रहे थे जिसे लारेशिया कहते हैं। लारेशिया तथा गोंडवाना प्रदेश के मध्य टीथिस नामक एक संकरा सागर था। इन दोनों स्थलखंडों को मिलाकर 'पैंजिया' कहा गया है।
गोंडवाना प्रदेश का विखंडन मध्यकाल के अंत में अथवा तृतीयक कल्प के आरंभ में हुआ। इस काल में एक विशाल ज्वालामुखी उद्गार भी हुआ जो संभवत: इस विखंडन की क्रिया से संबंधित या इसी का पूर्वसंकेत था। यह परिवर्तन संभवत: अंतर्गत भूखंडों के तटस्थ भागों अथव स्थलसेतुओं के निमज्जन से या इन भूभागों के एक दूसरे से दूर खिसक जाने से संपन्न हुआ। इसी के साथ साथ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, दक्षिण अटलांटिक सागर इत्यादि का जन्म हुआ।
यह ऊपर बताया जा चुका है कि एक समय में, एक दूसरे से संबद्ध होने के कारण भारत, दक्षिणी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया इत्यादि की पुराभौगोलिक दशाओं में समानताएँ पाई जाती हैं। इस काल की भौगोलिक दशाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रारंभ में, अर्थात् अंतिम कार्बन युग में, गोंडवाना प्रदेश की जलवायु हिमानीय (Glacial) थी जिसकी पुष्टि इस युग के बोल्डर तहों (Boldar Beds) की उपस्थिति से होती है जो सभी अंतर्गत भागों पर मिलते हैं। भारत की तालचीर, दक्षिणी अफ्रीका की ड्वाईका, दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया की मुरी तथा दक्षिणी अमरीका की रियो टुबारो समुदायों की शिलाएँ इन्हीं बोल्डर तहों पर स्थित हैं। इस काल में ग्लासैपटेरिस (Glossopteris) एवं गंगमौपटेरिस वनस्पतियों की प्रचुरता थी तथा उभयचर जीवों का भूतल पर प्रथम बार आगमन हुआ था। तत्पश्चात् पर्मिएन कार्बन युग में मोटे कोयला स्तर मिलते हैं जो उष्ण एवं नम जलवायु के द्योतक हैं क्योंकि प्रचुर वनस्पति की उपज के लिये, जिसके द्वारा कालांतर में कोयले का निर्माण होता है, इसी प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है। ये कोयला-स्तर इस काल में निर्मित भारत की दामुदा समुदाय, दक्षिणी अफ्रीका की इक्का तथा दक्षिणपूर्व आस्ट्रेलिया की मेटलैंड उपसमुदायों की शिलाओं में मिलते हैं। इस काल में ग्लासौपटेरिस वनस्पति एवं उभयचर जीवों का पूर्ण विकास हो गया था परंतु गंगमौपटेरिस वनस्पति का ह्रास हो रहा था।
तदुपरांत मध्य गोंडवाना काल के आंरभ में अथवा आंरभिक ट्राइऐसिक (Triassic) युग में जलवायु में पुन: शीतलता आ गई, जैसा इस काल की शिलाओं के अध्ययन से स्पष्ट विदित होता है। इन शिलाओं में उपस्थित फेल्सपार के कणों में विघटन होकर विच्छेदन (disintegration) हुआ है। विच्छेदन क्रिया मुख्यत: शीतल जलवायुवाले प्रदेशों में तथा विघटन क्रिया समान्य (उष्ण एवं नम) जलवायु के प्रदेशों में अधिक महत्वपूर्ण है। इस काल की शिलाएँ भारत के पंचत् समुदाय, दक्षिणी अफ्रीका के व्यूफर्ट तथा दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया के हाक्सबरी उपसमुदायों के अंतर्गत मिलती हैं। इसके पश्चात् अंतिम ट्राइएसिक युग में जलवाय उष्ण एवं शुष्क हो गई। इसकी पुष्टि इस काल के लाल वर्ण के बालुकाश्म से होती है जिसमें लौहयुक्त पदार्थों का बाहुल्य तथा वानस्पतिक पदार्थों का पूर्णतया अभाव मरुस्थलीय जलवायु का द्योतक है। भारत में महादेव समुदाय की शिलाएँ इसी काल में निक्षिप्त हुई थीं। मध्य गोंडवाना काल की मुख्य वनस्पति थिनफैल्डिया-टिलोफाईलम (Thinnfeldia Telophylum) है जिसने पूर्वकालीन ग्लासेपटेरिस वनस्पति का स्थान ले लिया था। जीवों में सरीसृपों (reptiles) का पृथ्वी पर सर्वप्रथम आगमन इसी काल में हुआ था कि उभयचरों एवं मीनों का भी बाहुल्य था। इन सब जीवों के जीवाश्म इस काल की निक्षिप्त शिलाओं में मिलते हैं।
गोंडवाना काल के अंतिम भाग में, अर्थात् जुरैसिक युग में, जलवायु में पुन: सामान्यता आ गई थी। इस काल की शिलाओं में वानस्पतिक पदार्थ मिलते हैं; परंतु कोयले का निर्माण महत्वपूर्ण नहीं हुआ था। मुख्य वनस्पतियाँ साईकेड, कानीफर एवं फर्न हैं तथा मुख्य जीव स्टेशिया एवं मीन हैं। गोंडवाना काल का अंत अथवा गोंडवाना प्रदेश का विखंडन संभवत: एक भीषण ज्वालामुखी उद्गार से हुआ, जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इस काल में भारतवर्ष में राजमहल उपसमूह तथा दक्षिणी अफ्रीका में स्टार्मबर्ग समुदाय की शिलाओं का निक्षेपण हुआ था।
सन्दर्भ ग्रन्थ
- ब्लैनफोर्ड, डब्ल्यू.टी. : दि एंश्येंट जिऑग्रेफी ऑव गोंडवानालैंड, रिकार्ड. जिऑलॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया, खंड 29, भाग 2, 1896;
- कृष्णन, एम.एस. : जिऑलोजी ऑव इंडिया ऐंड वर्मा, 1960;
- वाडिया, डी.एन. : जिऑलोजी ऑव इंडिया, 1961
बाहरी कड़ियाँ
- Animation showing the dispersal of Gondwanaland
- Graphical subjects dealing with Tectonics and Paleontology
- Gondwana Reconstruction and Dispersion
- ↑ ""Gondwana and the Politics of Deep Past"". academic.oup.com. डीओआइ:10.1093/pastj/gty016. अभिगमन तिथि 2023-09-23.
- ↑ Suess, Eduard (1885). Das antlitz der erde. unknown library. Prag, F. Tempsky; [etc., etc.]
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