सामग्री पर जाएँ

गॉन्डोफर्नीज

गॉन्डोफर्नीज

गॉन्डोफर्नीज का सिक्का
जन्म अज्ञात
मौत 10 ई.पू.
पदवी भारतीय-पार्थियन राजा
उत्तराधिकारी अज्ञात
धर्म ज़रथुस्‍ट्र पंथ (पारसी धर्म)

गॉन्डोफर्नीज (English pronunciation: Gondophernes or Gondophares;उत्कर्ष पहली शताब्दी), अराकेशिया, काबुल और गांधार (वर्तमान अफगानिस्तानपाकिस्तान) में शासन करने वाले हिन्द-पहलव (भारतीय-पार्थियन) राजा थे। कुछ विद्वान इनके नाम गॉन्डोफर्नीज को इनके आर्मेनियाई रूप गेथास्पर या गास्पार भी मानते हैं, जो पूर्व से ईसा मसीह के जन्मोत्सव में पहुँचकर उनकी पूजा करने वाले तीन बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक का पारंपरिक नाम है।[1]

इतिहास

गोंडोफेरेस का चांदी का सिक्का, द्रंगियाना में ढाला गया
उनके अपने सिक्के में घोड़े पर गॉन्डोफर्नीज।

गॉन्डोफर्नीज के बारे में पहली जानकारी अप्रामाणिक "एक्टस ऑफ टॉमस दि एपोसल" के जरिए मिलती है, जिसमें कहा गया है, कि संत टॉमस गॉन्डोफर्नीज के दरबार में गए, जहां उन्हें शाही महल बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। लेकिन निर्माण के लिए दी गयी राशि को लोक कल्याण में खर्च करने के कारण उन्हें बंदी बना लिया गया। कहानी के अनुसार, उसी दौरान राजा के भाई गैड की मृत्यु हो गयी और फरिश्तों ने उन्हें स्वर्ग ले जाकर संत टॉमस के अच्छे कर्मों द्वारा निर्मित महल दिखाया। गैड को फिर से जीवन प्रदान किया गया और उन्होने व गॉन्डोफर्नीज ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।[2]

कालक्रम

गॉन्डोफर्नीज के सिक्के, जिनमें से कुछ पर उनका भारतीय नाम गुन्दफर्न अंकित है, यह संभावना दर्शाते हैं कि उन्होने पूर्वी ईरान और पश्चिमोत्तर भारत, दोनों पर एकछत्र शासन किया होगा। तख्त-ए-बही (पेशावर के निकट) के अभिलेख के अनुसार गॉन्डोफर्नीज ने कम से कम 26 वर्षों तक शासन किया, जो संभवत: 19 से 45 ई. तक रहा।[3]

सन्दर्भ

  1. Bivar, A. D. H. (2003), "Gondophares", Encyclopaedia Iranica, 11.2, Costa Mesa: Mazda
  2. [भारत ज्ञानकोश, खंड-2, पृष्ठ संख्या-68, प्रकाशक: पापयुलर प्रकाशन मुंबई, आई एस बी एन-81-7154-993-4]
  3. Ernst Herzfeld, Archaeological History of Iran, London, Oxford University Press for the British Academy, 1935, p.63; name="Bivar_2003"/> cf. name="Bivar_1983_51">Bivar, A. D. H. (1983), "The Political History of Iran under the Arsacids", प्रकाशित Yarshater, Ehsan (संपा॰), Cambridge History of Iran, 3.1, London: Cambridge UP, पृ॰ 51